पुस्तक समीक्षा : ग्यारहवीं ए के लड़के
"ग्यारहवीं ए के लड़के" फिल्म लेखक और कवि गौरव सोलंकी की किताब है। कहानियों की यह पुस्तक राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। यह कहानी संग्रह आधुनिक कहानियों का प्रतीक कहा जा सकता है। संग्रह में कुल छह कहानियां हैं। सभी कहानियां लीक से हटकर हैं। इनकी भाषा तो सामान्य है मगर कथा वस्तु वह नहीं है जो आम तौर पर हम हिंदी कहानियों में पढ़ते हैं। इन कहानियों में कथानक वह है, जिसे हम अक्सर दबी हंसी के साथ हल्की ख़ामोशी में अपने अतरंगी मित्रों के साथ साझा करते हैं।
कहानी संग्रह आज के समकालीन समाज और उसकी बेचैनी को बहुत अच्छी तरह उकेरता है। कहानियां पढ़ते हुए लगता ही नहीं कि यह किसी दूसरे यानी राम, श्याम, रमेश, सुरेश की कहानी है। महसूस होता है कि यह तो मेरा जीवन, मेरा दुख, मेरा द्वंद, मेरी बेचैनी है, जो काग़ज़ पर लिख गया है। हर कहानी क्योंकि युवाओं के इर्द गिर्द है, उनकी ऊहापोह को रेखांकित करती है, इसलिए बड़े वर्ग को कनेक्ट भी करने में कामयाब होती नज़र आती है।
कहानियों में सब कुछ नया सा, अपना सा, मौलिक सा महसूस होता है। इस शैली के चलते कई बार घुमाव बहुत ज़्यादा हो जाता है और वह सिरा छूट जाता है, जिसकी बात कहानी कह रही होती है। मगर उसका भी कुछ ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। पढ़ते वक़्त कहानी की पंक्तियों में छिपे कथानक से ज़्यादा ज़रूरी वह भाव लगता है, जो कहानी पैदा कर रहा होता है। गौरव सोलंकी ने उन मुद्दों, प्रश्नों, मनोभावों को लिखा है, जिसे अक्सर साहित्यिक समाज में अश्लील कह दिया जाता है। लेकिन यह समाज का वह पक्ष है, जिसे एड्रेस करना बहुत ज़रूरी है। आज जो समाज में विषमताएं हैं, कुरीतियां हैं, उनकी एक बड़ी वजह यह भी है कि हमने आज तक इन मुद्दों पर चुप्पियां ओढ़ रखी हैं। गौरव सोलंकी की यह कहानियां बहुत धीमे स्वर में ही सही मगर इन चुप्पियों को तोड़ती नज़र आती हैं।परिपाटी से हटकर कुछ पढ़ने के शौक़ीन हैं तो किताब खरीदकर पढ़ सकते हैं ।
पुस्तक - ग्यारहवीं ए के लड़के
लेखक - गौरव सोलंकी
प्रकाशन - राजकमल प्रकाशन
मूल्य - 150 रुपए पेपर बैक संस्करण