पेट्रोलियम कंपनियों का वित्तीय बोझ कम करे सरकार
फिच ने कहा है, हमें उम्मीद है कि सरकार उत्खनन कारोबार करने वाली सरकारी तेल कंपनियों पर वित्तीय बोझ कम करने के लिए हस्तक्षेप करेगी क्योंकि तेल की कीमतों बहुत नीचे आ चुकी है। सरकारी हस्तक्षेप से उनके नकदी प्रवाह पर दबाव कम होगा। एजेंसी ने कहा है कि अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कार्ययोजना नहीं दिखी है। एजेंसी का मानना है कि ईंधन कीमतों में कमी से भारत में मुद्रास्फीति की दर नरम बनी रहेगी।
मुद्रास्फीति इस समय घटकर छह प्रतिशत से नीचे आ चुकी है जो 2013 के शुरूआती महीनों में 10 प्रतिशत से भी अधिक थी। मुद्रास्फीति घटने से ब्याज दरें घटेंगी और निवेश को बल मिलेगा। फिच का यह भी कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में यदि वर्तमान स्तर से ज्यादा बढ़े तो उपभोक्ताओं के जेब पर बोझ बढ़ेगा क्योंकि डीजल और पेट्रोल के दाम मुक्त किये जा चुके हैं।
कच्चे तेल का दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस साल के शुरू में गिरकर 46 डॉलर प्रति बैरल के आसपास आ गया था जो हाल के दिनों में बढ़कर 69 डॉलर पर पहुंच गया है। सरकार ने पेट्रोल के दाम 2010 में ही नियंत्रण मुक्त कर दिया था जबकि डीजल को पिछले साल विनियंत्रित किया गया।