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02 January 2018

ज्यादातर NPA अप्रैल 2014 के पहले के कर्ज के कारण: जेटली

File Photo.

राज्यसभा में आज विपक्षी दलों के कई सदस्यों द्वारा विभिन्न सार्वजनिक बैंकों की नॉन परफॉर्मिंग असेट्स (एनपीए) लगातार बढ़ने पर चिंता जताने और बड़े कर्जदारों के नाम सार्वजनिक किए जाने का सुझाव देने के बीच सरकार ने कहा कि अधिकतर बड़े एनपीए वे कर्ज हैं, जो अप्रैल 2014 से पहले दिये गए।

राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सपा के सदस्य नीरज शेखर के एक पूरक प्रश्न के उत्तर में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा, ‘‘जहां तक संख्या बढ़ने का प्रश्न है, मैं उसे स्पष्ट कर दूं कि बैंकों का कुल एनपीए, जो 2014 में था, उसके पीछे पाया गया कि कई बैंक कर्जों को बार-बार ‘‘एवरग्रीन’’ करते थे यानी उसी कर्ज को दोबारा आगे बढ़ाते जाते थे, जिसकी वजह से पुस्तकों के अंदर तो वह कर्ज होता था, लेकिन कर्ज वास्तविकता में एक प्रकार से नॉन-परफॉर्मिंग (फंसा हुआ) हो चुका था।’’

जेटली ने कहा, ‘‘लिहाजा, 2015 में आरबीआई ने हर बैंक की कर्ज समीक्षा (ऐसेट रीव्यू) की और पाया कि बही खातों में जो परफॉर्मिंग (कर्ज चुकाते हुए) दिखते हैं वो वास्तविकता में परफॉर्मिंग नहीं हैं, ब्याज भी नहीं दे पा रहे। इनका केवल मानकीकरण किया जा रहा है और इनको एनपीए में गिनना चाहिए। तो उन्हें छुपाने की बजाय स्पष्टता से सामने दिखा दिया गया। ये एनपीए बढ़ने का पहला कारण था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसके पीछे दूसरा कारण था कि समय बीतता है तो ब्याज भी बढ़ता जाता है और ब्याज बढ़ने से कर्ज की संख्या भी बढ़ती जाती है।

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बैंकों ने काफी कर्ज दिए, जोखिम का आकलन ठीक से नहीं किया । कहीं जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाया गया। कानून के मुताबिक जो भी कार्रवाई की जा सकती थी, वह की जा रही है।’’ वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘जहां पर आपराधिक जवाबदेही तय की जा सकती थी, वह हो रही है। जहां व्यापारिक नुकसान वगैरह जैसे कारण हैं, वहां रिकवरी (वसूली) की जो प्रक्रिया है या उसे दीवालिया घोषित करना है या उस खाते के संबंध में जो प्रक्रिया करनी है वो कार्रवाई भी आगे चल रही है।

नीरज शेखर ने दूसरे पूरक प्रश्न में पूछा कि बैंकों ने कॉरपोरेट क्षेत्र का 55,000 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया, लेकिन किसानों का कर्ज क्यों माफ नहीं किया जा रहा।

इसके जवाब में जेटली ने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट कर दूं कि न तो सरकार और न कोई बैंक कॉरपोरेट का कर्ज माफ करती है। कुछ समय के बाद, चार साल के बाद, जब कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति होती है और उसकी वसूली की संभावना कम रहती है तो उसकी श्रेणी को वे बदल देते हैं। जिससे कर्ज लेना होता है, उस पर वसूली की जवाबदेही रहती है। उसकी जिम्मेवारी नहीं जाती। बैंक अपना प्रावधान कर देता है कि आयकर के अंदर उसे उस खाते के संबंध में रियायत मिल जाए। बैंक अपने खाते के अंदर प्रविष्टी बदल देता है और बैंक को आयकर कार्यवाही में लाभ मिल जाता है। केवल इतना अंतर है। इसलिए अपने मन से निकाल दें कि सरकार ने या बैंक ने किसी का 55,000 करोड़ रुपया माफ किया है।’’

भाकपा के सदस्य डी राजा के एक पूरक प्रश्न के जवाब में जेटली ने कहा, ‘‘जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों (विलफुल डिफॉल्टरों) के नाम बैंकों की ओर से जारी किए जाते हैं। बैंकों के कामकाज में थोड़ी गोपनीयता होती है। बैंक आपके या मेरे खाते के बारे में किसी और को जानकारी नहीं दे सकती। जहां तक जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों का सवाल है तो उनकी एक अलग श्रेणी है और उस बारे में कोई गोपनीयता नहीं बरती जाती।’’

राजा ने सवाल किया था कि सरकार जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों की सूची क्यों नहीं जारी करती और इसे आपराधिक कृत्य मानकर कार्रवाई क्यों नहीं करती। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य पी चिदंबरम ने सवाल किया कि क्या सरकार के पास आंकड़े हैं कि बैंकों की ओर से एक अप्रैल 2014 के बाद दिए गए कर्ज में से कितने एनपीए हो गए।

इसके जवाब में जेटली ने कहा कि यह सवाल किसी खास तारीख के बाद दिए गए कर्ज का नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर एनपीए उन कर्जों से पैदा हुए हैं जो एक अप्रैल 2014 से पहले दिए गए।

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TAGS: FM, arun jaitley, NPA, Rajya Sabha
OUTLOOK 02 January, 2018
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