इजरायल-हमास युद्ध: अनिश्चितता के साये में भारतीय अर्थव्यवस्था!
आयरलैंड, जर्मनी, ग्रीस, यूके समेत दर्जनों देश मंदी के कगार पर खड़े हैं और वर्ल्ड बैंक के मुताबिक भारत इस समय दुनिया का 'ब्राइट-स्पॉट' है. एक्सपर्ट्स की माने तो इजरायल-हमास युद्ध का सीधा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था और भारत का इजरायल और अरब देशों से होने वाले व्यापार पर हो सकता है. रेलवे, पोर्ट, ऑयल और गैस, डिफेंस, ट्रेवल और टूरिज्म, ज्वेलरी और आईटी जैसे सेक्टर्स भी सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे.
7 अक्टूबर को हमास द्वारा इजरायली नागरिकों पर हजारों रॉकेट से हमला किया था. अभी तक दोनों ही ओर से जारी हमलों में करीब 6 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. फिलहाल ये युद्ध आने वाले कुछ दिनों में रुकता नजर नहीं आ रहा है और ऐसे में अगर ये युद्ध और फैलता है तो इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर कैसा होगा? फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाईजेशन के सीईओ अजय सहाय आउटलुक हिंदी से कहते हैं, "अगर इजरायल हमास से ऊपर उठकर पूरे गाजा पर कार्यवाई करेगा तो इसका प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है. कई देश युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वर्ल्ड ट्रेड और वर्ल्ड इकोनॉमी एक और झटका बर्दाश्त नहीं कर सकती है."
गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2023 में भारत-इजरायल द्विपक्षीय व्यापार दोगुना होकर लगभग 11 बिलियन डॉलर हो गया है, जो 2021-22 की महामारी-पूर्व अवधि में 5.65 बिलियन डॉलर था. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इसमें भारतीय व्यापारिक निर्यात 7.89 बिलियन अमेरिकी डॉलर और भारत को इजराइली निर्यात 2.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. हालांकि अजय सहाय की माने तो भारत इजरायल से ज्यादा अरब देशों के रुख को लेकर चिंतित होगा. विदेश मंत्रालय के मुताबिक, अरब देशों के साथ भारत का कुल द्विपक्षीय व्यापार 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है. इजरायल की तुलना में ये आंकड़ा 11 गुना ज्यादा है.
भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार स्वेज़ नहर, लाल सागर और अदन की खाड़ी से होकर गुजरता है. ऐसे में इस क्षेत्र में अशांति से होने वाले प्रभाव से भारत भी अछूता नहीं रहेगा. शिपिंग कंपनी जैस्पर के सीईओ, पुष्पांक कौशिक आउटलुक हिंदी से कहते हैं, "इस संघर्ष के परिणामस्वरूप समुद्री मार्गों में रुकावट पैदा हो सकता है, जिससे शिपिंग कॉस्ट में वृद्धि हो सकती है और एक्सपोर्ट प्रभावित हो सकता है." थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के मुताबिक, अगर युद्ध के कारण इजरायल के तीन सबसे बड़े बंदरगाहों, हाइफ़ा, अशदोद और इलियट पर परिचालन बाधित हो जाता है तो व्यापार गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है. ये बंदरगाह कृषि उत्पादों, रसायनों, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और वाहनों के शिपमेंट के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.
जंग का सबसे बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों पर भी पड़ेगा जिसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर होगा. भारत अपने तेल का 70% जरूरत अरब देशों से पूरा करता है. इतिहास में झांके तो पता चलता है कि मिडिल-ईस्ट में संघर्ष के कारण तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. 1973-1974 के ओपेक तेल प्रतिबंध, 1978-1979 की ईरानी क्रांति, 1980 में शुरू हुए ईरान-इराक युद्ध और 1990 में पहले फारस की खाड़ी युद्ध के बाद तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है.
जब से इजरायल-हमास युद्ध भड़का है कच्चे तेल की कीमतों में 5% से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. तेल की कीमतें 94 डॉलर प्रति बैरल तक चढ़ गईं है. ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के मुताबिक अगर ईरान युद्ध में कूदता है तो तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं और वैश्विक विकास दर 1.7% तक गिर सकती है. इसके अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर का भी नुकसान होगा. अभी तक के गतिरोध में बैंक ऑफ अमेरिका ने अपना तेल अवीव आफिस बंद कर दिया है, जबकि गोल्डमैन सैक्स और जेपी मॉर्गन चेज़ ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा है. नेस्ले ने भी अपना प्रोडक्शन प्लांट अस्थाई रूप से बंद कर दिया है.
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इंफोसिस, विप्रो, अडानी पोर्ट्स, भारतीय स्टेट बैंक, लार्सन एंड टुब्रो, भारत फोर्ज और सन फार्मा जैसी भारतीय कंपनियां भी स्थिति पर लगातार नजर बनाई हुई हैं. इजरायल-हमास युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा इसपर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन का कहते हैं, "अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. ये ऐसा नहीं दिख रहा जो तत्काल और महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पैदा कर रहा है, लेकिन हमें बारीकी से नजर बनाए रखने की जरूरत होगी."