इंटरव्यू: "मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य देश की उत्पादकता में दीर्घकालिक निवेश", बोले वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण कुमार
गरीबों को दी जाने वाली मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और मकान खैरात है या कल्याणकारी योजनाएं? यह मुद्दा अभी भी राजनीतिक बहस-मुबाहिसों का केंद्रबिंदु बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के फ्रीबी वाले बयान से उपजे इस विवाद में आम आदमी पार्टी, द्रमुक और कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल कूद पड़े हैं। यह विवाद इतना बढ़ गया है कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुच गया है जिसने इसे एक "गंभीर मुद्दा" बताया है।
आउटलुक से बात करते हुए वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं, "सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी पर जो व्यय करती है, वो किसी भी सिविलाइजड देश के लिए ज़रूरी है। यह राष्ट्रीय उत्पादकता में दीर्घकालिक निवेश है और इसके अर्थव्यवस्था को ढेरों फायदे होते हैं।"
अरुण कुमार कहते हैं, "अगर बच्चों को शिक्षा अच्छी मिलेगी तो वही आगे चलकर प्रोडक्टिव वर्कर बनेंगे और स्वास्थ्य अच्छा है तो वही वर्कर की प्रोडक्टिविटी अच्छी होती है। 1980 में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा था कि 1947 तक भारत और सभी साउथ ईस्ट एशिया के देश ओवरआल डेवलमेंट के मामले में एक स्तर पर थे लेकिन 1965 आते वो सभी देश हमसे आगे निकल गए क्योंकि उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य पर कार्य किया।"
वो आगे कहते हैं, "ये फ्रीबी पालिसी देश की सभी पार्टियां अपना रही हैं। पीएम खुद अपनी गिरेबान में झांकें। दरअसल, मुद्दा यह है कि हम हमेशा से ट्रिकल डाउन पॉलिसी आजमाते रहे हैं। इससे होता यह है ऊपर-ऊपर विकास हो जाता है लेकिन निचले तबके के लोग इससे अधूरे रह जाते हैं। आज भी ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में भारत का खस्ता हालात है।"
वे कहते हैं कि सरकार के संसाधनों पर पहला अधिकार गरीबों का है। अगर गरीबों के पास पैसा नहीं होगा तो बाजार में मांग नहीं होगी और जब मांग नहीं होगी तो विकास नहीं होगा। 2019 में कॉरपोरेट टैक्स रेट में जबरदस्त कटौती हुई ताकि प्रोडक्शन को बढ़ाया जा सके और विदेशी निवेश आए लेकिन सब फेल हो गया क्योंकि मार्केट में डिमांड नहीं थी।
काले धन पर बोलते हुए अरुण कुमार कहते हैं, "हमारे देश में कालेधन की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है। मेरे अनुमान से यह जीडीपी का 60% है। अगर हम इस 60% को टैक्स स्लैब में लेते हैं, तो अभी जो हमारे देश में टैक्स-जीडीपी अनुपात 17% है, वो बढ़कर 41% तक चला जाएगा और इन पैसों को हम शिक्षा, स्वास्थ आदि जरूरी जगहों पर खर्च कर सकते हैं।"
कालेधन को टैक्स स्लैब में लाने के लिए क्या करना चाहिए इसपर वह कहते हैं कि इसके लिए हमें जीएसटी में बदलाव लाना होगा। यह बहुत कॉम्प्लिकेटेड है जिसके वजह से इनडायरेक्ट टैक्स इवेजन बहुत है।
अरुण कुमार कहते हैं, "पहली बात, इनडायरेक्ट टैक्स को रिफॉर्म करना बहुत ज़रूरी है। वेल्थ टैक्स और स्टेट ड्यूटी जो सरकार खत्म कर चुकी है उसे हमें दोबारा लागू करना होगा। देश के 1% लोगों के पास 50% वेल्थ है। अगर हम इनलोगों पर वेल्थ टैक्स लगाए तो करीब 2-3 लाख करोड़ रुपये की कमाई सरकार को हो सकती है। अगर ऐसे होता है तो सरकार को इनडायरेक्ट टैक्स कम करने में मदद मिलेगी और गरीब आदमी के पास पैसा बचा रहेगा और मार्केट स्टेबल रहेगा।"