शहरनामा/ तिरुवनंतपुरम: हरा भरा, समुद्र की लहरों सा जीवंत शहर
एवरग्रीन सिटी ऑफ इंडिया
शहर के रग में हम है भी कि नहीं, शहर हमारी तबीयत में है। 14 अप्रैल 2009 को पहली बार केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आई। उस दिन विषु था। रात के साढ़े दस बज रहे थे। साफ-सुथरी सड़कें वैपर लाइट में जगमगा रही थीं, सड़क के दोनों तरफ पीले फूलों से लदे कन्नीकोना के वृक्ष। चारों तरफ फैली हरियाली को देखकर समझ आ गया, क्यों गांधीजी ने इसे ‘एवरग्रीन सिटी ऑफ इंडिया’ कहा था। तिरुवनंतपुरम जिले का 78 किमी लंबा समुद्री तट है, जिसमें कोवलम, पुवार, वर्कला, वेली लेक, विंझिंम, शंखमुगम जैसे कई खूबसूरत तट हैं। देर रात शंखमुगम के तट पर बैठकर मछुआरों की लौटती नावों की रोशनी को धीरे-धीरे पास आते देखना आंखों में गजब का रोमांच भर देता है।
कहानी एयरपोर्ट और अराट की
त्रिवेंद्रम एअरपोर्ट की स्थापना 1932 में रॉयल फ्लाइंग क्लब ने त्रावणकोर के राज परिवार की जमीन पर की थी। 1991 में जब यह अंतरराष्ट्रीय एअरपोर्ट में तबदील हो गया तब त्रावणकोर राज परिवार के इस आग्रह को मान लिया गया कि साल में दो दिन जब पद्मनाभस्वामी मंदिर से यात्रा अराट, शंखमुगम के तट की ओर जाएगी उस समय वे हवाई जहाजों का परिचालन बंद रखेंगे ताकि अराट रनवे पर से होकर गुजर सके। ऐसा दो त्योहारों में होता है। पहले त्योहार का नाम है पनकुन्नी, यह त्योहार मार्च या अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। दूसरा त्योहार है अल्लपसी जो अक्टूबर या नवंबर के महीने में मनाया जाता है। पनकुन्नी में पांचों पांडव के विशाल रंग-बिरंगे पुतले बनाए जाते हैं और उन्हें मंदिर के पूर्वी द्वार पर सजाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि इससे इंद्र देवता प्रसन्न होते हैं।
जिंदगी के महीन रेशे
नायाब इमारतों से सज्जित शहर में एक तरफ भारतीय-सीरियन वास्तु शैली में बना नेपियर संग्रहालय है, तो दूसरी तरफ द्रविड़ और केरल वास्तु शैली के सुंदर समन्वय से बना पद्मनाभस्वामी मंदिर। गोथिक शैली में बने ‘सीएसआइ क्राइस्ट चर्च’ की कलात्मकता आपके मन को बांध लेगी। वहीं पालयम की जुमा मस्जिद और भीमापल्ली की गुलाबी मस्जिद आपकी आंखों में विस्मय भर देगी। 1931 में त्रावणकोर की महारानी द्वारा पत्थर से बनवाया गया तिरुवनंतपुरम का सेंट्रल रेलवे स्टेशन भी अनोखा है। कोनेरा बाजार, पट्टम, एम.जी. रोड और चालाई में पसरी दुकानों को देखकर, वहां आते-जाते लोगों को टोहते हुए आप यहां की जिंदगी के कई महीन रेशों से रू-ब-रू होते हैं।
केले के पत्तों पर साद्या
विशेष अवसरों पर केले के पत्तों पर साद्या खिलाया जाता है, जिसमें केला, अचार, चटनी, तोरण, अवियल, इंजीकरी, सांभर, परिप्प, पुलिशेरी, रसम, पापड़, वोली और कई प्रकार की खीरें (पायसम) परोसी जाती हैं। नेतोली, नेम्मीन, झींगा, चूरा, चाला, आवोली, आइला, तीरंडी, किलीमीन, इट्टा, पारावा आदि मछलियों के अलावा केकड़े, स्क्वीड आदि भी यहां खूब खाए जाते हैं। नाश्ते में लोग उन्नीअप्पम, पुट्ट, दोसा, पैथ्थरी, इडली, अप्पम, उपमा, चपाती, पूरी आदि खाते हैं। शाम को मीटर कॉफी या चाय के साथ वड़ा, केले या कटहल के चिप्स। मुरूकु, पड़मपूरी, परिप बोंडा बड़े शौक से खाते हैं। पीने के लिए लोग रक्तरोहन की छाल में उबले गर्म पानी का प्रयोग करते हैं।
जीवन का हरा सुख
वेस्ट फोर्ट के आस-पास नृत्य संगीत सीखते बच्चों में स्वाति तिरुनल मुस्कुराते हैं। कंटेम्परेरी आर्ट म्यूजियम में अपनी पेंटिंग को संभालते युवा में होते हैं राजा रवि वर्मा। नृत्य, संगीत, चित्रकला में पारंगत सैकड़ों लोगों की जन्म और कर्मस्थली रहा है यह शहर। यह अय्यप्पा पण्णिकर और सुगत कुमारी की कर्मभूमि रहा है। भारतीय ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी से सम्मानित ओएनवी कुरुप ने यहीं के यूनिवर्सिटी कॉलेज से स्नातकोत्तर किया था। कीली और कर्मना नदी के पास खड़ी होकर बिगड़ते मौसम, बदलते शहर, फैलते प्रदूषण को देखकर मन खट्टा हो जाता है। लेकिन जब आप पुलमुड्डी या अगस्त्य माला के सुरम्य एकांत में विचरते हैं, आकुल्लम की झील में विहार करते हैं तो फिर से उम्मीद जाग उठती है। हार्नबील, किंगफिशर, टकाचोर, जल कौवे, मंजारी, मैंगोस्टीन, पीपल, बरगद, आम, कटहल, पैसन फ्रूट, गुलमोहर, जावित्री, नारियल, कन्नीकोना जैसे पेड़-पौधे जीव जंतुओं से समृद्ध पर्वत-पहाड़, नदी-समुद्र, बैक वाटर, खेत-रेत को समेटकर चलता यह शहर मेरे लिए हरा सुख है।
कामरेडों की नगरी
आइआइएसटी, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, इसरो, नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज जैसे कई अनुसंधान केंद्रों पर यह शहर नाज करता है। देश का पहला इन्फोटेनमेंट इंडस्ट्रियल पार्क भी यहीं है। यह शहर आपको जुड़ाव और जगह दोनों देता है। तिरुवनंतपुरम सबका शहर है। मजदूर भी उसी शान से सिर उठाकर चलता है जितना प्रशासनिक अधिकारी। इसका श्रेय शिक्षा और समानता की अवधारणा को आत्मसात कर चुके समाज को जाता है। साहब, मालिक, सर से दूर कामरेडों का शहर है तिरुवनंतपुरम।
शहर नहीं जनाब, जादू!
अय्यपा पण्णिकर कहते हैं, बीमार प्रेमी को प्रेमिका का एक स्पर्श चंगा कर देता है। मैं कहती हूं, उदास आदमी को इस शहर की एक छुअन दुरुस्त कर देती है। यह शहर नहीं है जनाब,जादू है!
(कवयित्री, 2020 में भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित)