पुस्तक समीक्षाः रामखेलावन की कथा
युवा व्यंग्यकार रणविजय राव का प्रथम व्यंग्य संग्रह "लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन" सशक्त एवं समृद्ध व्यंग्य संग्रह है। इस व्यंग्य संग्रह को पढ़ते हुए कोई भी पाठक स्वयं को वैचारिक समृद्ध होता हुआ पाता है। यह उचित ही है कि समाज में अनेक समस्या है, लेकिन इन समस्याओं का कारण केवल अराजकता नहीं है। इस व्यंग्य संग्रह के माध्यम से लेखक ने यह कहने की कोशिश की है कि हमारी खामोशी, हमारा किसी भी समस्या को देखने का नजरिया, उस समस्या के प्रति शून्यता का व्यवहार और अनदेखा करने की जो आदत बन गई है, वही मूल कारण है।
आवश्यकता है समाज को वैचारिक रूप से समृद्ध करने की, उस पतन से रोकने की, जो मनुष्य को पशुता की ओर ले जा रहा है और इस पतन को रोकना किसी जिम्मेदार लेखक का प्रथम दायित्व है। समस्या का मूल कारण हमारे सोचने की प्रक्रिया में है। इस व्यंग्य संग्रह के माध्यम से इन सभी संदेशों को देते हुए युवा व्यंग्यकार रणविजय राव ने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई है।
लेखक ने ऐसा कोई भी क्षेत्र अथवा समस्या नहीं छोड़ी है, जो समाज में मनुष्यों के बीच विद्यमान है, जिससे एक आम आदमी जूझ रहा है। कोरोना काल की विसंगतियां और विकृतियां, वह भी स्पष्ट रूप से लिखी गई हैं, दर्शाई गई हैं। इस विपरीत समय में भी समाज में उपस्थित इकाइयों की जो भूमिका समाज की जिम्मेदारियों के प्रति रही, उसे भी स्थापित किया है। इस संग्रह की सबसे अच्छी और विशेष बात यह है कि तमाम यथार्थ की बातें लिखते हुए, तमाम घृणित प्रवृतियां लिखते हुए, तमाम पात्रों के माध्यम से विसंगतियों को उजागर करते हुए, व्यंग्यकार ने अंत में एक उम्मीद छोड़ दी है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहकर उसे समाज का विकास करना है। इसीलिए जब सब कुछ नाउम्मीद होते हुए दिखता है, तभी अचानक से एक अंतिम वक्तव्य उम्मीद का आता है। एक रोशनी आती है, जिसकी प्रबलता किसी भी अंधकार से अधिक है। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि "रामखेलावन को भी बेस पसंद है।" इस व्यंग्य में लेखक ने लिखा है, "और केवल राजनीति या नौकरशाही ही क्यों? जीवन के किसी भी क्षेत्र को ले लीजिए- शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, खेल और यहां तक कि आम जिंदगी- हर स्थिति में, हर क्षेत्र में, बेस जरूरी है।" यानि आधार का होना अत्यंत आवश्यक है। यहां आधार का संबंध किसी बड़े सृजन या भौतिकवाद से नहीं है। यह आधार है हमारे वैचारिक पक्ष का विचार ही क्रांति का पहला और अंतिम शब्द है, विचार ही मनुष्य और मनुष्यता का अंतिम शब्द है। इसीलिए मुझे लगता है कि "लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन" रणविजय राव के सार्थक और उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य आलेखों का संग्रह है।
यह संग्रह पाठकों को न सिर्फ रुचिकर लगेगा, बांधकर रखेगा बल्कि उन्हें वैचारिक रूप से समृद्ध भी करेगा। यह पुस्तक पुस्तकालय की रौनक तो बढ़ाएगा ही, पाठकों की चेतना जगाने में भी सशक्त व सक्षम है। बहुत ही सटीक और सामयिक रचनाओं के माध्यम से देश, समाज, बाजार और लोकतंत्र की विसंगतियों एवं विडंबनाओं पर करारा प्रहार किया गया है। किस तरह से जनता की जिजीविषा की नित्य हत्या की जा रही है, संग्रह की रचनाएं इस सत्य को उद्घाटित करती हैं।
समीक्षकः डॉ. स्वाति चौधरी
लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन (व्यंग्य संग्रह)
रणविजय राव
325 रुपए
भावना प्रकाशन