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29 September 2018

पब्लिक सेक्टर बैंकों के मर्जर या कंसोलिडेशन करने का औचित्य

केन्द्र सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया में एसोसिएट बैंकों के विलय के बाद एक और बड़े सरकारी बैंकों के विलय की घोषणा की है। इसके मुताबिक सरकारी क्षेत्र के तीन बैंकों, बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक का विलय किया जाएगा। यह सिलसिला यहीं नहीं रुकेगा बल्कि कुछ और भी बड़े बैंकों में कुछ छोटे बैंकों के विलय की तैयारी सरकार ने कर रखी है।

'आज के समय में 6 से 7 बड़े बैंकों की आवश्यकता है'

सरकार का कहना है की आज के समय में छोटे-छोटे बैंकों की आवश्यकता नहीं है बल्कि 6 से 7 बड़े बैंकों की आवश्यकता है क्योंकि ज्यादा बैंक होने से आपस में ही प्रतिस्पर्धा के कारण ये टिक नहीं पा रहे हैं और एनपीए से निपटने में भी नाकाम हो रहे हैं। सरकार के लिए भी इन बैंकों को पूंजी जुटाने में भी दिक्कत हो रही है।

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'विलय की इस प्रक्रिया से एनपीए जैसी समस्याओं से निजात पाना संभव नहीं'

लेकिन दूसरी ओर सरकार के इस फैसले से बैंकों की यूनियन सहमत नहीं हैं। यूनियंस का कहना है की विलय की इस प्रक्रिया से एनपीए जैसी समस्याओं से निजात पाना संभव नहीं है। सरकार ने पहले ही 11 बैंकों पर प्रदर्शन सुधारक कार्यवाही (पीसीए) को लागू किया हुआ है  जिससे इन बैंकों पर कई तरह की पाबंदियां लगाई हुई हैं जैसे ये बड़े लोन नहीं दे सकते,  नई शाखाएं नहीं खोल सकते और नई भर्ती पर भी रोक लगा रखी है।

ऐसे मे इन बैंकों के लिए काम करना बहुत ही मुश्किल है। स्टेट बैंक में एसोसिएट बैंकों के विलय के बाद भी स्टेट बैंक का एनपीए बढ़ा और घाटे में भी वृद्धि हुई है।

बैंकों के विलय से बढ़ सकती हैं इस तरह की समस्याएं

जब इन तीन बैंकों का विलय होगा तो इनकी कुल शाखाएं 8500 के करीब हो जाएंगी और यदि एक ही सड़क पर तीनों बैंकों की शाखाएं हैं तो निश्चित रूप से 2 शाखाओं को बंद किया जाएगा। एक ही प्रदेश में तीनों बैंकों के प्रशासनिक कार्यालयों में से एक या दो कार्यालय भी बंद करने पड़ेंगे, जिससे उन शाखाओं और प्रशासनिक कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों का दूर-दूर ट्रांसफर और छटनी होगी।

तीनों बैंकों में कर्मचारियों के प्रमोशन, ट्रासंफर और अन्य सुविधाओं के अलग-अलग नियम होंगे ऐसे में विलय के बाद किस बैंक के नियम लागू होंगे यह कहना भी मुश्किल है। जो लोग अपनी प्रमोशन का इंतजार कर रहे होंगे विलय के बाद सिनिओरिटी की समस्या भी आएगी यानी कुल मिलकार पेपर पर तो बैंकों का विलय हो जाएगा लेकिन अलग-अलग संस्कृति, प्रौद्योगिक प्लेटफार्म एवं मानव संसाधन का एकीकरण कैसे संभव होगा एक बड़ा प्रश्न है क्योंकि सभी बैंकों का अपना अपना सांस्कृतिक वातावरण होता है।

ग्राहकों का एक बैंक से भावनात्मक जुड़ाव

सभी बैंकों का अपना-अपना प्रौद्योगिक प्लेटफार्म होता है और कर्मचारियों की सेवा शर्तें और नियम भी अलग-अलग होते हैं। सभी बैंकों के द्वारा अपने ग्राहकों को अलग-अलग तरह के उत्पाद उपलब्ध कराए जाते हैं। ग्राहकों का भी लम्बे समय से एक बैंक से रिश्ता होने के कारण एक भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है जिसका असर भी विलय के पश्चात देखने को मिल सकता है।

 ना चाहते हुए भी कर्मचारी नौकरी छोड़ने को मजबूर

सरकार भले ही कहे की किसी भी कर्मचारी को निकाला नहीं जाएगा लेकिन स्टेट बैंक और उससे पहले हुए सभी बैंकों के विलय के बाद देखने में आया है की विलय होने वाले बैंक कर्मचारियों को दूसरे नागरिक की नजर से देखा जाता है और उनसे सही तरह का व्यवहार भी नहीं होता है जिससे ना चाहते हुए भी कर्मचारी नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।

बेरोजगार युवकों के रोजगार की उम्मीद पर भी फिर सकता है पानी

सरकार ने जबसे यह फैसला लिया है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों का विलय करके इनकी संख्या कम की जाएगी बैंकों में हो रही भर्ती पर भी इसका असर शुरू हो गया है। जहां 80 के दशक में बैंकों में भर्ती होने वाले ज्यादार कर्मचारी 2020-21 तक रिटायर्ड हो जाएंगे लेकिन इस विलय के निर्णय को देखते हुए बैंकों ने नई भर्ती में भी कमी करनी शुरू कर दी है। सरकारी क्षेत्र के इन बैंकों में अच्छी खासी संख्या में भर्तियां हो सकती थी और बेरोजगार युवकों को रोजगार की उम्मीद थी वह भी इस विलय से समाप्त हो जाएगी। 

ग्राहकों को भी करना पड़ सकता है असुविधा का सामना

ऐसे में क्या सरकार ऐसा भरोसा दिला सकती है की विलय के पश्चात बैंकों की बंद होने वाली होने वाली शाखाओं को दूसरी जगह पर खोला जाएगा और नई भर्तियां जारी रखी जाएंगी। स्टेट बैंक में एसोसिएट बैंकों के विलय के पश्चात जिस प्रकार से शाखाओं को बंद किया गया उससे ग्राहकों को भी असुविधा का सामना करना पड़ा है। उनकी पहले जो शाखा घर के पास थी वह दूर चली गई है और एक ही शाखा में 2 से 3 शाखाओं के विलय के पश्चात शाखा में भीड़ भी बढ़ गई है। 

इस फैसले से पहले सरकार शेयर होल्डर्स से बात करती तो हो सकता था अच्छा निर्णय

सरकार के बैंकों की संख्या कम करने का फैसला बैंकों को किस ओर ले जाएगा ये कहना मुश्किल है। यदि सरकार ने इस फैसले से पहले बैंकों से संबंधित सभी हितधारकों (जैसे बैंक प्रबंधन, बैंकों की यूनियंस और बैंकों के शेयर होल्डर्स) से बात की होती तो कोई और अच्छा निर्णय हो सकता था। ये सही है कि सरकार इन बैंकों की मालिक है लेकिन अभी इन बैंकों में प्राइवेट शेयर होल्डर्स का भी एक बड़ा हिस्सा है। बैंकों में काम कर रही ह्यूमन केपिटल (कर्मचारी वर्ग) का भी बड़ा रोल है।

अभी भी समय है सरकार इन सभी पक्षों से बात करे 

तो ऐसे में सभी पक्षों से बात किए बिना कोई निर्णय कितना कारगर होगा ये कहना मुश्किल है।  अभी भी समय है सरकार इन सभी पक्षों से बात करे और यदि सरकार के पास जो योजना है और उनको लगता है कि इससे बैंकों का भला हो सकता है तो सभी पक्षों से बात करके ही कोई निर्णय लेना सही रहेगा।

(लेखक नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स के उपाध्यक्ष हैं।)

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TAGS: Justification, merger, consolidation, public sector, banks
OUTLOOK 29 September, 2018
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