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11 March 2019

RBI बोर्ड ने दी थी सरकार को चेतावनी, नोटबंदी से काले धन पर नहीं लगेगी रोक

File Photo

8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5,00 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर करने का ऐलान किया था। नोटबंदी के ऐलान के पीछे सरकार की मंशा काले धन के खात्मे की थी। पीटीआई के मुताबिक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) बोर्ड के कुछ डायरेक्टर्स सरकार के इस विचार से सहमत नहीं थे। वर्तमान आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास तब बोर्ड डायरेक्टर्स में शामिल थे। 

दो साल से अधिक का वक्त बीत जाने के बाद नोटबंदी के पीछे रिजर्व बैंक की सोच पर किसी तरह का पर्दा नहीं रहा। हालांकि, नोटबंदी को लेकर बुलाई गई आखिरी मीटिंग के मिनट्स से पता चलता है कि बड़े नोटों को सिस्टम से बाहर करने के विचार पर आरबीआई की सोच क्या थी। 

आरबीआई की बोर्ड मीटिंग में क्या हुआ था

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दरअसल, सरकार ने कहा था कि नोटबंदी से काले धन, 500 और 1,000 रुपये के नोटों की संख्या में तेज वृद्धि और नकली नोटों के सर्कुलेशन पर लगाम लगेगी। साथ ही, ई-पेमेंट्स और फाइनैंशल इन्क्लूजन को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन, 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के ऐलान से तीन घंटे पहले शाम 5.30 बजे के आरबीआई की बोर्ड मीटिंग में कुछ डायरेक्टरों ने कहा, 'ज्यादातर काला धन नोटों के रूप में नहीं, बल्कि सोना, जमीन, मकान, दुकान जैसे रीयल एस्टेट के रूप में रखे जाते हैं और इस (नोटबंदी के) कदम से उन संपत्तियों पर कोई भौतिक असर नहीं होगा।'

सरकार से अलग थी डायरेक्टर्स की राय

कुछ आरबीआई डायरेक्टर्स ने सरकार के इस विचार पर असहमति प्रकट की कि बड़े नोटों की संख्या में वृद्धि की रफ्तार आर्थिक विस्तार की गति के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इन डायरेक्टर्स ने कहा कि अगर महंगाई को ध्यान में रखें तो यह वृद्धि का यह फासला बहुत बड़ा नहीं है। उन्होंने कहा था, 'जाली नोटों का छोटी सी संख्या भी चिंता का विषय है, लेकिन सर्कुलेशन में मौजूद नोटों के प्रतिशत के रूप में 400 करोड़ रुपये का आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं है।'

क्या थी सरकार की दलील?

सरकार की दलील थी कि 2011-12 से 2015-16 के बीच अर्थव्यवस्था में 30 प्रतिशत का विस्तार हुआ जबकि 500 रुपये को नोट 76 प्रतिशत और 1,000 रुपये के नोट 109 प्रतिशत बढ़े। इसके जवाब में आरबीआई ने कहा था, 'सरकार ने अर्थव्यवस्था की जिस वृद्ध दर का उल्लेख किया, वह रियल रेट है जबकि नोटों की वृद्धि दर नॉमिनल है। इसलिए, यह दलील सरकार के प्रस्ताव को मजबूत नहीं करती है।'

नोटबंदी एक सराहनीय कदम: आरबीआई

हालांकि, इन डायरेक्टरों ने सरकार के इस बात का समर्थन किया कि नोटबंदी से 'बड़ा सार्वजनिक हित' सधेगा क्योंकि इससे फाइनैंशल इन्क्लूजन (वित्तीय समावेशन) और डिजिटल पेमेंट्स को बहुत तेज गति मिलेगी। आरबीआई डायरेक्टरों ने कहा, 'प्रस्तावित कदम से वित्तीय समावेशन और पेमेंट्स के इलेक्ट्रॉनिक मोड्स के इस्तेमाल को गति देने के बडे अवसर पैदा होंगे।' कुछ डायरेक्टरों ने वित्त वर्ष 2016-17 के जीडीपी आंकड़े पर तात्कालिक नकारात्मक असर के प्रति भी ध्यान आकृष्ट किया था। हालांकि, उन्होंने नोटबंदी को एक 'सराहनीय कदम' बताया था।

छह महीने तक चली चर्चा

इन विचारों पर सरकार और आरबीआई के बीच छह महीने से चर्चा चल रही थी। सरकार के कुछ विचारों से असहमत होने के बावजूद आरबीआई बोर्ड ने नोटबंदी के प्रस्ताव को हरी झंडी दी। यह प्रस्ताव आरबीआई के डप्युटी गवर्नर ने लाया था, जिसका अनुमोदन वित्त मंत्रालय के एक नोट के जरिए किया गया था। इस नोट में 500 और 1,000 रुपये के नोटों की निकासी की एक ड्राफ्ट स्कीम का उल्लेख था। बोर्ड ने सरकार और आरबीआई ने विभिन्न विचारों पर छह महीने तक चर्चा सुनिश्चित की थी।

केंद्र ने आरबीआई को दिया था यह आश्वासन

केंद्र सरकार ने आरबीआई को भरोसा दिलाया था कि वह नकदी के इस्तेमाल को हतोत्साहित करेगा जबकि डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाएगा। आरबीआई बोर्ड ने जैसे ही नोटबंदी के प्रस्ताव को हरी झंडी दी, कुछ घंटे बाद ही प्रधानमंत्री ने टीवी पर 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने की घोषणा कर दी। 8 नवंबर, 2016 की शाम हुई आरबीआई बोर्ड मीटिंग के मिनट्स बताते हैं कि आरबीआई ने नोटबंदी को आंतकी फंडिंग एवं राष्ट्रविरोधी गतिविधियो में इस्तेमाल हो रहे काले धन और नकली नोटों को खात्मे का हथियार नहीं माना था।

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TAGS: RBI board, noteban, short-term impact, economy, black money
OUTLOOK 11 March, 2019
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