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22 June 2015

सौर ऊर्जा के विकास की सही राह

हाल के समय में सौर ऊर्जा की बहुत महत्त्वाकांक्षी परियोजनाएं प्रस्तावित हुई हैं। इसके साथ अन्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे पवन ऊर्जा में भी तेजी आई है। अक्षय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने यहां तक कहा है कि अक्षय ऊर्जा विकास में 200 अरब डालर का निवेश आकर्षित होने की संभावना है।सरकार की योजना है कि वर्ष 2022 तक देश में सौर ऊर्जा की एक लाख मेगावाट की क्षमता स्थापित की जाए।

राजस्थान में केवल एक कंपनी रिलायंस पावर ने राज्य सरकार से एक दशक में 6000 मेगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता स्थापित करने का अनुबंध किया है। उधर मध्य प्रदेश के रीवा जिले में विश्व के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की तैयारी चल रही है जिसकी क्षमता 750 मेगावाट प्रस्तावित है। अक्षय ऊर्जा का विकास स्वागत योग्य है, पर इसके साथ इस ओर ध्यान देना भी जरूरी है कि हमारी स्थितियों में अक्षय ऊर्जा के विकास की कौन सी राह अधिक उपयोगी है। जलवायु बदलाव के संकट की बेहतर समझ के साथ ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करना अधिक महत्त्वपूर्ण हो रहा है। अतः अक्षय ऊर्जा स्रोतों को तेजी से अधिक मान्यता मिलने लगी है। हाल के समय में अक्षय ऊर्जा विशेषकर सौर ऊर्जा के लिए बजट व निवेश बढ़ा है तथा कई महत्त्वाकांक्षी योजनाएं चर्चा में हैं।

सौर ऊर्जा को अधिक महत्त्व देना सही कदम है, पर इसके साथ यह जरूरी है कि सौर ऊर्जा का विकास हमारे देश की स्थितियों के अनुकूल हो। भिन्न स्थितियों वाले अन्य देशों के बिना सोचे-समझे अनुकरण से बचना चाहिए। यदि उचित सावधानी नहीं बरती गई तो बड़ी सौर वरियोजनाओं से अधिक विस्थापन होगा व पानी का अपव्यय भी अधिक होगा।

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‘भारत के राष्ट्रीय सौर मिशन में बदलाव की जरूरत’ से लिखे गए एक अनुसंधान पत्र (इकनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली में प्रकाशित) में रंजीत देशमुख, अश्विन गंभीर व गिरीश संत ने लिखा है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रतिकूल सामाजिक व पर्यावरणीय परिणाम न्यूनतम करने के लिए पहले से भूमि व जल बचाने की सावधानी अपनानी होगी। उन्होंने बताया है कि प्रति मेगावाट 5 से 10 एकड़ की जरूरत सौर ऊर्जा प्रति मेगावाट उत्पादन में पड़ सकती है और इसके लिए पहले से योजनाबद्ध ढंग से कार्य करना होगा कि भूमि की इस जरूरत के प्रतिकूल परिणाम को कम से कम किया जाए। इसी तरह पानी के उपयोग को कम करने की उचित तकनीक पर आरंभ से ध्यान देना होगा।

इन अनुसंधानकर्ताओं ने राष्ट्रीय सोलर मिशन को अधिक निर्धन व जरूरतमंद लोगों के नजदीक लाने के लिए सुझाव भी दिए हैं। इनमें एक महत्त्वपूर्ण सुझाव यह है कि जो परिवार आज भी रोशनी के लिए मिट्टी के तेल का उपयोग करते हैं, उन को सौर मिशन के अन्तर्गत सोलर लालटेन दी जाए। इस पर 3000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा जो उपलब्ध सौर ऊर्जा मिशन की सबसिडी के मात्र 8 प्रतिशत के बराबर है।

राजस्थान में तिलोनिया स्थित बेयरफुट कालेज ने भी सोलर लालटेन गांवों में देने का जो कार्यक्रम चलाया उसके अच्छे परिणाम मिले हैं। विशेष तौर पर यह सोलर लालटेन संस्था द्वारा चलाए गए रात्रि स्कूलों में बहुत उपयोगी रही। इसके अतिरिक्त दाईयों ने प्रसव करवाते वक्त या गर्भवती महिलाओं की जांच करते समय इन लालटेनों का बहुत सार्थक उपयोग किया। इस संस्था का एक बड़ा योगदान इस बारे में पथ-प्रदर्शन का रहा है कि लगभग छ महीने के प्रशिक्षण से अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे गांववासी भी सौर ऊर्जा की इतनी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं कि ‘बेयरफुट सोलर इंजीनियर’ की भूमिका निभा सकते हैं। अभी हमारे अधिकांश ग्रामवासियों के लिए यह एक नया और अपरिचित क्षेत्र है किन्तु तिलोनिया गांव में स्थित लगभग साठ हजार वर्ग फीट पर फैला हुआ इस संस्था का नया परिसर लगभग पूरी तरह सौर ऊर्जा से चालित है।

इससे भी अधिक उल्लेखनीय कार्य यहां के कुछ कार्यकर्त्ताओं ने इस तकनीक को लद्दाख के बहुत दूर-दराज के दुर्गम गांवों में पंहुचाने में किया है - उन बहुत ऊंचे गांवों में जहां साधारण बिजली पंहुचने की उम्मीद अभी कई वर्षों तक नहीं है। यह कार्य लद्दाख के युवाओं के सहयोग से किया गया। अनेक राज्यों जैसे झारखण्ड व बिहार के गांववासी तिलोनिया के गांव में स्थित बेयरफुट कालेज के परिसर में सौर ऊर्जा के प्रशिक्षण के लिए आते हैं व यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने गांवों में सौर ऊर्जा की व्यवस्था को संभालते हैं। यहां प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अनेक युवाओं ने अपने गांवों में ग्रामीण सौर वर्कशाप स्थापित की है। इस तरह के प्रशिक्षण व कार्य के लिए महिलाएं भी आगे आई हैं व सौर लालटेनों के कार्य में तो उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही है।

अक्षय ऊर्जा के विकेंद्रित व गांवों के विकास से जुड़े माडल को देश के दूर-दूर के गांवों में पहुंचाने में देश की पंचायतों व पंचायत राज व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अतः देश के पंचायत राज संस्थानों के कार्यों व जिम्मेदारियों में विकेन्द्रत अक्षय ऊर्जा विकास को भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। इस संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण योगदान तिलोनिया (राजस्थान) स्थित बेयरफुट कालेज ने दिया है। बेयरफुट कालेज ने सौर ऊर्जा को बहुत दूर-दूर के गांवों में फैलाया है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस कार्य की जिम्मेदारी कम शिक्षा प्राप्त गांववासियों ने ही संभाली है। बेयरफुट कालेज ने व्यापक स्तर पर ऐसा प्रशिक्षण दिया है जिससे लगभग छः महीने के प्रशिक्षण के बाद गांववासी बेयरफुट इंजीनियर के रूप में सफलता से कार्य करने लगते हैं। बाद में कार्य के दौरान भी आगे का प्रशिक्षण तो खैर चलता ही रहता है।

इस क्षेत्र में बेयरफुट कालेज के सफल प्रयोगों से यह संभावना उत्पन्न होती है कि विकेंद्रित अक्षय ऊर्जा के मॉडल में गांववासियों की प्रतिभा का भरपूर उपयोग करने के व बहुत सा रोजगार सृजन करने के अवसर उपलब्ध हैं। तिलोनिया मॉडल आत्म-निर्भरता, रोजगार के अवसर व ज्ञान-विज्ञान का प्रसार बढ़ाता है और इस मॉडल को ही अपनाना चाहिए। एक अन्य जरूरत यह है कि गांववासियों को सौर ऊर्जा व अन्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों के कार्य को संभालने का समुचित प्रशिक्षण मिले। ऐसा न हुआ तो वे देखरेख व मरम्मत के लिए सदा बाहरी व दूर के स्रोतों पर निर्भर रहेंगे।

 

 

 

 

 

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TAGS: सौर ऊर्जा, नीति, अक्षय ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, solar energy, renewable energy, national solar mission, policies
OUTLOOK 22 June, 2015
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