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05 December 2022

पुस्तक समीक्षा: जीवन में संविधान

मौजूदा दौर में जब लगातार संविधान की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है, ऐसे में 76 लघु कहानियों के माध्यम से संविधान की मूल भावना को सरल भाषा में पढ़ना अच्छा लगता है। हर व्यक्ति को सुखांत पसंद होता है सभी सवालों से कतरा कर निकल जाना चाहते हैं। जबकि इस पुस्तक की कहानियां बार-बार कठिन सवाल खड़े करती हैं।

कहानियां जरूर लघु हैं लेकिन इनके किरदार बड़े हैं। हर कहानी पढ़ते हुए लगता है, इन खबरों को अखबारों में पढ़ा तो है लेकिन कभी गुना नहीं। इन कहानियों में रोजमर्रा की छोटी खबरें हैं, जो दरअसल बहुत बड़ी बात कह जाती हैं। पुस्तक अपनी संवेदना को समाज की संवेदना के साथ एकाकार करने में कामयाब है।

पुस्तक में कई कहानियां हैं, जो अल्पसंख्यक होने के कारण हो रहे भेदभाव, ऑनर किलिंग, सोशल मीडिया की गंदगी जैसे व्यापक संक्रमण को संवेदनशील तरीके से स्पर्श करती है। ‘इतवार का गणित’ और ‘हद’ कहानी समाज में अभी भी व्याप्त नजरिये की पुष्टि करती हैं, जो मानता है कि घरेलू कार्य महिला की जिम्मेदारी है और हर कार्य पुरुष मुखिया से पूछ कर किया जाए।

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इन कहानियों को पढ़ते हुए कुछ सवाल सर उठाते हैं मसलन जैस, 1955 में कानूनी तौर पर हुआ अस्पृश्यता का अंत कितना प्रभावी रहा?, क्या हम भाईचारे की भावना बनाए रख पाए?, स्मार्ट फोन इस्तेमाल न करने वाले बच्चों की तादाद इतनी ज्यादा होने के बावजूद उनकी शिक्षा का वैकल्पिक तरीका तलाश क्यों नहीं किया जा सका? राज्य व समाज अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा सके? चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र के पेशेवर क्या अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं? क्या गरीबी ऐसी ही होती है कि व्यक्ति को अपनी भूख से जूझने के लिए स्वतंत्रता को त्यागना पड़ता है?

ये प्रश्न बार-बार आपके सामने खड़े होते हैं और यही इस किताब की सफलता है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए कुछ पंक्तियां दिमाग में हमेशा के लिए दर्ज हो जाती हैं। ‘मुश्किल वक्त में अपने अतिरिक्त दायित्व को महसूस करना ही मनुष्यता है।’ ‘किसी वस्तु का इस्तेमाल हमेशा व्यापक हित में करने पर विचार करेंगे न कि व्यक्तिगत हित में।’ ‘शिक्षा और संवैधानिक आरक्षण इस दुष्चक्र से निकलने की हमारी इकलौती उम्मीद है।’

पुस्तक अंधेरे से उजाले की ओर का पक्ष लेकर चलती है। यह संवैधानिक प्रावधानों की सफलता की कहानियां भी कहती है और संविधान में हमारा भरोसा भी मजबूत करती है।   

जीवन में संविधान

सचिन कुमार जैन

अंतिका प्रकाशन

208 पृष्ठ

250 रुपये (पेपर बैक)

समीक्षक: शरद कुमार पांडेय

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TAGS: book review, jeevan mai sanvidhan, antika prakashan, sachin jain, sharad kumar pandey
OUTLOOK 05 December, 2022
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