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15 November 2019

चार दशक में पहली बार उपभोक्ता खर्च में गिरावट, नमक खर्च में भी कटौती कर रहे ग्रामीण

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस) के एक सर्वे के अनुसार चार दशक में पहली बार 2017-18 में उपभोक्ता खर्च में 3.7 प्रतिशत की कमी आई है। यह गिरावट गरीबी से प्रभावित लोगों की बढ़ती संख्या की ओर संकेत करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह गिरावट ज्यादा दर्ज की गई।

एनएसओ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार यह एक चिंताजनक स्थिति है। दशकों में पहली बार भोजन की खपत में गिरावट आई है और यह कुपोषण की ओर इशारा करती है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, “सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्रामीण लोगों ने औसतन 2017-18 में भोजन पर मासिक रूप से 580 रुपये खर्च किए, जो कि 2011-12 में 643 रुपये से लगभग 10 प्रतिशत कम है। 2017-18 में शहरी लोगों के लिए संबंधित आंकड़ा 946 रुपये था, जो 2011-12 में 943 रुपये था। यह स्थिति धीमी गति को दर्शाती है।

नमक के खर्च में भी कटौती

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देश में गरीबी के बढ़ते प्रचलन ने  गांवों में लोगों ने दूध से संबंधित उत्पादों को छोड़कर, खाद्य पदार्थों पर अपना खर्च घटा दिया है। उन शहरों में प्रवृत्ति अलग नहीं है, जहां लोगों ने खाना पकाने के आवश्यक पदार्थों जैसे कि खाद्य तेल, चीनी, मसाले यहां तक कि नमक पर भी अपने खर्च में कटौती की है।

 बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, एनएसओ सर्वेक्षण इस तथ्य को रेखांकित करता है कि बाजार में मांग की कमी है और यह ग्रामीण बाजार में ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है, “2011-12 में एक व्यक्ति द्वारा महीने भर में खर्च की गई औसत राशि 1,501 रुपये से गिरकर 2017-18 में 1,446 रुपये हो गई है।” इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “मासिक प्रति व्यक्ति खपत व्यय (एमपीसीई) के आंकड़े वास्तविक रूप से हैं, जिसका अर्थ है कि मुद्रास्फीति को समायोजित किया गया है। 2009-10 को आधार वर्ष के रूप में रखा गया था।” अप्रबंधित एनएसओ सर्वेक्षण में उन गांवों में उपभोक्ता खर्च में गिरावट को भी उजागर किया गया है, जो 2017-18 में 8.8 प्रतिशत कम हो गए थे। हालांकि, शहरी उपभोक्ता खर्च में छह साल में 2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।

पांच साल में पहली बार ऐसी गिरावट

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में एसोसिएट प्रोफेसर हिमांशु का कहना है, “कम से कम पिछले पांच साल में तो ऐसा दौर कभी नहीं आया कि खर्च के वास्तविक रूप में गिरावट आई हो। डाटा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि गरीबी का स्तर काफी हद तक बढ़ गया है।”

एनएसओ ने आखिरी बार 1972-73 में व्यय में भारी गिरावट दर्ज की थी। तब वैश्विक तेल संकट को खपत में गिरावट को लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल जून में जारी होने वाली एनएसओ रिपोर्ट को प्रतिकूल निष्कर्षों के कारण रोक दिया गया था। सर्वेक्षण जुलाई 2017 और जून 2018 के बीच हुआ था। संयोग से उसी समय पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू किया था।

एनएसओ के आंकड़ों के मुताबिक, बेरोजगारी दर 2017-18 की तुलना में 2017-18 में 45 प्रतिशत अधिक 6.1 प्रतिशत रही, जबकि 2011-12 में यह 2.2 प्रतिशत थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा अनुमोदित होने के बाद सरकार द्वारा पांच महीने तक जारी करने के लिए मियादी श्रम बल सर्वेक्षण भी रोक दिया गया था।

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TAGS: Consumer Spending, National Statistical Office, National Statistical Commission
OUTLOOK 15 November, 2019
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