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01 March 2016

गांव गरीब की मटकी में मीठा, कारोबारियों की थाली में मलाई

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इसके बाद जब जेटली ने बजट भाषण शुरू किया तो सरकार का रोडमैप और प्राथमिकताएं गिनाने के साथ सीधे देश के कृषि और ग्रामीण क्षेत्र पर आ गए। लंबे समय से विपक्ष मोदी सरकार को इसी मुद्दे पर घेर रहा था कि उनकी सरकार किसानों और गांवों के लिए कुछ नहीं कर रही और यह सिर्फ पूंजीपतियों का भला सोचती है। जेटली ने अपने इस बजट में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के लिए एक के बाद एक घोषणाओं की झड़ी लगा दी। कृषि और किसान कल्याण पर 35,984 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा के अलावा नाबार्ड के तहत सिंचाई निधि के लिए 20 हजार करोड़ रुपये रखे। प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना के लिए आवंटन 19 हजार करोड़ रुपये बढ़ा दिए, किसानों पर कर्ज का बोझ घटाने के लिए द्ब्रयाज सहायता के रूप में 15 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया। ग्रामीण विकास के लिए 87,700 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया। साथ ही 655 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान नामक नई योजना की शुरुआत की गई है। इतना ही नहीं, 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार ग्राम पंचायतों और नगरपालिकाओं को सहायता अनुदान के रूप में 2.87 लाख करोड़ रुपये दिए जाने का प्रस्ताव है। जेटली यहीं नही रुके, देश में सामाजिक क्षेत्र की दशा सुधारने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में 1,51,581 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जो कि इन क्षेत्रों में आ रही चुनौतियों को कम करने में सहायक होगा। बजट में भले ही आम आदमी को बड़ी राहत नहीं मिली हो लेकिन कई योजनाओं से लाभ मिलना तय है। स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत अभियान के लिए भी बजट में प्रावधान किया गया है। पिछले 25 सालों में अगर आर्थिक सुधार की बात की जाए तो टेलीकॉम, सूचना प्रौद्योगिकी, ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेबल, बैंकिंग, बीमा आदि क्षेत्रों में तेजी से बदलाव आया है। लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा की गति धीमी रही है। इसलिए सरकार का ध्यान इस क्षेत्र की ओर विशेष तौर से गया है।

हालांकि ग्रामीण विकास के दावों को पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर खारिज करते हैं। उनका कहना है कि बजट में ग्रामीण विकास के लिए सरकार ने बड़े-बड़े वादे किए हैं जो कि महज दिखावा हैं। अय्यर कहते हैं कि अच्छे दिन लाने की घोषणा भी मोदी सरकार ने की थी और बजट के जरिये किसानों, गावों के विकास की बात भी सरकार कर रही है। अच्छे दिन तो आए नहीं लेकिन किसानों के दिन सुधरेंगे और गांवों का विकास होगा यह देखने वाली चीज है। अय्यर कहते हैं कि ग्रामीण विकास का जो सपना है केवल घोषणाओं से पूरा होने वाला नहीं है। काम करके दिखाना होगा। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह कहते हैं कि जो योजनाएं यूपीए सरकार में बनाई गई थीं उसी को नए तरीके से पेश किया गया है। यूपीए सरकार ने रोजगार गारंटी कानून बनाया। भाजपा उसकी आलोचना कर रही थी लेकिन आज तारीफ कर रही है। सिंह कहते हैं कि किसानों के लिए सरकार ने घोषणा तो कर दी लेकिन भूमिहीनों के लिए क्या किया। इस पर बजट में कोई चर्चा नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में सरकार ने 62 नए नवोदय विद्यालय खोलने की घोषणा की है। इसके साथ ही सर्वशिक्षा अभियान को बढ़ाए जाने पर जोर दिया गया है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि सरकार का यह बजट देश का बजट है। शाह के मुताबिक इस बजट से गांवों के विकास में 228 फीसदी की बढ़ोत्तरी होगी। उन्होंने कहा कि कौशल विकास के लिए सरकार की ओर से किए गए प्रावधान से ग्रामीण लोगों और युवाओं को फायदा मिलेगा। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बजट को लेकर निराशा जताते हुए कहा कि बजट में गरीबों का कितना ध्यान रखा गया है इस पहलू पर भी नजर डालनी चाहिए।

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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बजट प्रस्तावों का स्वागत करते हुए आउटलुक से कहा कि यह पूरी तरह भविष्योन्मुखी बजट है और इससे देश के विकास को और तेज गति मिलेगी। शिवराज सिंह ने इस दौरान पिछले एक वर्ष में अपने राज्य की उल्लेखनीय प्रगति का भी आंकड़ों समेत हवाला दिया।

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत का कहना है कि हमेशा की तरह खेती-किसानी के बजट को आंकड़ों की बाजीगरी से अच्छा दिखाया गया है। इस बजट में किसानों के नाम पर बीमा कंपनियों और दूसरे उद्योगों को लाभ देने की कोशिश की गई है। कृषि क्षेत्र को 2014-15 में 32 हजार करोड़ रुपये दिए गए। पिछले वर्ष भाजपा ने 2015-16 में इसे घटाकर 25 हजार करोड़ कर दिया। बजट 2016-17 में कृषि क्षेत्र के लिए 36 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की गई है, जिससे सरकार किसानों की आय में वृद्धि की उम्मीद जता रही है। कृषि क्षेत्र को केवल 4 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं। इससे किसानों की छोटी उम्मीदों को धक्का लगा है। जैसे, फसल बीमा योजना के लिए 5500 करोड़ आवंटित किए गए हैं, इससे बीमा कंपनियों को लाभ होगा। फसल बीमा योजना में किसान इकाई नहीं है, न उसके नुकसान का आकलन उचित किया जाता है। इसका लाभ बीमा कंपनियों को होगा। जिस तरह पिछले कई वर्षों से किसान सूखे का सामना कर रहे हैं, उसके लिए आकस्मिक सिंचाई, वाटर सैट, भूगर्भ जल रिचार्ज हेतु कम से कम एक लाख करोड़ आवंटित किए जाने की जरूरत थी। किसानों को प्रधानमंत्री से उम्मीद थी कि किसानों की कर्ज माफी के लिए 2 लाख करोड़ रुपये आवंटित कर किसान को कर्जमुक्त करेंगे लेकिन इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई। किसान नेता अजय जाखड़ कहते हैं कि खेती-किसानी के लिए इस साल बजट में 90 फीसदी वृद्धि की गई है। प्रत्येक ग्राम पंचायत को 80 लाख रुपये दिए जाएंगे। पांच लाख कुएं और तालाब खोदे जाएंगे। बजट देखकर कहा जा सकता है कि यह ग्रामीण केंद्रित बजट है। पिछले साल हमें इस तरह के बजट की उम्मीद थी, मगर चुनाव हारने के बाद ऐसा बजट आया जबकि जो नुकसान होना था, वह हो चुका।

अखिल भारतीय किसान सभा के सह-सचिव वीजू कृष्णन कहते हैं कि इस बजट में सरकार ने कृषि को लेकर अपने पुराने वादे ही पूरे नहीं किए। सरकार ने कहा था कि वह कुल उत्पादन लागत का 50 फीसदी बढ़ाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देगी, सरकार ने इसपर बात भी नहीं की। किसान को उसकी उत्पादन लागत तक नहीं मिल पा रही है। नरेगा का बजट देखें तो 33,000 करोड़ रुपये दिया गया था जबकि चाहिए था 62,000 करोड़ रुपये। इस साल भी सरकार ने नरेगा के लिए 38,500 करोड़ रुपये दिए हैं। यह नरेगा को खत्म करने की कोशिश है। सरकार का सारा जोर फसल बीमा और मिट्टी की सेहत की जांच पर है। मिट्टी की सेहत क्या करेगी जब किसान को उसकी उत्पादन लागत तक नहीं मिल पा रही है। फसल बीमा से असली फायदा किसान को नहीं बल्कि कॉर्पोरेट जगत को होना है।   

भारतीय किसान संघ के महासचिव प्रभाकर केलकर के अनुसार संभवत: यह पहली बार हुआ है जब बजट के शुरुआती हिस्से में किसानों को प्राथमिकता दी गई है। वरना अभी तक तो बीच या आखिरी हिस्से में उनके लिए भी घोषणाएं कर दी जाती थीं। यह हर्ष का विषय है फिर भी जैविक खेती के लिए 368 करोड़ रुपये की राशि और बढ़ाई जानी चाहिए थी। नौ हजार करोड़ रुपये कृषि कर्ज के लिए दिया जाना भी अच्छा संकेत है। लेकिन भारतीय खाद्य उत्पादों के मार्केटिंग में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की घोषणा से एक प्रश्नचिह्न भी खड़ा हुआ है। कच्चा माल गांव से ही जाएगा और इसका मुनाफा विदेशी कंपनियों को मिलेगा। यह किसानों के हित में नहीं है।

सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय के अनुसार यह सरासर गलत है कि मनरेगा को अब तक का सबसे अधिक आवंटन किया गया है। अभी तक सबसे अधिक आवंटन वर्ष 2010 में 40 हजार करोड़ रुपये में किया गया था। इस बार मुद्रास्फीति को देखते हुए मनरेगा के लिए 65 हजार करोड़ रुपये का होना चाहिए था लेकिन सरकार ने 38,500 करोड़ रुपये किया है। इसमें भी पिछले साल मनरेगा के तहत काम करने वालों की 6,000 करोड़ रुपये की मजूरी बकाया है यानी इस साल के लिए आवंटित 38,500 हजार करोड़ रुपये में छह हजार करोड़ रुपये तो बकाया भुगतान को निपटाने में चला जाएगा। इस वित्त वर्ष के लिए बचेगा सिर्फ 32 हजार करोड़ रुपये और ये साल भी मनरेगा के लिए बुरा साल होने जा रहा है। ऐसा भी तब जब तमाम राज्य सरकारों ने मनरेगा के मद में आवंटन बढ़ाने की गुहार लगाई थी।

वित्त मंत्री द्वारा वित्तीय वर्ष 2016-17 का आम बजट मजदूर क्षेत्र की अधिकांश बातों के लिए निराशाजनक है। मजदूरों की अपेक्षा थी कि वित्त मंत्री आयकर की सीमा 3 से 5 लाख बढ़ाकर मजदूरों को तोहफा देंगे और कृषि क्षेत्र में लगातार सूखे और वर्षा से प्रभावित किसानों को ऋण माफी की घोषणा कर राहत देंगे। सबसे निराशाजनक स्थिति असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की है जिसके लिए बजट में कुछ भी नहीं कहा गया है। भारतीय मजदूर संघ अध्यक्ष बैजनाथ राय और महामंत्री विरजेश उपाध्याय ने कहा, 'औद्योगिक क्षेत्र में कर्मचारी भविष्यनिधि योजना के दायरे में वृद्धि की बात है और तीन वर्ष तक नए कर्मचारियों का 8.33 प्रतिशत अंशदान सरकार द्वारा जमा कराए जाने का भी उल्लेख है। लेकिन सरकार ने नए स्थापित होने वाले उद्योगों को तीन वर्ष के लिए श्रम कानूनों से छूट पहले से ही दे रखी है जब उन्हें छूट है तो अंशदान किसका जमा होगा? यह विरोधाभास है और कर्मचारी के 40 प्रतिशत से अधिक धन निकालने पर टैक्स लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है।  कृषि उपज के लिए 100 प्रतिशत एफडीआई की घोषणा ने हमें अचंभित किया है। जब खेती में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश होगा तब एक प्रकार से संपूर्ण खेती और बीज पर विदेशी निर्भरता हो जाएगी। यह एक प्रकार से डंकल प्रस्ताव की वापसी होगी और उत्पादन पर पूरी तरह उन्हीं का कब्जा हो जाएगा। छोटे किसान जो प्रकृति की मार से पहले ही मर रहे हैं पूरी तरह तबाह और बर्बाद हो जाएंगे।

बजट से कुल मिलाकर कारोबारी समुदाय खुश है। भारती इंटरप्राइजेज के संस्थापक और सीईओ सुनील मित्तल कहते हैं कि आपको राजकोषीय दायित्व तो निभाना ही चाहिए, इस संबंध में वित्त मंत्री ने संतुलन बनाए रखा है। व्यक्तिगत करदाताओं को उन्होंने राहत दी है। सरकार ने अर्थव्यवस्था में निवेश पर जोर दिया है और वह मानती है कि कर जितना अधिक किया जाएगा, निवेश उतना ही कम होगा। टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक टीवी नरेंद्रन ने कहा, 'बजट में विदेशी निवेश और नीतिगत सुधारों के त्वरित क्रियान्वयन से जीडीपी 8.5 से 9 प्रतिशत हासिल किया जा सकता है। अगले कुछ वर्षों में कॉर्पोरेट टैक्स को 25 प्रतिशत कम करने का प्रस्ताव स्वागतयोग्य है। सामाजिक सुरक्षा और वरिष्ठ नागरिकों की कल्याणकारी योजनाओं से लगता है कि सरकार समग्र और समान विकास की हिमायती है। आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने कहा कि मौजूदा दौर में घाटे पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है और सरकार ने इसपर ध्यान दिया है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट की तारीफ स्वास्थ्य क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए प्रावधानों की वजह से भी हो रही है। चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों का कहना है कि इस बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र की लंबे समय से की जा रही मांगों को पूरा किया गया है। दिल्ली एनसीआर में प्रतिष्ठित मेदांता अस्पताल चलाने वाले विश्व प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहन ने आउटलुक से कहा, 'इस बार का बजट स्वास्थ्य क्षेत्र के लिहाज से बहुत अच्छा है। इसमें गरीब परिवारों प्रति परिवार एक लाख रुपये का स्वास्थ्य कवर देने और परिवार के किसी सदस्य की उम्र 60 वर्ष से अधिक होने पर इस कवर को 30 हजार रुपये बढ़ाने का प्रावधान किया गया है जो कि मेरे अनुसार क्रांतिकारी कदम है। इसी प्रकार राष्ट्रीय डायलिसिस सेवा कार्यक्रम भी बेहतरीन कदम है क्योंकि यह एक तथ्य है कि किडनी की समस्या होने के बाद अच्छे-खासे खाते-पीते परिवारों की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो जाती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत इस कार्यक्रम में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाने की बात भी कही गई है और डायलिसिस मशीनों के कुछ कलपुर्जों पर टैक्स छूट की गई है जो इस मिशन को मुमकिन बनाएगा। उन्होंने कहा कि सस्ती दवाएं मुहैया कराने के लिए 3 हजार नई दुकानें खोलने की बात भी अच्छी है। कुल मिलाकर यह बजट मरीजों और उनके परिजनों के लिए अच्छा है। दिल्ली एनसीआर में पुष्पांजलि-क्रासले (अब मैक्स समूह का हिस्सा) के नाम  से अपना अस्पताल शुरू करने वाले डॉ. विनय अग्रवाल भी मानते हैं कि बजट स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा है और इसमें किए गए प्रावधानों का स्वागत किया जाना चाहिए। आउटलुक से बातचीत में डॉ. अग्रवाल ने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में छोटे या कहें एकल सेवा प्रदाताओं के लिए बजट में बहुत कुछ है। डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि सिर्फ स्वास्थ्य कवर, डायलिसिस या दवा दुकानों की बात नहीं है, बजट में उन गांवों को पुरस्कृत करने की बात कही गई जो खुले में शौच की समस्या से मुक्त हो जाएंगे। इस प्रकार के कदमों से भी आखिरकार तो स्वास्थ्य क्षेत्र को मदद मिलती है।

हर कोई बजट से खुश हो ऐसा नहीं है। दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन से जुड़े पॉल दिवाकर कहते हैं कि इस बजट में दलितों और आदिवासियों के हिस्से के 75,773 करोड़ रुपये गायब कर दिए गए है। हमारे हिस्से में से सिर्फ 62,829 करोड़ रुपये आवंटित किए गए है। उसमें से भी केवल 20 फीसदी ही सीधे हमें मिलेगा। यह करोड़ों दलितों-आदिवासियों का हक छीनने वाला बजट है।

राज्यसभा सांसद बालचंद मुंगेकर के अनुसार अभी दिक्कत यही है कि हम घूम फिरकर उपभोग पर निर्भर हैं। निवेश के बारे में बातें बहुत हो रही हैं लेकिन अभी तक जमीन पर नहीं उतरा है। लघु और छोटे उद्योगों पर ज्यादा जोर होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह क्षेत्र 60 फीसदी रोजगार और 20 फीसदी सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देता है। दूसरा बड़ा संकट है कि आयात और निर्यात में गिरावट आ रही है। अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के गिरने से हम टिके हुए हैं और अर्थव्यवस्था गड़बड़ाई नहीं है लेकिन यह स्थिति कितने दिन और मदद करेगी?

वहीं पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री सुरेंद्र सिंगला का कहना है कि केंद्र सरकार जिसे टेक्सेशन पॉलिसी कहती है, वह असल में टैक्स टेरर है। सरकार ने कहा था कि वह लोगों के मन से टैक्स का भय खत्म करेगी। लोगों के पीछे नहीं पड़ेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिंगला कहते हैं कि जहां तक कृषि की बात है तो ग्रामीण इलाकों मे इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा। आज भी हमारे देश में खेती बारिश भरोसे है। इसलिए सिंचाई की व्यवस्था करनी होगी। पंजाब के ही एक अन्य पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत बादल कहते हैं कि भाजपा को सत्ता में आए दो वर्ष होने वाले हैं लेकिन देश में अभी तक कोई आर्थिक सुधार दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि सरकार ने आर्थिक सुधारों का वादा किया था।

जाने-माने अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि इस साल का बजट ऐसे अनिश्चित हालात में बनाया गया है जब औद्योगिक विकास 1 से 2 प्रतिशत की रफ्तार से ही बढ़ रहा है। आउटलुक से बातचीत में अरुण कुमार ने बताया कि अर्थव्यवस्था में इस वक्त वैश्विक और अंदरूनी दोनों तरह की अस्थिरता यानी आर्थिक सुस्ती बनी हुई है। जिस तरह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दूसरे कार्यकाल में नीतिगत निष्क्रियता थी, वही स्थिति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार में भी दिख रही है।

पूर्व आईएएस अधिकारी और राज्यसभा के पूर्व सदस्य एन.के. सिंह आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि नई आर्थिक चुनौतियों ने हमारे सामने कई तरह के आर्थिक मुद्दे खड़े कर दिए हैं। पिछले कुछ साल से हम इस लफ्फाजी के शिकार रहे कि हम सेवा क्षेत्र के अगुवा हैं, जबकि चीन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का। जबकि सच यह है कि हमने भूमि, श्रम और खनिज संसाधनों के मामले में उदारीकरण नहीं किया और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में हम पिछड़ते चले गए।

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TAGS: बजट, अरुण जेटली, कृषि, गांव, मनरेगा, मणिशंकर अय्यर, स्वास्‍थ्य, शिक्षा
OUTLOOK 01 March, 2016
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