पुस्तक समीक्षा: सोलो ट्रिप पर जाती सखी
पुस्तक की सभी कविताएं निस्संदेह अच्छी हैं लेकिन ‘बिंदु’, ‘सफ़ेद कमीज’, ‘समानांतर ब्रह्माण्ड’, ‘समयवाद’, ‘आधे रास्ते’, ‘हाईवे’ ‘अ वेन्ज़्डे’, ‘श्वास निधि’, ‘ज़बान" और ‘थोड़ा अर्जेंट है’ अपनी खास छाप छोड़ती हैं। स्वाति की कविताओं में गजब की विविधता है।
‘बिंदु’ कविता ख़त्म करते-करते लगता है कि जीवन का हर पल, हर छोटी-बड़ी घटना, हर क्रिया मील का पत्थर है, जो व्यक्तित्व को न सिर्फ गढ़ता है बल्कि नया आयाम भी देता है। इस कविता में जीवन का पूरा फलसफा नज़र आता है। कविता का अंत यक्ष प्रश्न की तरह होता है। कवयित्री पूछती है, किस बिंदु से जुड़ना चाहते हैं? सवाल में उलाहना है कि व्यक्ति से जुड़ोगे या उसके व्यक्तित्व के किसी पहलू से? और ये जुड़ाव तुम्हारे बारे में भी बहुत कुछ कह देगा। ऐसे ही ‘सफ़ेद कमीज’ असल में विरोधाभास में ही किसी चीज़ के महत्व को जानने की कवायद है। कविता पढ़ कर लगता है कि दो विरोधाभासी चीज़ें या प्रक्रियाएं असल में एक दूसरे की पूरक होती हैं।
विचार के स्तर पर बहुत ही महीन कविता है, समयवाद। इसे पढ़ने के कुछ समय बाद एहसास होता है कि कविता समय के प्रवाह की चर्चा नहीं कर रही बल्कि असल में ये कोरोना काल का आर्तनाद है। ‘समानांतर ब्रह्माण्ड’ दो अलग-अलग दुनिया की व्यथा है, जहां व्यस्त पुरुष और इंतज़ार करती स्त्री की दो अलग अलग दुनियाएं चित्रित होती हैं और व्यस्तता की प्रासंगिकता को चुनौती देती हुई ख़त्म होती है।
‘आधे रास्ते’ अपूर्णता और इंतज़ार का अद्भुत संगम और उत्सव है। ‘हाईवे’ कविता असल में ‘रिवर्स गियर’ की पूरक है। इसमें मिलन के बाद लौटने का विषाद है और वो व्यक्ति पर इस कदर छाया है कि उसके हर काम, हर विचार और हर क्रिया को प्रभावित कर रहा है।
पूरक कविताओं के नज़रिये से देखें तो दो कविताएं ‘अ वेन्ज़्डे’ और ‘थोड़ा अर्जेन्ट है’ आपाधापी भरी ज़िन्दगी में छोटे-छोटे पल चुराने की कातर अपील है। इसी श्रंखला में श्वास निधि, ज़बान और सांस जैसी कविताएं हर समय स्वतंत्रता और संतुष्टि, वरण और आवरण, शोर भरी ज़बान और मौन निर्मल शरीर के बीच विकल्प और सही चुनाव के सतत संघर्ष की गाथा हैं।
स्वाति की कविताओं को पढ़ कर ऐसा लगता है कि आप सूक्ष्म से लेकर विराट तक विषयों के विस्तार से परिचित हो रहे हैं। कवयित्री में वो सभी सरोकार हैं जो एक संवेदनशील कवि में होते हैं लेकिन उनकी अभिव्यक्ति का तरीका, उसके बिम्ब और उसके उदाहरण सन 1970, 80 और 90 के दशक के साहित्यकारों से नितांत अलग हैं। शायद ऐसा इसलिए है कि कवयित्री के अनुभव आर्थिक उदारीकरण के बाद विकसित हुए आधुनिक भारत में स्थित हैं।
एक और बात जो स्वाति की अभिव्यक्ति को नयापन देती है वह यह कि उनका विरोध, सहमति, प्रेम और विरक्ति सभी में शालीनता है। न विरोध में कोई चीख चिल्लाहट है, न प्रेम में अति मुखर भावुकता है। ये शांत आत्मविश्वास की निशानी है। सब कुछ इशारे में है और इसी कारण उसमें बहुत गहराई आ जाती है।
लगता है उनका ये पहला संग्रह लम्बे कालखंड में लिखा गया है और उनके जीवन के अब तक के अनुभवों का निचोड़ है। अब उनके लिए चुनौती ये है कि दूसरे कविता संग्रह में नए बिम्ब, अनुभवों और विचारों की अभियक्ति कैसी होगी? वही कविता की दुनिया में उनका कद तय करेगा।
सोलो ट्रिप पर जाती सखी
स्वाति शर्मा
भावना प्रकाशन
250 रुपए
पृष्ठः 152
(समीक्षा केशव चतुर्वेदी द्वारा)