जीडीपी रैंक में भारत के पिछड़ने से पांच ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की डगर हो सकती है और कठिन
सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के मामले में विश्व बैंक ने जो ताजा तस्वीर पेश की है, उसमें भारत की रैंकिंग पांचवें पायदान से खिसककर सातवें पायदान पर आने से भारत के सामने गंभीर चुनौती दिखाई दे रही है। फिलहाल ग्रोथ रेट में सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति और सुस्त विकास दर को देखते हुए पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का मोदी सरकार का सपना भी दूर की कौड़ी प्रतीत होता है।
वित्त मंत्री का सपना अवास्तविक तो नहीं
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने आम बजट पेश करते हुए कहा था कि वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यस्था बनने के लिए देश की विकास दर आठ फीसदी से ज्यादा रखनी होगी। लेकिन आठ फीसदी विकास दर हासिल करना अत्यंत मुश्किल दिखाई दे रहा है। वैसे अर्थशास्त्रियों ने इस पर भी संदेह जताया था कि आठ फीसदी विकास दर से भी पांच ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा हासिल करना आसान नहीं होगा।
खुद सरकारी फैसले अर्थव्यवस्था पर भारी पड़े
फॉरेन एक्सचेंज के रेट में उलटफेर के अलावा भारत की आर्थिक स्थितियों ने भी चिंताएं बढ़ाई हैं। इन चिंताओं में कुछ ऐसी हैं जो खुद सरकार के फैसलों से पैदा हुईं। जीएसटी लागू होने से छोटे कारोबारियों की दिक्कतें अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हो पाई। बीते साल नोटबंदी का भी कुछ हद तक असर खासकर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर रहा। मांग की कमी के कारण प्राइवेट सेक्टर निवेश करने से लगातार बच रहा है। यह स्थिति पिछले साल भी बनी रही।
जीडीपी पिछड़ने के ये रहे कारण
एक सवाल यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था क्यों पिछड़ गई। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के चीफ इकोनॉमिस्ट देवेंद्र पंत का कहना है कि यह उलटफेर डॉलर के एक्सचेंज के कारण दिखाई दिया है। वर्ष 2017 में डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती रही थी। इसका फायदा भारत को मिला और वह आगे निकल गया। इसके विपरीत 2018 में रुपये में कमजोरी दिखाई दी। इसकी वजह से वह फिर से दो पायदान नीचे आ गया। रुपये में गिरावट आने के बाहरी और आंतरिक कारण भी हो सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि सरकारी नीतियां भी इसके लिए जिम्मेदार रहीं। बाहरी कारणों की बात करें तो ग्लोबल अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल होने के कारण डॉलर मजबूत हुआ और उसकी तुलना में रुपया पिछले साल कमजोर हुआ। कच्चे तेल की महंगाई ने पिछले साल सबसे ज्यादा दबाव बनाया।
जीएसटी और नोटबंदी का भी दंश
सरकारी नीतियों की बात करें तो जीएसटी सही तरीके से लागू न होने के कारण देश की आर्थिक गतिविधियां सामान्य रूप से नहीं चल पाईं। छोटे कारोबारी जीएसटी की औपचारिकताओं में ऐसे उलझ गए कि उनका कारोबार प्रभावित हुआ। इसके अलावा मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले ने असंगठित क्षेत्र और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को ऐसा मारा कि वे अभी तक उससे उबर नहीं पाए।
फिलहाल ग्रोथ रेट सुधरने वाली नहीं
ऐसा नहीं है कि आर्थिक मोर्चे पर देश की दिक्कतें पिछले साल ही ऐसी थीं। इस साल भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अभी हाल में कोर सेक्टर की विकास दर जून में 0.4 फीसदी रह गई। अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाले रियल्टी और ऑटो सेक्टर की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। यही वजह है कि विकास दर अनुमान में तमाम एजेंसियां लगातार कटौती कर रही हैं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने चालू वित्त वर्ष के लिए ग्रोथ रेट का अुमान 7.1 फीसदी से घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट डी. के. जोशी का कहना है कि फिलहाल में सुधार की उम्मीद नहीं हैं। हाल के आर्थिक सुधारों का लाभ कुछ वर्षों के बाद ही मिल पाएगा।
फ्रांस और ब्रिटेन की जीडीपी बेहतर स्थिति में
विश्व बैंक की 2018 की जीडीपी रैंकिंग में भारत दो पायदान खिसककर पांचवें से सातवें पर रह गया। इसकी वजह भारत की विकास दर अनुमान से सुस्त रहना रहा है। बीते साल भारत की विकास दर सात फीसदी रही। भारत की जीडीपी 2.65 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2.72 ट्रिलियन डॉलर के आसपास रही। दूसरी ओर फ्रांस और ब्रिटेन की जीडीपी बेहतर स्थिति में रही। ब्रिटेन की जीडीपी 2.63 डॉलर से बढ़कर 2.82 ट्रिलियन डॉलर हो गई। फ्रांस की जीडीपी 2.58 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2.77 ट्रिलियन डॉलर हो गई।
मामूली अंतर से ही सुधरी थी रैंकिंग
पिछले साल जीडीपी के आंकड़े में मामूली फेरबदल होने से ही भारत फ्रांस से आगे निकल गया था और वह पांचवें पायदान पर आ गया था। पिछले साल भारत की जीडीपी जहां 2.65 ट्रिलियन डॉलर थी, वहीं फ्रांस की जीडीपी 2.58 ट्रिलियन डॉलर थी। इसी तरह ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था भारत से महज 20 बिलियन डॉलर पीछे। उसकी अर्थव्यवस्था पिछले 2.63 ट्रिलियन डॉलर थी।