मांग बढ़ाने वाला होना चाहिये बजट, पांच लाख तक की आय हो करमुक्त
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नवंबर में नोटबंदी के असर से अर्थव्यवस्था पर थोड़े समय तक विपरीत प्रभाव रहेगा और आर्थिक वृद्धि दर एक प्रतिशत तक गिर सकती है। वर्ष 2015-16 में वृद्धि 7.6 प्रतिशत और चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 7.2 प्रतिशत थी। विशेषज्ञों के अनुसार कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन इस बार बेहतर रहने की उम्मीद है इसलिये नोटबंदी से पड़ने वाले असर को यह कुछ कम करेगा।
उद्योग मंडल एसोचैम की अप्रत्यक्ष कर समिति के अध्यक्ष निहाल कोठारी का अनुमान है कि 2016-17 में आर्थिक वृद्धि 6.5 से 7 प्रतिशत के दायरे में रहेगी। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से खुदरा और लघु उद्योगों पर असर पड़ा है। बजट में उनके प्रोत्साहन के कुछ खास उपाय होने चाहिये।
कोठारी मानते हैं कि व्यक्तिगत आयकर में छूट कुछ न कुछ बढ़ाई जा सकती है। यह स्लैब में वृद्धि या दरों में कमी के रूप में हो सकती है। उपभोक्ता वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क दरों में भी कमी लाई जा सकती है। पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के मुख्य अर्थशास्त्री एस.पी. शर्मा ने कहा, लोगों की खर्च करने लायक आय बढ़नी चाहिये। पांच लाख रुपये तक की आय पर कोई कर नहीं लगना चाहिये। सालाना पांच लाख रुपये अब नया सामान्य स्तर बन गया है।
शर्मा ने कहा कि कृषि क्षेत्र के लिये केन्द्रीय योजना में छह प्रतिशत हिस्सा आवंटित होना चाहिये। कृषि क्षेत्र में काफी कुछ सुधार की जरूरत है। कृषि उत्पादक क्षेत्रों को सीधा मंडियों से जोड़ने की जरूरत है।
वर्तमान में ढाई लाख रुपये तक की आय कर मुक्त है जबकि ढाई से पांच लाख रुपये की आय पर 10 प्रतिशत, पांच से दस लाख रुपये की सालाना आय पर 20 प्रतिशत और दस लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत की दर से कर लगाया जाता है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले बजट में पांच लाख रुपये तक की वार्षिक आय के दायरे में आने वाले करदाताओं को विशेष छूट के तहत 2,000 रुपये की छूट को बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दिया था।
इसके अलावा किराये पर रहने वाले करदाताओं के लिये जिन्हें नियोक्ता से किसी प्रकार का मकान भत्ता नहीं मिलता है, उनकी सालाना कर योग्य आय में से 24,000 रुपये की कटौती को बढ़ाकर 60,000 रुपये सालाना कर दिया था।
वित्त मंत्री ने पिछले बजट में कंपनी कर दरों में कमी की भी शुरुआत की थी। उन्होंने कुछ शर्तों के साथ कंपनियों को 25 प्रतिशत की निम्न दर से कर देने का विकल्प उपलब्ध कराया। वस्तु एवं सेवाकर :जीएसटी: के मुद्दे पर निहाल कोठारी ने कहा, मौजूदा परिस्थिति में एक अप्रैल से जीएसटी लागू होना मुश्किल लगता है, लेकिन एक जुलाई से इसे लागू किया जा सकता है। जीएसटी लागू करने के लिये उद्योगों को भी तैयारी करनी होगी, उसके बाद ही यह लागू हो सकेगा। शर्मा ने भी कहा कि जीएसटी में ज्यादा देरी नहीं होनी चाहिये।
इंडियन आॅयल कारपोरेशन के आर.एस. बुटोला ने पेटोलियम क्षेत्र के बारे में कहा कि सरकार को कच्चे तेल पर उपकर को मूल्यानुसार 8 से 10 प्रतिशत रखना चाहिये। मौजूदा 20 प्रतिशत की दर काफी ज्यादा है। उन्होंने देश में कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिये मौजूदा खोज क्षेत्रों में भी कंपनियों को विभिन्न प्रकार के प्रोत्साहन देने की वकालत की है। भाषा एजेंसी