यादें: छीना जाना मासूमियत का, आर्किमिडीज की नाक और 'अच्छा सिला दिया तूने...'
उस रोज पंकज की हालत देखने लायक थी। उसकी हंफ़नी में हमें भींगा हुआ आर्किमिडीज़ निर्वस्त्र अवस्था में सिरेक्यूस की सड़कों पर यूरेका-यूरेका चिल्लाते हुए दिखा। हर्षवर्द्धन बोला - 'आराम से बाबू। काहे पगलाए हुए हो?'- पंकज आदतन मजबूर था। उसके लिए किसी भी जानकारी में नाक डुबोना और उस नाक को सबको दिखाते रहना कि 'देखा सबसे पहले, सबसे खास जानकारी मेरे पास है' - प्रिय काम था। आनंद आज भी कहता है - 'ये एक्सक्लूसिव टाइप खबर वाला आदमी मीडिया में न जाकर रेलवे में क्या कर रहा है राम जाने?'- पर फिर भी डीएवी उच्च विद्यालय के मौसमी आर्किमिडीज ने उस रोज धमाका किया था। उसके पास पहली बार टी-सीरीज का असली कैसेट 'बेदर्दी से प्यार' दिखा। कैसेट पर एक मोटी मूँछों में अनजाना अधेड़ चेहरा दिखा। हर्षवर्द्धन खुद को गीतों का एनसाइक्लोपीडिया समझता था लेकिन यह गीतों का चित्रहार उसके हाथ से कैसे निकल गया, यह मसोसने वाली बात थी। बेदर्दी से प्यार? उसके लिए तो चिढ़ने का कारण यह भी था कि पहली बार पंकजवा ओरिजिनल कैसेट कैसे खरीद लिया? ये तो एक रुपया एक गीत भरवाने वाली प्रजाति में अग्रगण्य है। सो उसने जिज्ञासावश पूछा -'ये क्या है अल्बम कि कोई फ़िल्म?'- अब 'नाक' की बारी थी, वही तो उसकी चाहना भी थी। पंकज पेट का गहरा तो वैसे भी न था फिर भी इस बार वह बदले रूप में लग रहा था। शायद एक्सक्लूसिव जो हुआ पड़ा था। उसकी तेजी आनंद से भी नहीं देखी जा रही थी। फितरतन उसने पंकज को कोंच दिया - 'ऐ जिला! वह सब ठीक है तो हर्षवर्द्धन का वाकमैन रिटर्न कर दो'- वाकमैन!! उफ्फ़ ये क्या कह दिया उसने । पंकज संभला ही था कि हर्षवर्द्धन के डूबते बाबाइज्म को तिनके का सहारा मिला। उसने भी तकादा कर दिया - 'बात बता नहीं रहे हो और हंफ़नी का लोड लिए हुए हो। चलो बे! एक हफ्ता से गोला दिए हुए हो। अब कुछ नहीं चलेगा। लाओ मेरा वॉकमैन। हम कलकत्ता से खरीदे थे डेढ़ सौ में और तुम फोकट में ले बैठे।'- इतना सुनते ही पंकज संयत ही नहीं हुआ बल्कि उसकी मुस्कान और हंफ़नी दोनों कम हुई। अब वह असल हुआ -'यही यार हो, यही दोस्ती है? साला एक वॉकमैन के पीछे पगलाए हुए हो और उधर अताउल्लाह खनवा को एक महीना में फाँसी होने वाला है और हमारा कलेजा उसी को सुनकर फटा जा रहा है।'- कहानी में ट्विस्ट आ गया। सूचना ब्लॉस्टिंग थी। 'कौन अताउल्लाह खान?'- महेश, जो अधिकतर मामलों में गूंगावीर बना रहता था, एकाएक परलोक से इहलोक में लौटा - 'कौन अताउल्लाह जी? जंगलिया वाला कि फतहाँ वाला ? उसको फाँसी काहें होगा?'- पंकज का चैनल चालू था -'भक्क मरदे! पाकिस्तान के गायक है वह।'- इस खुलासे के बाद वॉकमैन चर्चा में न रहा, न किसी तरह की आपसी खुरपेंच बची। अब पंकज की भूमिका 'मैं समय हूँ' वाले हरीश भिमानी वाली बन गयी। उसने बहुत लोड लेकर भावुकता से लटपट होकर पूरा किस्सा सुनाया कि 'किस तरह से अताउल्लाह खान की गर्लफ्रेंड ने उससे बेवफाई की और ठीक निकाह के दिन अताउल्लाह खान ने उसको गोलीमार दी और सरेंडर कर दिया। बाद में, पाकिस्तानी कोर्ट ने उसकी फाँसी की सजा सुनाई पर उसकी अंतिम अपील थी कि उसके पास कुछ गीत हैं जिसको वह गाकर रिकॉर्ड करना चाहता है...।' - तभी महेश का एक अफसोस लंबे च्च्च्च के साथ निकला उसने कैसेट हाथ में ले लिया - ' तो माने बेचारा वही ई सब गीत गाया है बेवफाई में? और अब फाँसी चढ़ जाएगा? आह!!'- उसके दुःख को पंकज के 'हाँ' ने हवा दे दी। फिर अथश्री अताउल्लाह खान क़था समापन के बाद सबने पाया कि महेश दोनों हाथ जोड़कर बुदबुदा रहा था -'हे थावेवाली माई! अगर तुम सच में हो तो अताउल्लाह खनवा को बचा लो। हम एगारह ठो नारियल चढ़ाएंगे।'- ग्रुप का पत्थर महेश पहली बार सेंटियाया था। सब दोस्त उसके दुःख में शामिल थे। उस रोज पंकज का कद हमारी नजरों में सबसे ऊँचा हो गया था।
इसके बाद हफ्ता, दस दिन क्या पूरे महीने तक हम सबने कुमार शानू, उदित नारायण सबसे बेवफाई कर दी थी। अब हम सब के पोर-पोर में 'मुझको दफनाकर वो जब वापस जाएंगे/ ओ दिल तोड़ के हँसती हो मेरा और मुझको ये तेरी बेवफाई मार डालेगी'...-समाया हुआ था। एक रोज हमने यह भी देखा कि हर्षवर्द्धन को तिवारी सर डांट रहे हैं। बाद में पता चला कि उसने खाली क्लास में अताउल्लाहमेनिया में डूबकर 'बिखरी बिखरी जुल्फें तेरी/ पसीना माथे पर है/सच तो ये है कि/तुम गुस्से में और भी प्यारे लगते हो/राहे तकना तारे गिनना सादिक काम हमारा है...'सुनाया था तो क्लास में घुस रही लड़कियों ने इसे खुद पर किया कमेंट समझ लिया था। हद तो यह भी हो गयी थी कि उन दिनों में पत्थर महेश पर भी दूब उग आया था। उसने बात-बेबात एक रोज किसी प्रसंग में कह दिया 'तू नहीं तेरी याद सही/मेरा दर्द तुम ना समझ सके' तो हम सब अंदर तक भींग गए - 'हे सदात्मा ! अताउल्लाह खान ये क्या असर है तुम्हारा? भगवान तुमको फाँसी से बचाए।'- दुनिया में भले कहीं धार्मिक उन्माद की बात हो, पर जम्बूद्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशान्तर्गते पाँच हिन्दू, एक मुस्लिम गायक के प्राणों के लिए अपने इष्ट से प्रार्थना कर रहे थे। यह अद्भुत बात थी। एक तो घर से चोरी करके ग्यारह नारियल चढ़ाने की मन्नत माँग चुका था (क्योंकि ग्यारह नारियल खरीदने के लिए उसको घर से चोरी ही करना पड़ता) ।
हमने जान लिया था । संगीत ही सच्चा मानव धर्म है। कोई हजारों मील दूर पाकिस्तान की जेल में सड़ रहा था और इधर उसके लिए हम जैसे न जाने कितने मासूम उसकी हालत पर (संभवतः बड़े बूढ़े भी) आँसू बहाते जार-जार हुए पड़े थे। पंकज की खबर थी कि गुलशन कुमार ने वहाँ जाकर उसके गाने रिकॉर्ड कर लिए हैं और एक नए गायक सोनू निगम से भी गवा कर देश भर में पहुँचाने का पुण्य काम कर रहा है। हर्षवर्द्धन गुलशन कुमार के प्रति श्रद्धा से भर नियम से दूरदर्शन पर टी सीरीज का गीत बहार देखने लगा था। हद तो यह भी थी कि उसने और आनंद ने गुलशन कुमार अभिनीत फ़िल्म 'शिव महिमा' भी इसी श्रद्धा में देखी थी।
हमारे हँसते-खेलते, भागकर फ़िल्म देखते संसार में एक अजीब-सा खालीपन, एक उदासी छा गई थी। हर और एक ही नाम अताउल्लाह खान, अताउल्लाह खान और हर शादी कर रही लड़की 'बेवफा सनम' लगने लगी थी। कोई कड़वे वचन बोल देता तो लगता कह दें 'मैं दुनिया तेरी छोड़ चला जरा सूरत...' लेकिन थावे वाली माई ने शायद 'अब देखके जी घबराता है' मोड में अपने बच्चों की पीड़ा समझ एक रोज चमत्कार कर दिया। हुआ यूं कि ऐसी ही एक उदास साँझ में हर्षवर्द्धन मौनिया चौक के पास कैसेट भरवाने पहुँचा और इस बार वह आर्किमिडीज बनकर लौटा। उसको भी जीवन का अद्भुत सत्य मिल गया। अब उसके पास भी 'नाक' हो गयी थी। उसने वहाँ सुन लिया कि 'अताउल्लाह खान वाली कहानी में ऐसी कोई बात नहीं है सब बकवास है' और बताने वाले को यह सत्य बताने वाले मिंज स्टेडियम के पास के संगीत विद्यालय के गजल गायक हमारे नौशाद भाई थे। यह पहली वाली बात से भी गहरी बात थी। गहरी! नहीं नहीं चौंकाऊ ।
अगले दिन हम सब नौशाद भाई के पास पहुँचे। नौशाद भाई की ग़ज़ल गायकी हर्षवर्द्धन की नजर में धेले भर कीमत के नहीं थे। पर आज उसकी हालत 'मुगले आज़म' के शहंशाह अकबर वाली थी यानी जिस तरह औलाद की चाहत में समूचे हिंदुस्तान का बादशाह उस सच्चे पीर सलीम चिश्ती के चरणों में झुका था ठीक वैसे ही हर्षवर्द्धन (और हम सब भी) अपने सत्य के लिए नौशाद भाई के हारमोनियम के पास धप्प से बैठ गया। नौशाद भाई देश-दुनिया घूमे आदमी थे। उन्होंने अताउल्लाह से लेकर उनके जेरोक्स गायक सोनू निगम तक की कहानी सुना दी।अब कहाँ हम टी-सीरीज, कहाँ नौशाद भाई एचएमवी। सब शीशे की तरह साफ हो गया था और बाकी का काम नौशाद भाई के अट्टहास ने पूरा कर दिया था। हम सबको पंकज पर गुस्सा आ रहा था। खुद को बेवकूफ समझे और बन जाने की खीझ भी भीतर खूब थी। हालात यह कि हम सब चौबे, छब्बे बनने गए थे लौटे दूबे होकर।
वक़्त का मरहम बड़ा होता है। यह सदमे की हालत दो से तीन दिन रही। रवायतन एक रोज स्कूल से भागकर हम सब गन्ना चूसने गए। वहाँ तुरकहाँ नहर के रेलवे पुल पर बैठकर पानी को बहते देखते एकाएक पंकज बोला - 'साला! ऐसे भी धोखेबाज़ हैं सब दुनिया में? हमलोगों के जज़्बात, मासूमियत से खेल दिया गुलशन कुमारवा। साला! कह देते हैं इसको मेरा श्राप लगेगा' - महेश ईंख चबाते हुए बोला - 'तुमसे कोई बोला था ई कहनिया पर भरोसा करने को। हमलोग का भी मजा ले लिए तुम छोड़ो अब इस पुकपुक से कोई फायदा नहीं। लो ऊँख चूसो मजा मारो 'ओ दिल तोड़के हंसती हो मेरा' ।'- यह पंकज का ही मसला नहीं था, महेश तो पहले की तरह 'पुनर्मूषकोभव टाइप' पत्थर हो गया था और उस पर उगी दूब सच्चाईरुपी गाय चर गयी थी।परन्तु बाकी तो पत्थर न थे। पंकज की ही तरह आनंद का भी यही हाल था। उसका मन भी इस छल को कहाँ स्वीकार करने वाला था -'गुलशन कुमार ! अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का... '-
उस रोज हँसी-मजाक-श्राप-अफसोस-गन्ना चुसायी समाप्त हुआ। हम सब छुट्टी का समय होता देख घर की ओर चले, तभी पहले वाले आर्किमिडीज से असल रूप वाले फितरती चुटकीबाज़ हर्षवर्द्धन ने चुटकी ले ली - "निगाहें मिलाकर किया दिल को जख्मी/अदाएं दिखाकर सितम ढा रहे हो वफाओं का क्या खूब बदला दिया है/ तड़पता हुआ छोड़कर जा रहे हो।"- पंकज ने उसको घूर कर देखा और सब हँस दिए।
आपको शायद यकीन न हो पर हमें लगता है कि पंकजवा का श्राप ही था कि बेवफा सनम पर सवार होकर भी गुलशन कुमार के भाई किशन कुमार का इंजन शुरू होने से पहले ही फेल हो गया। उसको मासूमों की हाय लगी थी। थावे माई ने महेश को ही नहीं हम सबको भी बचा लिया था। लेकिन इस पूरे फसाने में असल तो यह हुआ कि हमारे आर्किमिडीज की 'नाक' इस घटना के बाद टूट गयी थी - 'बेदर्दी से प्यार' जो कर बैठे थे।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)