Advertisement
07 October 2019

ट्रेड वार के बाद भी चीन से मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां इस वजह से नहीं आईं भारत

अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार होने पर देश में लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि चीन में उत्पादन कर रही सैकड़ों ग्लोबल कंपनियां भारत की ओर रुख करेंगी और यहां न सिर्फ मैन्यूफैक्चरिंग में बहार आ जाएगी बल्कि नौकरियों और आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आएगी। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

वियतनाम से बहुत पीछे रह गया भारत

जापानी वित्तीय ग्रुप नोमुरा की एक स्टडी के अनुसार अप्रैल 2018 से अगस्त के बीच चीन से 56 कंपनियों ने अपने उत्पादन प्लांट शिफ्ट किए लेकिन भारत में सिर्फ तीन और इंडोनेशिया में सिर्फ दो कंपनियां आई। 56 में से 26 कंपनियां वियतनाम, 11 ताईवान और आठ थाईलैंड चली गईं। सवाल है कि भारत इन कंपनियों को लुभाने में क्यों विफल रहा।

Advertisement

चीन से अमेरिका को निर्यात महंगा हो रहा

अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी विवाद बढ़ता ही जा रहा है। शुल्क बढ़ने के कारण अमेरिकी आयातकों के लिए चीन से निर्यात लगातार महंगा हो रहा है। कई कंपनियां इस समस्या से निजात पाने के लिए अपने उत्पादन प्लांट चीन से दूसरे देशों में शिफ्ट करने पर विचार कर रही हैं। कई कंपनियों ने अपने प्लांट शिफ्ट करने के लिए योजना बना भी ली है। चीन में पिछले कुछ समय से लागत भी बढ़ रही है। लेकिन कई कंपनियां संकोच कर रही हैं क्योंकि प्लांट शिफ्ट करने के लिए नए स्थान की अनिश्चितता बड़ी मुश्किल है।

प्लांट शिफ्ट करने में आती हैं ये मुश्किलें

प्लांट को शिफ्ट करने का काम कोई आसान नहीं है। नया प्लांट लगाने की शुरुआती भारी लागत के अलावा दूसरे कारक भी अहम होते हैं। इनमें नए स्थान का बुनियादी ढांचा, संचार और संपर्क सुविधाओं पर भी विचार करना होता है। बेहतरीन और कम खर्चीली वेयरहाउसिंग और परिवहन व्यवस्था भी बहुत अहम है। प्लांट लगाने के लिए यह तो शुरूआती मुश्किलें हैं। नए स्थान पर कुशल कर्मचारियों की सुलभता, उन्हें प्रोडक्शन प्रोसेस की ट्रेनिंग देना भी चुनौतीपूर्ण होता है। इसके अलावा सरकारी सहायता, अनुकूल कर ढांचा, कानूनी व्यवस्था और नए देश में कारोबार शुरू करने के लिए मंजूरियां पाने की बाधाएं अलग से होती हैं।

चीन के बेहतर विकल्प हैं भारत और इंडोनेशिया

वैसे तो चीन को टक्कर देने के लिए भारत और इंडोनेशिया ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग पावरहाउस बनने के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। चीन में दुनिया की करीब 20 फीसदी मैन्यूफैक्चरिंग होती है। आबादी के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा और इंडोनेशिया चौथा सबसे बड़ा देश है। भारत की आबादी 2030 तक चीन को भी पीछे छोड़ सकती है। इन देशों में आबादी भी ज्यादा युवा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार भारतीय आबादी की औसत आयु 30 साल है जबकि इंडोनेशिया की 31 साल है। जबकि चीन में आबादी की औसत आयु 40 साल है।

लेकिन फिलहाल एफडीआइ पाने में विफल

चीन के मुकाबले भारत में श्रमिक लागत भी आधी है। भारत और इंडोनेशिया की जीडीपी विकास दर दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था में बेहतर है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मैन्यूफैक्चरिंग में एफडीआइ के लिहाज से इन देशों की विकास दर उनकी क्षमता से काफी कम है। इस वजह से उन्हें स्लीपिंग जायंट कहा जाता है। भारत में उसकी जीडीपी के मुकाबले सिर्फ 0.6 फीसदी एफडीआइ आता है जबकि इंडोनेशिया थोड़ी बेहतर स्थिति में है। वहां एक फीसदी एफडीआइ आता है। जबकि किसी भी देश के तेज आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और अतिरिक्त श्रम शक्ति खपाने के लिए एफडीआइ बहुत अहम मानी जाती है।

इस वजह से बाजी मार गया वियतनाम

ज्यादातर कारोबारी घराने किसी देश में निवेश करने के लिए सबसे प्रमुख ध्यान कारोबारी सुगमता यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर देते हैं। स्मार्टफोन कंपनी के एक अधिकारी के अनुसार वियतनाम में सिर्फ एक अधिकारी से संपर्क करना होता है। वह सरकार की सभी औपचारिकताओं और मंजूरियों का ख्याल रखता है। थाईलैंड और वियतनाम कैसे एफडीआइ को आकर्षित करते हैं, इस पर गौर करके भारत और इंडोनेशिया को कारोबार में उदारता, बुनियादी ढांचा विकास, भूमि सुधार और श्रम कानून और विदेशी निवेशकों के लिए कर रियायतों पर काफी कुछ करना होगा।

भारत के इस कदम से बड़े बदलाव की उम्मीद

अच्छी बात यह है कि दोनों ही देशों को इस बात का अहसास है और वे इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। भारत ने हाल में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती करके सबको चौंका दिया लेकिन इससे भारत में तेज विकास की उम्मीद पैदा हुआ है। लेकिन अभी भी भारत को काफी कुछ करना है। जैसे किसी उद्योग विशेष में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कर रियायतें देनी होंगी। निर्यात के लिए हाईटेक और इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग के लिए इस तरह की रियायतें दी जा सकती हैं। आयात को आसान बनाने से एसेंबली मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है। बुनियादी ढांचे के विकास पर भी भारत ध्यान दे रहा है। इंडोनेशिया में भी विदेशी कंपनियों को प्लांट लगाने के लिए कर रियायतें देने की घोषणा की गई है।

लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग कल्चर का अभाव

मैन्यूफैक्चरिंग की जैसी कल्चर जर्मनी, जापान, चीन और दक्षिण कोरिया में है, वैसी कल्चर भारत और इंडोनेशिया में नहीं है। इसका आशय है कि न सिर्फ बेहतरीन वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम आवश्यक है बल्कि युवाओं को उसकी ट्रेनिंग लेने के लिए इच्छा भी होनी चाहिए।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Trade War, manufacturing, FDI, tarrif, china, economy
OUTLOOK 07 October, 2019
Advertisement