नोटबंदी पर मोदी का एक और दावा हुआ फेल, दो साल में इन जगहों पर दिखी नाकामी
केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को लागू की गई नोटबंदी का समर्थन करते हुए कहा था कि इससे काले धन पर लगाम लगेगी, ज्यादा से ज्यादा लोग कर देंगे, कर चोरी रुकेगी, डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा मिलेगा, आतंकवाद व नक्सलवाद की कमर टूटेगी। हालांकि, नोटबंदी के दौरान किए गए इन दावों के बाद जिस तरह के आंकड़े सामने आ रहे हैं वह कुछ और ही बयां कर रहे हैं। तो आइए इन आंकड़ों पर नजर डालते हैं। 8 नवंबर, 2016 को केंद्र सरकार ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था।
एक नजर इन आंकड़ों पर-
टैक्स फाइलिंग में आई कमी
टैक्स फाइलिंग के हालिया इतिहास में पहली बार वित्त वर्ष 2018-19 में इनकम टैक्स ई-फाइलिंग में 6.6 लाख से अधिक की गिरावट आई है। साल 2016 में की गई नोटबंदी को सही ठहराने के लिए केंद्र सरकार हमेशा यह तर्क देती रही है कि इससे करदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2018-19 में 6.68 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स फाइल किया, जबकि वित्त वर्ष 2017-18 में यह आंकड़ा 6.74 करोड़ था।
हालांकि वित्त मंत्रालय ने इस खबर को खारिज कर दिया है। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी स्पष्टीकरण में बताया गया कि इस वित्तीय वर्ष 2018-19 में ई-फाइलिंग में 19% की बढ़ोतरी हुई है।
कैशलेस इकॉनमी का सच
नौ दिसंबर, 2016 को रिजर्व बैंक के मुताबिक, आम लोगों के पास 7.8 लाख करोड़ रुपये थे, जो जून, 2018 तक बढ़कर 18.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गए हैं। मोटे तौर पर आम लोगों के पास नकदी नोटबंदी के समय से दोगुनी हो चुकी है। इतना ही नहीं रिजर्व बैंक के आंकड़ों से आम लोगों के पास पैसा राष्ट्रीय आमदनी का 2.8 फ़ीसदी तक बढ़ा है, जो बीते छह साल में सबसे ज्यादा आंका जा रहा है।
जाली नोट का बना हुआ है चलन
जाली नोटों पर अंकुश लगा पाने में भी सरकार कामयाब नहीं हो पाई है। रिजर्व बैंक के मुताबिक 2017-18 के दौरान जाली नोटों को पकड़े जाने का सिलसिला जारी है। इस दौरान 500 के 9,892 नोट और 2]000 के 17,929 नोट पकड़े गए थे यानी जाली नोटों का सिस्टम में आने का चलन बना हुआ है।
नोटबंदी की घोषणा करने के बाद अपने पहले मन की बात में 27 नवंबर, 2016 को नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी को 'कैशलेस इकॉनमी' के लिए जरूरी कदम बताया था लेकिन नोटबंदी के दो साल बाद रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक लोगों के पास मौजूदा समय में सबसे ज्यादा नकदी है।
जीडीपी पर असर
नोटबंदी से देश की आर्थिक विकास दर की गति पर असर पड़ा है, 2015-1016 के दौरान जीडीपी की ग्रोथ रेट 8.01 फीसदी के आसपास थी, जो 2016-2017 के दौरान 7.11 फीसदी रही और इसके बाद जीडीपी की ग्रोथ रेट 6.5 फीसदी पर आ गई।
रोजगार में कटौती
नोटबंदी और जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद बड़े पैमाने पर रोजगार कम होने की बात सामने आई। निजी क्षेत्र के एक शोध संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि केवल 2018 में 1.3 करोड़ रोजगार की कटौती हुई जबकि एनएसएसओ की लीक रिपोर्ट के मुताबिक, बेरोजगारी दर 2018 में 45 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है।
भ्रष्टाचार पर भी नहीं दिखा नोटबंदी का असर
प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार को दीमक बताया था जिसे हटाने के लिए नोटबंदी जैसे सख्त कदम उठाना जरूरी हो गया था, लेकिन नोटबंदी का असर भ्रष्टाचार पर नहीं दिखा। हाल ही में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में भ्रष्ट देशों में भारत 2016 में 79 नंबर पर था तो 2017 में भारत 81वें स्तर पर पहुंच गया।