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14 September 2019

आर्थिक मंदी पर बोले गोविंदाचार्य, अमेरिका के रास्ते पर चले तो बन जाएंगे ब्राजील

File Photo

जाने माने चिंतक के.एन. गोविंदाचार्य ने आर्थिक मंदी की वर्तमान स्थिति के लिए उदारीकरण की तीन दशकों की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा आर्थिक नीति की समीक्षा करके घरेलू उत्पादन एवं उपभोग पर आधारित प्रकृति के संरक्षण पर केन्द्रित नीतियों को अपनाया जाए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर भारत अमेरिका की नीति पर चलता रहा तो उसकी हालत ब्राजील जैसी हो जाएगी।

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक गोविंदाचार्य ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में मांग की कि देश की मौजूदा आर्थिक नीति की समीक्षा करके घरेलू उत्पादन एवं उपभोग पर आधारित प्रकृति के संरक्षण पर केन्द्रित नीतियों को अपनाया जाए। उन्होंने कहा कि गत दो सदियों में विकास की संकल्पना भौतिक बनती गई और इसलिए सरकारवाद और बाजारवाद समाज एवं सृष्टि को स्वस्थ एवं परंपरा अनुकूल नहीं बना सके।

किसी एक नेता या सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे

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उन्होंने कहा कि वह उदारीकरण की नीति को आगे बढ़ाने के लिए किसी एक नेता या सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे लेकिन मौजूदा हालात में वक्त की मांग है कि 1991 में अपनायी गईं आर्थिक नीतियों की समीक्षा की जाए। उन्होंने कहा कि विकास का पैमाना सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को मानने से विषमता दूर नहीं हो रही है, उलटा विषमता बढ़ती जा रही है। इसे रोकने के लिए सोच को बदलना होगा।

तो इसलिए भारत के ब्राजील बनने का खतरा बना रहेगा

गोविंदाचार्य ने कहा कि भारत की जनसंख्या एवं जमीन का अनुपात अन्य विकसित देशों की तुलना में भिन्न है। अगर हम अमेरिका के रास्ते पर चलेंगे तो भारत के ब्राजील बनने का खतरा बना रहेगा। वर्ष 2014 तक ब्राजील भी दुनिया की तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार था लेकिन उसके बाद वह घोर मंदी का शिकार होता चला गया।

घरेलू बाजार कमजोर हुए और खेती पर बुरा असर पड़ा है

उन्होंने कहा कि उदारीकरण के कारण घरेलू बाजार कमजोर हुए हैं और खेती पर बुरा असर पड़ा है जिससे रोजगार कम हुए। देश की 56 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर होने के बावजूद जीडीपी में कृषि का योगदान 16 प्रतिशत मात्र है। इसे देखते हुए सरकार को अब जीडीपी आधारित विकास की अवधारणा को त्याग कर घरेलू उत्पादन और उपभोग के आधार पर भारत की आर्थिक नीतियां बनायी जानी चाहिए और ये नीतियां प्रकृति का संपोषण को विकास मानने वाली हों। उन्होंने कहा कि देश में कृषि आधारित उद्योगों पर ध्यान देना होगा। देश में दलहन एवं तिलहन के उत्पादन को बढ़ाना चाहिए।

इससे पहले राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक पवन श्रीवास्तव ने बताया था कि आंदोलन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुक्रवार को होगी जिसमें देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति और जम्मू-कश्मीर को लेकर कश्मीर हमारा, कश्मीरी भी हमारे, अभियान की समीक्षा की जाएगी। इसके अलावा देश में आसन्न पेयजल संकट एवं उसके समाधान को लेकर भी जारी अभियान पर चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन का मानना है कि प्राणियों की प्यास बुझाने के लिए पेयजल का व्यावसायीकरण अनैतिक और पाप है। पेयजल के व्यापार की अनुमति नहीं जानी चाहिए।

श्रीवास्तव ने कहा कि पेयजल को बाजार के हवाले करने के दुष्परिणाम आने लगे हैं। शुद्ध जल का अभाव, प्रदूषण आदि संकटों को पैदा करने में बाजार की भूमिका है। सभी नागरिकों को शुद्ध पेयजल निशुल्क उपलब्ध कराना सरकार का कर्तव्य है। प्यास बुझाने के लिए पैसा देना अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि सरकार को इसके लिए एक साल का समय दिया जाएगा और यदि उस दौरान कुछ नहीं हुआ तो सभी सरकारी एवं गैरसरकारी बॉटलिंग प्लांट का घेराव किया जाएगा

 

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TAGS: Govindacharya, blames, liberalisation, policies, 1991, 'economic recession'
OUTLOOK 14 September, 2019
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