Advertisement
20 June 2019

जीडीपी पर पूर्व आर्थिक सलाहकार सुब्रमण्यम के दावे को पीएमईएसी ने किया खारिज

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) ने देश में 2011 के बाद जीडीपी के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यम के दावे को बुधवार को खारिज कर दिया। पीएमईएसी ने कहा कि पूर्व सीईए का विश्लेषण अपनी सुविधानुसार उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों पर आधारित है जबकि उन्होंने सेवा, कृषि और बेहतर कर संग्रह के आंकड़ों की अनदेखी की है।

पीएमईएसी ने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने प्राइवेट एजेंसी सीएमआईई के आंकड़ों पर आंख मूंदकर भरोसा किया और सरकारी संस्थान केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों पर विश्वास नहीं किया। सुब्रमण्यम के शोध पत्र की बातों का बिंदुवार जवाब देते हुए परिषद ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि एक बड़ी और जिम्मेदार अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुमान का तरीका वैश्विक मानकों के अनुरूप है। इस रिपोर्ट को अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय, रथिन रॉय, सुरजीत भल्ला, चरण सिंह और अरविंद बिरमानी ने मिलकर तैयार किया है।

पीएमईएसी ने क्या कहा

Advertisement

पीएमईएसी के अनुसार ऐसा लगता है कि पूर्व सीईए ने भारत की जटिल अर्थव्यवस्था और उसके विकास के बारे में जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया। पत्र के अनुसार उन्होंने 17 तीव्र आवृत्ति वाले संकेतकों (आंकड़ों) का उपयोग किया लेकिन विश्लेषण में सेवा क्षेत्र तथा कृषि क्षेत्र की भूमिका की उपेक्षा की। सेवा क्षेत्र का जहां जीडीपी में 60 प्रतिशत योगदान है वहीं कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है।

रिपोर्ट के अनुसार सुब्रमण्यम ने 2011-12 के बाद वृद्धि दर के बारे में संदेह जताने को लेकर सुविधानुसार उच्च आवृत्ति के संकेतको को लिया। उन्होंने जिन 17 संकेतकों का उपयोग किया, उसमें से ज्यादातर सीधे सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन एकोनॉमी (सीएमआईई) से लिये गये। सीएमआईई एक निजी एजेंसी है जो सूचना का प्राथमिक स्रोत नहीं है। वह विभिन्न स्रोतों से सूचना एकत्रित करती है।

इसमें कहा गया है, ''जिस किसी ने भी डा. सुब्रमण्यम के शोध पत्र को पढ़ा, उसे यह बिल्कुल साफ है कि उन्होंने सीएमआईई पर भरोसा किया लेकिन केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) पर अविश्वास किया... निजी एजेंसी सीएमआईई पर आंख मूंदकर भरोसा और देश की सेवा करने वाले सरकारी संस्थान पर अविश्वास करना एक तटस्थ शिक्षाविद से अपेक्षा नहीं की जाती है।'

पीएमईएसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सुब्रमण्यम ने कर आंकड़ों की भी अनदेखी की। उनकी दलील है, ''2011 के बाद की अवधि में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों में बड़े बदलाव के कारण हम कर वसूली से जुड़े संकेतकों का उपयोग नहीं करते। यह कर-जीडीपी संबंधों को पहले से भिन्न और अस्थिर बना दिया है। इसीलिए यह जीडीपी वृद्धि के लिये संकेतकों को अवास्तविक बनाता है।"

इसमें आगे कहा गया है कि सुब्रमण्यम वित्त मंत्रालय में सीईए के रूप में सरकारी अर्थशास्त्रियों तथा सांख्यिकीविदों के अधीक्षक की भूमिका में थे। उन्हें भारत की महाद्वीप आकार की अत्यधिक विविध उभरती अर्थव्यवस्था के जीडीपी आकलन के बड़ी और जटिल गतिविधियों की जानकारी जरूर होगी।

रिपोर्ट के अनुसार, ''कुछ सह-संबंधों (को-रिलेशंस) और चार कारकों के आधार पर सरल अर्थमितीय तकनीक के आधार पर ऐसे देश का जीडीपी का अनुमान जताने का प्रयास तथा आंकड़ा संग्रह के मौजूदा तरीके को चुनौती देना न केवल उन लोगों के मनोबल को तोड़ना है जो समर्पण के साथ काम में लगे हैं बल्कि तकनीकी रूप से भी अनुपयुक्त हैं।

सुब्रमण्यम ने क्या कहा था?

सुब्रमण्यम ने शोध पत्र में कहा था कि जीडीपी आकलन के तरीकों में बदलाव के कारण 2011-12 और 2016-17 के बीच भारत की आर्थिक वृद्धि दर करीब 2.5 प्रतिशत अधिक दिखने लगी। सुब्रमण्यम अक्टूबर 2014 से करीब चार साल वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे। सुब्रमण्यम पिछले साल मुख्य आर्थिक सलाहकार पद से हट गये थे।

'इंडियाज जीडीपी मिस-एस्टीमेशन: लाइलिहूड, मैग्नीट्यूड्स, मैकेनिज्म्स एंड इम्पलीकेशंस' (भारत के जीडीपी का गलत आकलन : संभावना, आकार, व्यवस्था और निहितार्थ) शीर्षक से हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रकाशित यह शोध पत्र ऐसे समय आया जब आर्थिक वृद्धि के आंकड़ों को लेकर विभिन्न तबकों द्वारा चिंता जतायी गई है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: EAC-PM, rejects, Arvind Subramanian's claim, GDP
OUTLOOK 20 June, 2019
Advertisement