लिंकन के दुख की अलग कहानी कहती है यह किताब
भाषा के एक लेख के मुताबिक लिंकन इन द बाड्रो में यह उल्लेख किया गया है कि अब्राहम लिंकन अक्सर उस कब्रगाह पर जाते थे जहां उनके तीसरे बेटे विलियम वैलेस लिंकन को दफनाया गया था। 20 फरवरी, 1862 को टाइफायड बुखार के चलते उनके बेटे की मौत हो गयी थी।
मृत्यु, अनिश्चितता और उससे परे के इंतजार पर चर्चा करते सौंडर्स के नये उपन्यास में इसी ऐतिहासिक तथ्य को मूल आधार बनाया गया है।
तिब्बती बौद्ध धर्म में बाड्रो मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच के अस्तित्व की स्थिति है, जिसकी अवधि व्यक्ति के जीवन में उसके आचरण, व्यवहार, उम्र, मृत्यु के अनुसार बदलती है।
यह पुस्तक उहापोह की स्थिति में मौजूद विली की आत्मा के जीवन और बेटे की मौत के बाद लिंकन की ऐसी ही अनिश्चित स्थिति के बीच समानांतर बात करती है।
पुस्तक में कहा गया है कि एक तरफ उहापोह की स्थिति में रह रहे विली और अन्य आत्माएं आगे बढ़ने में अक्षम हैं तो दूसरी ओर उनके पिता अपने प्रिय बेटे को खो देने से दुखी हैं जबकि युद्ध का सामना कर रहे देश को उन्हें मार्ग पर लाना है और चल रहे घटनाक्रम पर अंतिम निर्णय भी लेना है।
तीन सौ पृष्ठ के इस उपन्यास को ब्लूम्सबरी ने प्रकाशित किया है। यह पुस्तक मौत की निश्चितता से परे रहस्यों से आमना सामना कराती है, एक ऐसा सवाल जिसने मानव जाति को हमेशा परेशान किया है।