बंपर उत्पादन के चलते 16 फीसदी गिरी दलहन किसानों की आमदनी
वित्त वर्ष 2016-17 में देश में दलहन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ, जिससे दलहन किसानों के मुनाफे में औसतन 16 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। साथ ही किसानों की फसल लागत 3.7 फीसदी बढ़ गई। क्रिसिल रिसर्च की रिपोर्ट में ये जानकारी सामने आई है। क्रिसिल ने दलहन की कीमतों के उतार-चढ़ाव को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि चने को छोड़कर अन्य दालों में मुनाफा 30 फीसदी कम हुआ है। जहां दलहनों की कीमतों में गिरावट आ रही है, वहीं इसकी उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है। कृषि वर्ष (जुलाई से जून) 2016-17 में लागत 3.7 फीसदी बढ़ी है, जबकि पिछले साल लागत में 2.8 फीसदी इजाफा हुआ था। इसके बावजूद केंद्र सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी से भी किसानों की आय में गिरावट नहीं रुक पाई।
वर्ष 2016-17 में दलहन उत्पादन 229.5 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा, जो 2015-16 से करीब 40 फीसदी और 2013-14 के पिछले रिकॉर्ड उत्पादन से 19 फीसदी अधिक था। रिपोर्ट में कहा गया है कि साफ तौर पर सरकार दलहन की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर काबू पाने में असमर्थ रही है।
थोक दाम में 8 फीसदी की गिरावट
परिवारों के खाने के बजट और महंगाई में बड़ा हिस्सा होने के बावजूद सरकार अब तक इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने में नाकाम रही है। पिछले साल पांच मुख्य दलहनों का एमएसपी औसतन 12 फीसदी बढ़ाया गया था, लेकिन इसके बावजूद दलहनों (चने को छोड़कर) के थोक दाम में 8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। भारी उत्पादन और सस्ते आयात के कारण 2017 के कटाई सीजन में अरहर और मूंग की बाजार कीमतें एमएसपी से नीचे गिर गई थीं। अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 के बीच कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना की प्रमुख थोक मंडियों में अरहर और मूंग की कीमतें एमएसपी से नीचे थीं। सरकार के आंकड़े के अनुसार, 1 सितंबर तक बुवाई का क्षेत्रफल 14.30 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 13.76 मिलियन हेक्टेयर हो गया है।
भारत में दालों के दाम कम होने से खपत भी बढ़ी है। देश में हर साल औसतन 40 लाख टन दालों का आयात होता है और घरेलू उत्पादन करीब 180 लाख टन है। हालांकि 2016-17 में 230 लाख टन उत्पादन के बावजूद आयात 60 लाख टन पार कर गया है।
घरेलू खपत की एक-चौथाई आपूर्ति आयात से
गौरतलब है कि भारत में औसतन ढाई करोड़ हेक्टेयर में दलहनी फसलों की खेती की जाती है। विश्व के दाल क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा भारत में है, लेकिन यहां कुल वैश्विक उत्पादन का महज 20 फीसदी ही होता है। यही कारण है कि दाल की घरेलू खपत की एक-चौथाई आपूर्ति आयात से होती है।
इसके पीछे का कारण दालों की खेती के प्रति सरकार की उपेक्षा है। साथ ही दलहनी खेती के प्रति किसानों में जागरूकता का अभाव भी इसका एक कारण है। हालांकि सरकार समय-समय पर सभी प्रमुख दालों के लिए एमएसपी की घोषणा करती रहती है, लेकिन अनुशंसित कीमत पर सरकारी खरीद की पर्याप्त व्यवस्था न होने की दशा में दाल उत्पादकों के लिए कोई खास महत्व नहीं रह जाता है। दलहनी फसलों के साथ जो बुनियादी जोखिम हैं, उनका समाधान नहीं किया गया। सबसे बड़ी समस्या है असिंचित क्षेत्र में दलहनों की खेती। दलहनों के अधीन क्षेत्र का महज 16 फीसदी सिंचित है, जबकि गेहूं और धान के मामले में यह अनुपात क्रमश: 93 और 59 फीसदी है।