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16 February 2022

एक 'दिव्यांग बच्चे' की लघुकथा

मैं एक दिव्यांग बालक हूँ और यह मेरी लघु कथा है। मेरी उम्र अभी 16 साल है लेकिन मैं बेहद मुश्किल से चल पाता हूँ। इससे पहले मैं 12 वर्ष तक चल ही नहीं पाता था। फिलहाल पिछले तीन-चार सालों से मैं थोड़ा-बहुत चलने में सक्षम हुआ हूँ। दरअसल मुझे सेरेबरल-पाल्सी नामक बीमारी है। यानी मैं एक औटिस्टिक चाईल्ड हूँ।

यह कहानी पटना में 2005 में शुरू हुई थी। दरअसल, मेरे पापा की शादी इस साल हुई थी। इस दौरान मेरे पापा की उम्र 38 वर्ष थी। खैर, यह मेरी कथा है। मैं गर्भ में ही उल्टा पड़ गया था। मेरी मम्मी ने बहुत मुश्किल से वह समय गुजारा। लेकिन मैं संसार में समय से पहले ही आ गया। आया भी तो एकदम महीन, मात्र 1.6 किलो वजन का बच्चा। लेकिन मेरे पापा बहुत खुश थे, उन्हें तो जैसे जन्नत मिल गयी थी। संसार में उन्होंने ऐसी खुशी अभी तक नहीं महसूस की थी। मिठाईयों की तो उन्होंने बरसात सी कर दी थी।

खैर, दिन, महीने तेजी से बीतने लगे। पर मैं उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा था। पटना से मैं दिल्ली चला आया। क्योंकि मेरे पापा की वहाँ अच्छी नौकरी लग गयी थी। लेकिन मैं नहीं बढ़ पा रहा था। डाक्टरों के चक्कर लगने लगे। फिर एम्स के डाक्टरों ने मेरी बीमारी पकड़ ली। मुझे सेरेबेरल-पाल्सी थी। अब तो पापा पर दुखों का पहाड़ सा टूट पड़ा था। वह पूरी तरह से बदलने लगे। अब मैं ही उनकी जिन्दगी का मकसद था। उन्होने सुदूर आयानगर में कम किराये वाला घर ले लिया। वहाँ जैसे-तैसे दिन गुजरने लगे। मेरी मम्मी भी अंदर से टूटने लगी थीं। पापा को तो संसार में खुद को ब्रेव दिखाना था।

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मेरी प्रगति बहुत ही धीमी गति से हो रही थी। मेरे पापा-मम्मी अंदर से बहुत परेशान से रहने लगे।उन्हें परिवार का भविष्य अंधकारमय ही दिखता था। मैं बहुत कुछ बचपन से ही समझता था। लेकिन  मुझमें धीरे-धीरे ही सही थोड़ा सु़धार होने लगा।

अक्षय प्रतिष्ठान में मैं सभी दिव्यांग बच्चों के बीच अपने आपको एक बड़ी भीड़ का हिस्सा समझनेलगा। जिन्दगी कुछ तो बेहतर नजर आने लगी थी। फिर हमलोग दिल्ली छोड़कर पटना आ गए। यहाँ जिन्दगी को फिर से पटरी पर लाना था। मैं स्कूल जाने लगा, पापा ऑफिस जाने लगे और मम्मी घर संभालने लगीं।
लेकिन मैं अब कुछ कदम स्वयं चल पाता था। मैंने पापा के साथ क्रिकेट खेलना फिर से शुरू कर दिया।कोरोना लाॅकडाउन में हम खूब खेले। इन दो सालों में मेरी शारीरिक स्थिति में बहुत सुधार हुआ। मैं बड़ा भी हो रहा हूं। अब मैं 16 वर्ष का टीनएजर हूं। अब मैं लगभग एक नाॅर्मल बच्चे की तरह रहता हूं। आशा है मैं मम्मी-पापा के बूढ़ापे की लाठी बनूंगा।

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TAGS: आदित्य सिन्हा, दिव्यांग बच्चा, लघुकथा, Aditya Sinha, Disabled Child, Short Story
OUTLOOK 16 February, 2022
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