पुस्तक समीक्षा: राष्ट्रकवि का महत्व
अरविन्द कुमार सिंह के संपादन में राष्ट्र कवि दिनकर पर आई महत्वपूर्ण पुस्तक ‘ज्योतिर्धर कवि दिनकर’ रामधारी सिंह दिनकर के साहित्य पर नई रोशनी डालती है। दिनकर के जीवन पर यह महत्वपूर्ण पुस्तक है। जिसमें उनके जीवन के कई पहलुओं को समेटा गया है। भिन्न अवसर और काल में भिन्न-भिन्न लेखकों और कवियों के संस्तुति लेखों का संकलन गागर में सागर भरने जैसा है। पुस्तक के चरितनायक पर एक साथ इतनी कविताओं और संदेशों का संग्रह राष्ट्र कवि के आयाम के बारे में बहुत कुछ बता जाता है।
दिनकर महर्षि भारद्वाज और याज्ञवल्क्य की भांति प्रथम पांक्तेय हैं। हालांकि दिनकर की लेखिनी में ओज और माधुर्य का परस्पर विरोधी स्वभाव तिरोहित हो गया है, परशुराम की प्रतीक्षा और उर्वशी इसका ज्वलंत उदाहरण है। उदारचेता बाल कवि वैरागी के शब्दों में
हे तीन लोक चवदहों भुवन!
वक्तव्य सुनो इस वंशज का
दायित्व निबाहूंगा पूरा
मैं दिनकर जैसे पूर्वज का
आश्वस्त रहो हे पूज्य जनक!
वाणी में अंश तुम्हारा है
कुल, गोत्र भले ही हो कुछ भी
पर ये सारा वंश तुम्हारा है।
यह पंक्तियां न केवल संकलन की गरिमा बढ़ाती हैं, वरन अनुवर्ती रचनाकारों की पीढ़ी को झकझोरती है। ‘ज्योतिर्धर कवि दिनकर’ में एक साथ हिंदी के मूर्धन्य कवियों और समीक्षकों के भावोद्गार संकलित हैं, जिनके माध्यम से दिनकर के विराट व्यक्तित्व और लेखकीय कृतित्व को समझने-परखने में सहायता मिलती है। गोपाल दास नीरज की लेखनी से दिनकर के निधनोपरांत एक आह निकलती है, जो आक्रोश में परिवर्तित हो जाती हैः
तुझे नहीं मालूम काव्य का दिनकर अस्त हुआ है
जिसने दिया उजाला सबको वह तम ग्रस्त हुआ है।
नीरज जी ने दिनकर के पुनार्गमन की संभावित आशा ही नहीं, विश्वास प्रकट किया है, क्योंकि उनके जाने से -
कविता भरती आह, शीश धुनती नागरी भाषा
अरे ठहर जा काल, खत्म कर अपना खेल-तमाशा।
वह आएगा, फिर आएगा, उसकी करो प्रतीक्षा
मृत्यु नहीं है अंत, नये जीवन की है वह दीक्षा।
महाकवि दिनकर ने भी लिखा था -
रोने की क्या बात
जन्म का यही कहीं उद्गम है
पर्वत का वह मूल
जहां से सभी स्रोत चलते हैं
आखिर को हम पहुंच गए ही वहां
जहां से शुरू किया था
कफन और पोशाक छठी की
दोनों एक वसन है।
जोश मलीहाबादी, भवानी प्रसाद मिश्र, शिवमंगल सिंह सुमन, बाल कवि बैरागी, गोपाल दास नीरज, आरसी प्रसाद सिंह, डॉ. जगदीश गुप्त, फणीश्वर नाथ रेणु जैसे करीब पैंसठ कवियों की काव्य पुष्पांजलि, हमारे राष्ट्रकवि को एक शब्द तर्पण है।
पुस्तक के संपादक बचपन से दिनकर के साहित्य और उनसे संबंधित सामग्रियों का संग्रह करते रहे हैं। वे दिनकर के पौत्र भी हैं। प्रस्तुत पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है। नई पीढ़ी के लिए यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें दिनकर के साहित्यिक अवदान के बारे में विस्तार से सामग्री है।
दिनकर की समस्त सामग्री को संपादक ने बड़े जतन से संग्रहित किया है।
ज्योतिर्धर कवि दिनकर
संपादकः अरविन्द कुमार सिंह
प्रकाशक | समन्वय प्रकाशन
पृष्ठ संख्याः 132 |मूल्यः 250 रु