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18 June 2015

कसाब-गांधी के संवाद के बहाने

पंकज सुबीर अपने समकालीन कथाकारों में अपनी रोचक भाषा, कहानी में अंतर्निहित व्यंग्य, किस्सागो शैली के लिए जाने जाते हैं। इस कहानी संग्रह में भी उनकी वे विशेषताएं उभर कर सामने आती हैं।

‘कसाब.गांधी@यरवदा.इन’ एक गंभीर कहानी है। गंभीर इसलिए कि यह कहानी कसाब और गांधी को प्रतीक बनाकर कई सारे प्रश्नों के उत्तर तलाशती है। यरवदा जेल में कसाब और गांधी के बीच एक लंबी बातचीत के माध्यम से लेखक ने आतंकवाद और उसके बरअक्स कई सारी समस्याओं के जड़ में जाने का प्रयास किया है। कहानी में दो ही पात्र हैं कसाब और गांधी। दोनों के बीच बातचीत को लेखक ने बड़े प्रभावी अंदाज में गढ़ा है। इस प्रकार के बहुत लंबी कहानी होने के बाद तथा केवल दो ही पात्र और उनके बीच की बातचीत होने के बाद भी कहानी कहीं पर बोझिल या उबाऊ नहीं हुई है। कसाब की आक्रामकता तथा गांधी के शांत उत्तरों को समेटे हुए कहानी धीरे-धीरे चलती है। इस बातचीत में भारतीय उपमहाद्वीप की कई सारी सामाजिक और भौगोलिक समस्याओं को कुरेदने का प्रयास किया गया है।

संग्रह की दूसरी कहानी ‘मुख्यमंत्री नाराज थे’ छोटी कहानी है। सत्ता और अफसरशाही के बीच के संबंधों को गहराई से देखती है यह कहानी। कहानी की भाषा व्यंग्य की भाषा है और वही इस कहानी की मुख्य ताकत है। कहानी में कई छोटे छोटे टुकड़े इस प्रकार से जोड़े गए हैं कि कहानी बहुत रोचक बनी है। एक घटना को कहानी में बदला गया है लेकिन इस बदलने के दौरान जिस प्रकार के प्रयोग किए गए हैं उनके चलते यह एक सामान्य घटना नहीं रह जाती है।

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संग्रह की तीसरी कहानी ‘लव जिहाद उर्फ उदास आंखों वाला लड़का’, सांप्रदायिकता के कई सारे प्रश्नों के साथ जूझते हुए चलती है। यह कहानी संग्रह की एक और महत्तवपूर्ण कहानी कही जा सकती है। इन दिनों लव जिहाद को लेकर कई चर्चाएं हैं ऐसे में इस कहानी का आना लेखक की सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह कहानी भी बहुत ही दिलचस्प शैली में लिखी गई है। हरे रंग और गहरे सिंदूरी रंग को लेकर लेखक ने जो प्रयोग किए हैं वे कहानी को रोचक बना देते हैं। कहानी में लड़के तथा लड़की के बीच के अंतरंग दृश्यों को लेखक ने अद्भुत तरीके से रचा है। कुछ फिल्मी गानों का बीच-बीच में प्रयोग इतने अच्छे तरीके से हुआ है कि ऐसा लगता है मानो ये गाने कहानी के लिए ही हैं। कहानी में किसी भी पात्र का कोई नाम नहीं है, उसके बाद भी पाठक कहीं भी कहानी में असहज महसूस नहीं करता है।

‘कसाब.गांधी@यरवदा.इन’ तथा ‘लव जिहाद उर्फ उदास आंखों वाला लड़का’ ये दोनों कहानियां ठहर कर लिखी गई हैं। जिनमें लेखक ने कलम को बहुत साध कर चलाया है। लंबी कहानी ‘चिरई चुरमुन और चीनू दीदी’, ये कहानी वास्तव में उपन्यास होने की संभावनाएं लिए हुए है। लंबी होने के बाद भी अपने कथानक के चलते पठनीय बनी रहती है यह कहानी। कहानी बचपन से किशोर होते बच्चों की फैंटेसी की कहानी है। जहां देह को लेकर एक प्रकार की उत्सुकता बनी रहती है और उसी उत्सुकता को लेकर कई सारी घटनाएं घटती हैं। घटनाएँ जो रोचक हैं और गुदगुदाती भी हैं।

पंकज सुबीर को किस्सागो शैली का माहिर माना जाता है। यह कहानी भी उसी शैली में लिखी गई है। लेखक ने इस कहानी में क़िस्सागो शैली में अपनी महारत का एक बार फिर से परिचय दिया है। दिलचस्प संवादों और रोचक घटनाओं को लेखक ने कहानी में बहुत अच्छे तरीके से उपयोग किया है। 

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TAGS: pankaj subeer, shivna prakashan, yah vaha sahar to nahi, bhartiya gyanpeeth, पंकज सुबीर, शिवना प्रकाशन, यह वह सहर तो नहीं, भारतीय ज्ञापपीठ
OUTLOOK 18 June, 2015
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