फिक्की सर्वे से आर्थिक अनिश्चितता के संकेत, 72 फीसदी कारोबारियों को बुरे असर का अंदेशा
कोरोना वायरस के संकट और लॉकडाउन के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योग जगत की गतिविधियां लगभग धम गई हैं। इस अप्रत्याशित संकट के कारण कारोबार और कंपनियों के भविष्य को लेकर भारी अनिश्चितता हो गई है। उद्योग संगठन फिक्की-ध्रुव कोविट-19 बिजनेस इंपैक्ट सर्वे में संकट की गंभीरता के संकेत मिले हैं।
उद्योगों को तत्काल राहत पैकेज की उम्मीद
फिक्की-ध्रुव सर्वे में 72 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि कोविड-19 से उनके कारोबार पर अधिक या फिर अत्यधिक असर डाला है। अधिकांश लोगों को चालू वित्त वर्ष में कारोबार सुधऱने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। 70 फीसदी लोगों को चालू वित्त वर्ष में बिक्री घटने का अनुमान है। अधिकांश लोगों को लगता है कि उनके कैशफ्लो और ऑर्डर बुक पर बुरा असर पड़ेगा। उनका कहना है कि अगर सरकार ने कोई आर्थिक पैकेज तुरंत नहीं दिया तो उद्योग का बड़े वर्ग अवसर हमेशा के लिए गवां देगा।
देश भर की 380 कंपनियों के बीच सर्वे
फिक्की और ध्रुव एडवायर्स ने पिछले सप्ताह देश भर की 380 कंपनियों के मध्य सर्वे करके यह पता लगाने का प्रयास किया कि कंपनियां मौजूदा दौर क्या सोच रही हैं, उनके कारोबार पर कितना असर पड़ा और उनकी सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं। फिक्की की अध्यक्ष डॉ. संगीता रेड्डी ने कहा कि कोरोना संकट पिछले दशकों में हासिल की बढ़त को खत्म कर सकता है। उद्योगों को नौकरियों, कर्मचारियों और कारोबारों को बचाने के लिए सरकार से बड़े पैकेज की उम्मीद है। उद्योगों को लिक्विडिटी की तत्काल आवश्यकता है ताकि वे अपने कारोबार को जारी रख सके। अधिकांश उद्योग भारी वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं। फिक्की अध्यक्ष ने कहा कि हमें सरकार से कारोबारी गतिविधियां सुचारु करने के लिए तत्काल सहायता की उम्मीद है।
लागत घटाने के प्रयास तेज होंगे
ध्रुप एडवायर्स के सीईओ दिनेश कानाबार ने कहा कि सर्वे से संकेत मिले हैं कि कोविड-19 ने छोटी अवधि में ही भारतीय अर्थव्यवस्था को अत्यधिक प्रभावित किया है। कंपनियों ने पूंजी और निवेश जुटाने और विस्तार के लिए जो भी प्रयास किए थे, वे बेकार हो चुके हैं। कारोबारी मौजूदा दौर में लागत घटाने और सप्लाई चेन को दुरुस्त करने पर जोर देंगे।
निर्यात से कुछ राहत की उम्मीद
सर्वे में कंपनियों की विस्तार योजनाओं पर बहुत खराब असर पड़ने के भी संकेत मिले हैं। विस्तार योजनाओं को मंजूरी पा चुकी कंपनियों में से 61 फीसदी कंपनियों को लगता है कि उन्हें अपनी विस्तार योजनाएं 6 से 12 महीनों के लिए टालनी होंगी। घरेलू मांग गिरकर रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई है। हालांकि कुछ को निर्यात से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। सर्वे में 43 फीसदी कंपनियों ने माना कि उन्हें निर्यात पर कोई असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। 34 फीसदी को निर्यात में 10 फीसदी से ज्यादा गिरावट आने की उम्मीद है।