शाबाश! बही-खाता बयान बहादुर निर्मला
हरिमोहन मिश्र
यकीनन, रिकॉर्ड तो बनता है। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड वाले तवज्जो दें। हमारी वित्त मंत्री ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ डाला। अफसोस! निगोड़ी खांसी और माथे पर पसीना ने दो पन्ने और पढ़ने से नहीं रोका होता तो तीन घंटे से भी ऊपर का रिकार्ड बन जाता। इस साल उन्होंने 2.41 घंटे बजट भाषण पढ़ने का रिकॉर्ड बनाया। पिछले साल जुलाई में वे 2.17 घंटे के बजट भाषण का रिकॉर्ड बना चुकी थीं। अब यह न पूछिए कि इतने लंबे भाषण से क्या कुछ निकला। बजट के बाजीगर तो बाल की खाल निकालने में माहिर हैं। मनचला शेयर बाजार भी बेमौके लुढ़कता रहता है। विपक्ष की जबान तो हमेशा ही कैंची की तरह चलती रहती है। सो, इन पर न जाइए। यह देखिए कि साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित कश्मीरी कवि दीनानाथ कौल नदीम के गीत “हमारा वतन खिलता हुआ शालीमार बाग जैसा, डल लेक में खिलता हुआ कमल जैसा, नौजवानों के गरम खून जैसा” पढ़कर किस कदर जोश भरा। यह हकीकत भी मान ली कि बही का घाटा 3.3 फीसदी से बढ़कर 3.8 फीसदी हो गया। कोई भला भाषण में यह क्यों तलाशे कि डूबती अर्थव्यवस्था की बात ज्यों की त्यों स्वीकार कर ली जाए। यह तो नाइंसाफी है कि बही में घटते राजस्व का ब्यौरा भी खुलकर बताया जाए, राज्यों और दूसरे मदों में देय रकम का ब्यौरा भी जाहिर किया जाए।
जो जरूरी था और हर ओर से हांका भी उठ रहा था कि लोगों के हाथ में खर्चने के पैसे दो तो वह चाहे जैसे हो, किया ही। बेरोजगारी और मंदी का सबसे ज्यादा शोर उठाने वाले मध्य वर्ग को आयकर रियायत का ऐलान करके खर्चने का इंतजाम कर ही दिया। यह अलग बात है कि यह ऐसे किया कि जोड़ते ही रह जाओ। आयकर की स्लैब को तोड़कर कई टुकडों में बांट दिया और यह भी कर दिया कि बचत की पुरानी रियायत छोडो तो नई कम दरें हासिल करो। अब जोड़ते रह जाओ कि किसमें फायदा है। मतलब शायद यह भी है कि बचत छोडो और कल की चिंता छोड़ खर्चो तो दर में छूट ले लो। है न मार्के का खर्च बढ़ाने का उपाय। इसे कहते हैं, सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
बेहिसाब रोने वाले और खुदकशी करके सियासी पारा चढ़ाने वाले किसानों के लिए 16 सूत्री पहल का ऐलान कर दिया। अलबत्ता, इस ऐलान में पीपीपी मॉडल से किसान रेल चलाने, सोलर पंप वगैरह जैसी बातें किसानों का क्या फायदा पहुंचाएंगी, यह भी जोड़ना तो लोगों का ही काम है न। मनरेगा को मांग आधारित बताकर उसका हिसाब-किताब बताने या किसी तरह के इजाफे से परहेज किया गया। तो, कृषि क्षेत्र में आमदनी बढ़ाने का वादा कहां गया, इसका हिसाब भला वित्त मंत्री को क्यों देना चाहिए। बहरहाल, किसान रेल, सोलर पंप वगैरह से निजी क्षेत्र को भी खुश होना ही चाहिए क्योंकि उसके लिए तो दरवाजे ही खुल रहे हैं। कारपोरेट क्षेत्र को आकर्षित करने के लिए लाभांश वितरण टैक्स (डीडीटी) से छूट दे दी गई है। यानी उसे तो टैक्स नहीं देना होगा, लेकिन जो लाभांश लेंगे, टैक्स का बोझ उनके माथे आ जाएगा। पहले इसे कंपनियों के सिर डाल दिया गया था। लेकिन कंपनियों खासकर विदेशी निवेशकों का रोना-धोना देखकर अब उसे दूसरों के सिर डाल दिया गया। है न कमाल की बाजीगरी। अब इस पर भी कारपोरेट और विदेश निवेशक न आएं तो भला वित्त मंत्री उनकी राह कितनी निर्मल बनाएं।
तो, अब आप समझते रहिए कि रिकॉर्डतोड़ बही-खाता भाषण में आपको क्या मिला, अर्थव्यवस्था को क्या हासिल हुआ और कैसे इससे बेरोजगारी घटेगी, कैसे किसान ऊपर उठेंगे? फिर भी, निर्मला सीतारमन की मेहनत की तारीफ होनी चाहिए कि वे तबीयत बिगड़ने, गला सूखने के बावजूद सुनने वालों के धैर्य की परीक्षा लेती रहीं। यकीनन, लाजवाब!