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29 June 2021

पुस्तक समीक्षाः किसी कपोल कल्पित फिल्म का संसार

पानी की दुनिया

रॉइन रागा-रिझ्झम रागा

प्रकाशक कलामोस प्रकाशन

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कीमतः 175 रुपये

पृष्ठः 122

‘‘अपने कलेवर में यह कहानी हमें हॉलीवुड की फिल्मों की याद दिलाती है, खासतौर से एनिमेशन फिल्मों की’’

हिन्दी में स्तरीय कपोल कल्पित लेखन काफी कम होता है, न के बराबर। जयपुर के युवा लेखक बंधु रॉइन रागा और रिझ्झम रागा का यह चौथा उपन्यास इस दिशा में न सिर्फ एक सार्थक कदम लगता है बल्कि यह उम्मीद भी जगाता है कि कपोल कल्पित लेखन के मामले में युवा लेखकों की झोली अभी खाली नहीं हुई है। 

नाम से ही स्पष्ट है ‘पानी की दुनिया’ समुद्र के अंदर के जीवों की कहानी है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इसमें सिर्फ समुद्री जीवों की बातें और उनके बीच के रिश्ते, लड़ाइयां, मोहब्बतें आदि ही हों। एक अलग किस्म की विज्ञान कपोल कल्पित इस कहानी में उकेरी गई है जिसमें समय-काल तब का है जब एक जल-प्रलय के बाद समूची पृथ्वी पानी में डूब चुकी है। सिर्फ वही जीव बचे हैं जिन्हें पानी में जीवित रहना आता है। लेकिन मछलियों, मगरमच्छों आदि के बीच इंसान का एक बच्चा भी बचा हुआ है। एक ऐसा बच्चा जिसे कुदरत ने पानी के अंदर जीवित रहना सिखा दिया। अब वह अपनी मछली मां और मछली दोस्तों के साथ समंदर के नीचे बसे मखरी नामक नगर में रहता है। लेकिन पानी की इस दुनिया में भी छल-कपट, होड़-ईर्ष्या, लालच-द्वेष आदि हैं। 

अपने फ्लेवर से यह कहानी रुडयार्ड किपलिंग की ‘द जंगल बुक’ सरीखे लगती है जिसमें इंसान के एक बच्चे को भेड़ियों ने पाला और वह बच्चा जंगल का होकर रह गया। वहां शेर खान उस बच्चे मोगली का दुश्मन था तो यहां मगरमच्छ इस बच्चे ‘मानु’ के पीछे पड़े हैं। जंगल बुक अगर जंगल की कहानी थी तो यह उपन्यास हमें पानी के नीचे की अनदेखी दुनिया में ले जाता है। उधर अपने कलेवर में यह कहानी हमें हॉलीवुड की फिल्मों की याद दिलाती है, खासतौर से एनिमेशन फिल्मों की। इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता भी है कि जैसे हम कोई एनिमेशन फिल्म देख रहे हैं। खास बात यह भी है कि इसकी भाषा भी उन फिल्मों के संवादों सरीखी है-सीधी, सरल, बिना किसी सजावट के यह भाषा एक आम पाठक को अपना बना लेती है और पहले ही पन्ने से वह इसे पढ़ते-पढ़ते अपने जेहन में जो फिल्म देखनी शुरू करता है वह सीधे आखिरी पन्ने पर आकर ही खत्म होती है।

उपन्यास में दो-एक जगह शब्दों और वाक्य-विन्यास का हेरफेर जरा-सा खटकता है। कहीं-कहीं ऐसा भी लगता है कि घटनाएं पाठक के मन की दिशा में नहीं जा रही हैं लेकिन जल्दी ही वह सही लगने लगती हैं। उपन्यास खत्म होता है तो मन में कसक बाकी रह जाती है कि यह इतनी जल्दी क्यों खत्म हुआ। दुर्भाग्य ही है कि ऐसा लेखन अपने यहां ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाता। 

            

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TAGS: Book Review, Pani Ki Duniya, Deepak Dua
OUTLOOK 29 June, 2021
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