Advertisement
22 August 2022

पुस्तक समीक्षा: ‘‘सहसा कुछ नहीं होता’’

कवयित्री- रक्षा दुबे चौबे

पृष्ठ संख्या - 172

प्रकाशक- बोधि प्रकाशन  

Advertisement

समीक्षक - सुषमा ‘शांडिल्य’

रक्षा दुबे चौबे के काव्य कर्म के बारे में आलोचक विजय बहादुर सिंह जी के विचार, ‘‘सम्यक आलोचनात्मक दृष्टि ने मन को आह्लादित और गौरव से भरने के साथ-साथ लेखकीय कर्म के दायित्व और अनुशासन बोध से भर दिया।’’ रक्षा अतिशय भावुक कवयित्री हैं। आज जब अधिकतर लोग सच कहने-लिखने-बोलने में हिचकिचाते हैं, तब षड्यन्त्रकारी चुप्पी के कालखण्ड में कर्तव्यबोध के प्रति सजग रक्षा ज्वलंत मुद्दों और पीड़ाओं-वेदनाओं पर लिखना अपना धर्म समझती हैं। जहां छ्द्म बौध्दिकता के दंभ से सराबोर, आत्ममुग्ध, स्वयं की पीठ थपथपाते, साहित्य जगत के तथाकथित, स्वघोषित पुरोधा, ज्वलंत विषयों पर लिखने में घबराते हैं, वहीं रक्षा बेबाक लिखती हैं। कतिपय पाठकों के क्रोधित होने, कविताओं के विवादग्रस्त

होने के भय से अविचलित, समाज में व्याप्त रुग्ण, कुत्सित-दूषित मानसिकता वाले नग्न सत्यों को रक्षा सहजता से उद्घाटित करती हैं।

रक्षा की कविताएं नवोदित रचनाकारों के लिए, पाठशाला के पाठों की तरह प्रेरणास्पद हैं। रक्षा की कविताओं का पारायण करने वाले उनकी मेधा के कायल हैं। वे आसपास घटित घटनाओं के सूक्ष्म अवलोकन के उपरांत कविताएं रचती हैं। कलम रथ की सारथी रक्षा द्वारा उकेरे शब्द मुखर हो संवाद कायम करते हैं। जड़ शब्दों में चेतना संचारित होती है और शब्द चित्र में चरित्र उभरते हैं। शब्दों के माधुर्य से पाठकों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने के गुण वैशिष्ट्य से भरी रक्षा अपनी साधना में खरी उतरती हैं।

रक्षा की लघु कविताएं मन को गहरे भेदकर सोचने पर बाध्य करती हैं कि समाज किस दिशा में अग्रसर है। समाज में व्याप्त विडंबनाओं, विद्रूपताओं, प्रतिकूलताओं को सजग दृष्टि से अनुभव करने के कारण रक्षा के हृदय में विद्यमान टीस उन्हें विचलित करती है। रक्षा छिद्रान्वेषी नहीं हैं पर उनकी सूक्ष्म दृष्टि से कुछ नहीं बचता। मर्मस्पर्शी कविताओं के साथ उनके आलेख, संस्मरण भी प्रभावशाली होते हैं। पाठक सरल शैली में रचे चरित्रों, पात्रों के साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं और कविताओं में निहित पात्र, परिवेश, उन्हें आसपास के लोग और स्थान लगते हैं। कई कविताओं में स्त्री

केंद्र में है पर विविध विषयों पर आधारित अन्य कविताओं में समाज की नग्न सच्चाई के साथ झूठ-फरेब के मुखौटे अनावृत हुए हैं और समाज के वर्तमान हालातों यथा भूख, विद्रूप, असमानता की विडंबनाएं परिभाषित हैं। उनकी अभिव्यक्तियों में भावनाओं की गहराई और अव्यक्त छटपटाहट है।

रक्षा ने कुछ कविताओं में, बाज़ारों में अंतड़ियों की क्षुधा शांत करने हेतु भिक्षा मांगते, बंदर-डमरू के साथ सड़कों पर तमाशे करते मदारी, गाड़ियों के आसपास सामान बेचने को मंडराते-रिरियाते, उपेक्षित वर्ग के हाशिए पर स्थित बेचारों के विषय में बखूबी लिखा है, जिन्हें हिकारत से देखकर अमानवीय व्यवहार किया जाता है। रक्षा की कविताएं पढ़कर आशा बंधी है कि आगामी संग्रह में रक्षा और सार्थक रचनाओं का सृजन करेंगी। भविष्य में सुंदर बिम्ब युक्त, सत्य उद्घाटित करती रक्षा की लेखनी के पारायणों का अवसर प्राप्त होगा।

 

 

 

रक्षा नारी विमर्श की बात नहीं करतीं पर स्त्रियों के शोषण-दमन, उत्पीड़न, दर्द-पीड़ा को भली-भांतिजानती हैं। मानवीय मूल्यों की संरक्षिका रक्षा समानता में विश्वास करती हैं। कविताओं में स्त्री के मुखरित मौन में पाठक घर-परिवार, नाते-रिश्तेदार, परिचित स्त्रियों को पहचान सकते हैं। रक्षा ने विश्व की आधी आबादी अर्थात नारी के अधिकांश स्वरूपों को प्रस्तुत किया है। उनकी कविताओं में ग्रामीण, शहरी, कामकाजी, परम्पराएं पालन करती संस्कारी नारियां, नए ज़माने के अनुरूप स्वयं को ढालती, समझौतेपूर्ण रवैये वाली, सुलझे विवेक से परंपराओं को तर्क की कसौटी पर कसके ना मानती विद्रोहिणी आदि को बखूबी परिभाषित किया है।

 

 

 

रक्षा की कविताएँ साहित्यिक, सुरुचिपूर्ण और रचनात्मक हैं जिनमें लालित्य और बिना प्रयास ख़ुद को रचने की सृजनशीलता है। रक्षा की रचनाओं में स्वाभाविक रूप से देशज, तत्सम, तद्भव शब्द आये हैं, यथा, ‘दोस्त’ कविता में ‘गर्मी’ की जगह ‘गर्माइश।’ ‘जड़ें’ कविता में अरबी शब्द ‘ख़फ़ीफ’ और फ़ारसी शब्द ‘ज़ुम्बिश’ के मेल का मौलिक प्रयोग है। ‘उत्कंठिता’, ‘अभिसारिका’, ‘विप्रलब्धा’, ‘आवर्तन’, ‘वासकसज्जा’ जैसे क्लिष्ट, परिष्कृत तत्सम शब्दों का प्रयोग है। माटी के प्रति प्रेम व्यक्त करते देशज शब्दों यथा ‘चिन्हारी’, ‘पनियाई आंख’, ‘अमकटना’, ‘लुचई’ ‘लोटते-पलोटते’, ‘छुपम-छुपाई’, ‘पछुआ-पुरवा’ और ‘परछी-दुआर’ के प्रयोग में उन्हें कतई शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई, जैसी तथाकथित बनावटी दंभियों को होती है।

 

रक्षा की अद्भुत कविताओं में ‘ट्रैफिक सिग्नल’ औरत की असीम वेदना बयान करता निर्मम, नग्न सत्य है तो ‘व्यथा’ काबिलेगौर हृदयगत वेदना। ‘बहुसंख्यक औरतें’ कमोबेश हर औरत का दर्द का दर्शाता है तो ‘चरित्रहीन औरतें’ पुरुषवादी सोच पर करारा तमाचा है। ‘जीवन की सांझ’ उम्रदराज़ औरत की गुहार है तो ‘कुबेराक्षी’ नारी की शोचनीय दशा पर प्रहार।

रक्षा ने अपनी कविताओं का संग्रह प्रकाशित करके सराहनीय कार्य किया है। हिन्दी साहित्य जगत के प्रसिद्ध कवि ‘राजेश जोशी जी’ ने पुस्तक के भीतरी फ्लैप पर आशीर्वचन लिखा है। सुंदर मुखपृष्ठ मणिमोहन मेहता द्वारा चित्रित है और संग्रह के पिछले पृष्ठ पर रक्षा की शीर्षक कविता ‘सहसा कुछ नहीं होता’ प्रकाशित है। बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित १७२ पृष्ठों में संकलित ११३ कविताओं वाला यह काव्यसंग्रह बेस्टसेलर है। उनके पाठकों को उम्हैमीद होगी कि समाज में व्याप्त सड़ी-गली मान्यताओं, जबरन थोपी, अनचाही विषमताओं को अनावृत करते हुए रक्षा बहुत कम प्रतिस्पर्धा वाले सत्य के कंटकाकीर्ण पथ पर बढ़ती रहें।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Book Review, ''Sahasa Kuchh Nahi Hota'', Sushma Shandilya, Outlook Hindi
OUTLOOK 22 August, 2022
Advertisement