पुस्तक समीक्षाः शर्ट का तीसरा बटन
दोस्त, शरारतें, बरगद की झूलती जड़ें, नदी का बहता पानी, खूबसूरत लड़की, खलनायक और मन में कौंधते कुछ अनसुलझे प्रश्न। सब के बचपन की तस्वीर में अमूमन ये सारे दृश्य मौजूद होते हैं। इन्हीं दृश्यों के इर्द-गिर्द घूमता है मानव कौल का हाल ही में आया उपन्यास शर्ट का तीसरा बटन। मानव कौल का यह आठवां उपन्यास है।
शर्ट का तीसरा बटन तीन पक्के दोस्तों राजिल, चोटी और राधे की कहानी है। छठी कक्षा में पढ़ने वाला राजिल संकोची स्वभाव का है। वह किसी भी प्रश्न का सटीक उत्तर देने में स्वयं को असमर्थ पाता है। यहां तक कि अपने दोस्तों के साथ रहते हुए भी वह आत्मग्लानि से भर जाता है और अपने शर्ट के तीसरे बटन पर आंखें जमाए खड़ा हो जाता है। चोटी की जिंदगी की कड़वी सच्चाई उसे आहत करती है जबकि ग़ज़ल की खूबसूरत देह और सुलझी बातें उसके मन में घुमड़ते प्रश्नों के काले मेघ को कुछ शांत करते हैं।
सवालों के जवाब तो उसे राधे के पिता भी देते हैं मगर शांति नहीं। गजल ने उसे भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा पढ़ने को दी। उसे पढ़कर राजिल अपने आसपास उपन्यास के किरदारों को देखने लगता है। वह स्वयं को भी एक किरदार समझता है। उपन्यास की कहानी एक नया कलेवर लिए आगे बढ़ती है।
यह बचपन के मनोविज्ञान पर आधारित है। एक बच्चा अपने परिवार, दोस्तों और समाज से मिले अनुभवों की व्याख्या अपनी समझ मुताबिक करता है। कभी जूझता है, कभी कहता है, कभी मां की गोद में सिर रखकर लेट जाता है।
लेखक ने कहानी में पाठक के अंतर्मन को छुआ है। कहानी का प्रवाह पाठक को बांधे रखता है। बच्चे के नजर से लिखी गई इस कहानी में लेखक ने बड़ी खूबसूरती से अपनी बात भी कही है। जो कहानी का सौंदर्य कई गुना बढ़ा देती है। मानव कौल की सधी और प्रवाहमयी भाषा इस कहानी को मजबूती भी देती है और पठनीय भी बनाती है।
शर्ट का तीसरा बटन
मानव कौल
हिन्द युग्म
249 रुपये
समीक्षाः सरस्वती रमेश