खेसारी दाल पर रोक हटी तो होंगे गंभीर नुकसान
केंद्र सरकार ने 55 सालों से प्रतिबंधित खेसारी की दाल से प्रतिबंध हटाने की दिशा में बढ़ रही है, लेकिन इस बात को लेकर गंभीर चिंताएं जाहिर की जा रही हैं कि इससे लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कैसे रोका जाएगा।साथ ही किस तरह से केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जो कम दुष्परिणाम वाली तीन किस्में तैयार की हैं, उन्हें कैसे किसानों तक मुहैया कराएगी। कैसे सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जो नुकसानदेह खेसारी की दाल और उसके बीज किसानों के पास हैं, उसे किसान न फिर से बोए। कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बताया कि अनुसंधान से खेसारी दाल की तीन नई किस्मे तैयार की गई हैं, जो कम नुकसानदेह हैं।
केंद्र सरकार द्वारा खेसारी की दाल को मंजूरी देने पर विचार करने और और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान द्वारा ऐसा प्रस्ताव पेश करने की कड़ी आलोचना करते हुए जनता दल (यू) के सांसद केसी त्यागी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा को पत्र लिखा है और इस सिफारिश पर पुनर्विचार करने को कहा है। पत्र में केसी त्यागी ने यह आशंका उठाई है कि खेसारी की दाल से होने वाले स्वास्थ्य के खामियाजे, खासतौर से लकवा आदि दिक्कतें फिर से बढ़ सकती है। इससे समाज में दालों के उपभोग को लेकर वर्ग विभेद भी तेज हो जाएगा। अमीर लोग तो खेसारी की दाल खाएंगे नहीं, वे अरहर या तूल की दाल का ही सेवन करेंगे, जबकि गरीबों को केसारी परोसी जाएगी। पहले से बीमार और कुपोषित भारत के लिए खेसारी से प्रतिबंध उठाना कत्तई सही नहीं है। केसी त्यागी का आरोप है कि खेसारी दाल को मंजूरी देने के लिए जो तर्क पेश किए जा रहे हैं वे सही नहीं है। शोध संस्थान खेसारी से प्रतिबंध उठाने के पीछे गरीबों को प्रोटीन मुहैया कराने का तर्क दे रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि इस तरह की सिफारिश के पीछे उपभोक्ता मंत्रालय और शोध संस्थानों के निहित स्वार्थ काम कर रहे हैं। अब मंजूरी के लिए चूंकि मामला स्वास्थ्य मंत्रालय के पास है, इसलिए केसी त्यागी बाकी लोग स्वास्थ्य मंत्री से इसे रोकने के लिए आग्रह कर रहे हैं।
कृषि विशेषज्ञ कविता कुरुंगंति ने आउटलुक को बताया कि केंद्र सरकार का इस तरह अचानक खेसारी की दाल पर से प्रतिबंध उठाने की सिफारिश संदेह पैदा करती है। आखिर सरकार के पास क्या रिपोर्ट आई है जिसके आधार पर इतना आनन-फानन यह फैसला करने की तैयारी हो रही है। 1961 से प्रतिबंधित खेसारी की दाल बकौल केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के 4-5 लाख हेक्टेयार में उठाई जाती है। मेरा सवाल है कि ये कैसे संभव हो सकता है कि जो दाल प्रतिबंधित है, उसका इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा हो और सरकार के पास सारे आंकड़े हैं, फिर उसे रोकने के लिए कोई उपाय क्यों नहीं किया। दूसरी बात यह है कि अगर सरकार ये चाहती है कि अभी किसान इन तीन उन्नत किस्म के खेसारी की दाल के बीजों से ही खेती करें, तो क्या इसके लिए उसने कोई रणनीति बनाई है। कैसे सरकार मौजूदा केसारी बीजों को उन्नत बीजों से बदलेगी। इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं है। मुझे लगता है कि केंद्र सरकार ने शोध पर आनन-फानन सफलता हासिल करने के लिए ये कदम उठाया है। एक और जरूरी पहलू पर केंद्र सरकार अभी चुप है कि खेसारी की दाल को अभी भी सीमित मात्रा में और एक खास तरीके से पकाने की बात कही जा रही है, लेकिन इस बारे में उपभोक्ताओं को जागृत करने के कोई कदम ककैसे और कब उठाएगी। गौतलब है कि इस दाल में विषाक्त रसायन बीटा एन ओक्सालिल एल बीटा डाइएमीनोपिओनिक अम्ल या ओडेप या ओडीएपी के कारण सन 1961 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
एक बात साफ है कि दाल की कमी और उसके आसमान छूते दामों को लेकर देश भर में फैले आक्रोश को कम करने के उपाय के तौर पर केंद्र सरकार में इस प्रतिबंध को हटाने पर विचार चल रहा है। लेकिन इससे वाकई में कितना फायदा होगा, इसका कोई आंकलन केंद्र सरकार के पास भी नहीं है। फिर ये सवाल तो बना ही हुआ है कि क्या केंद्र गरीबों के लिए खेसारी और उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के लिए अरहर की दाल का भेद पैदा करने जा रही है।