मोदी के 5.5 साल के कार्यकाल में गलत नीतियों से देश का कर्ज 71 फीसदी बढ़ाः कांग्रेस
कांग्रेस ने केंद्र सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पिछले साढ़े पांच साल के मोदी सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय कर्ज 71 फीसदी बढ़कर 91.01 लाख करोड़ रुपये हो गया। कांग्रेस के प्रवक्ता प्रो. गौरव वल्लभ ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि मोदी सरकार के दोषपूर्ण वित्तीय प्रबंधन के कारण पिछले पांच साल में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में वार्षिक वृद्धि दर के मुकाबले प्रति व्यक्ति कर्ज की वार्षिक वृद्धि दर लगभग दोगुनी रही।
प्रति व्यक्ति जीडीपी के मुकाबले कर्ज दोगुनी रफ्तार से बढ़ा
प्रो. वल्लभ ने कहा कि मार्च 2014 में राष्ट्रीय कर्ज 53.11 लाख करोड़ रुपये था जो सितंबर 2019 में बढ़कर 91.01 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसके कारण प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय कर्ज 41,200 रुपये से बढ़कर 68,400 रुपये हो गया। पिछले साढ़े पांच साल में प्रति व्यक्ति कर्ज 27,200 रुपये बढ़ गया। इस अवधि में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय कर्ज कुल 66 फीसदी यानी प्रति वर्ष 10.3 फीसदी बढ़ा। इसके विपरीत प्रति व्यक्ति जीडीपी में इस दौरान 30 फीसदी यानी प्रति वर्ष 5.3 फीसदी की वृद्धि हुई।
विकास के लिए सरकार के पास पैसा नहीं होगा
कांग्रेस का कहना है कि 2014 में जीडीपी के प्रत्येक रुपये में कर्ज 43 फीसदी था जो 2019 में यह बढ़कर 48 फीसदी हो गया। 2010 जीडीपी के मुकाबले राष्ट्रीय कर्ज 65 फीसदी था जो 2019 में बढ़कर 69.7 फीसदी हो गया। अनुमान है कि मार्च 2020 तक यह बढ़कर 70.1 फीसदी हो जाएगा। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि जीडीपी विकास दर धीमी पड़ने और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कर संग्रह में गिरावट आने से सरकार के सामने वित्तीय तंगी और बढ़ सकती है। इससे या तो सरकार के पास विकास कार्यों के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होगा या फिर उसका कर्ज और असहनीय हो जाएगा। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर पड़ने से भी विदेशी कर्जो का प्रति व्यक्ति भार तेजी से बढ़ रहा है।
आम लोगों के जीवन पर इस तरह असर पड़ेगा
कांग्रेस का कहना है कि बढ़ता कर्ज आम लोगों के जीवन की मुश्किलें बढ़ सकता है। कर्ज बढ़ने से सरकार के लिए समय पर कर्ज लौटाना कठिन हो जाएगा। आरबीआइ को हाल में जारी ट्रेजरी बांड के लिए निवेशक जुटाने को इन पर ब्याज बढ़ाना होगा। ब्याज अदा करने के लिए कर राजस्व का ज्यादा हिस्सा खर्च होने पर सरकार के पास जनता से जुड़ी सेवाओं के लिए कम पैसा बचेगा। इससे अंततः लोगों का जीवन स्तर प्रभावित होगा।
आर्थिक दुष्चक्र में फंस जाएगा देश
यही नहीं, आरबीआइ को घरेलू ब्याज दरें भी बढ़ानी होंगी। जिससे घरेलू उद्योगों की वित्तीय स्थिति खराब होगी। आम लोगों के लिए कर्ज महंगे हो सकते हैं। जाहिर है कि कर्ज महंगे होने से महंगाई को भी हवा मिलेगी। इस समय भी स्थिति ऐसी विकट है कि एक ओर तो विकास दर धीमी है जबकि महंगाई बढ़ रही है। ऐसे में सरकार को और ज्यादा राहत पैकेज देने की आवश्यकता है। इसके लिए उसे और कर्ज लेना पड़ेगा। सरकार को इसी स्थिति से निकलने और देनदारियां पूरी करने के लिए आरबीआइ पर अपने रिजर्व से 1.76 लाख करोड़ रुपये देने के लिए दबाव डाला गया। यही नहीं, सरकार आरबीआइ से और लाभांश देने के लिए कह सकती है।
गरीब-अमीर की खाई और गहरी होगी
कॉरपोरेट टैक्स में 1.45 लाख करोड़ रुपये की कमी आने की आशंका के चलते सरकार की वित्तीय मुश्किल बढ़ गई हैं। प्रति व्यक्ति जीडीपी में धीमी वृद्धि से गरीब और अमीरों की आय और संपदा में खाई और गहरी होगी। ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार देश के एक फीसदी अमीर भारतीयों की संपदा 70 फीसदी सबसे गरीब लोगों की संपदा से भी ज्यादा है।
आगामी बजट में गलतियां सुधारनी चाहिए
कांग्रेस ने कहा है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में प्रति व्यक्ति कर्ज 10.3 फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ा जबकि प्रति व्यक्ति जीडीपी में वार्षिक वृद्धि दर महज 5.3 फीसदी रही। सरकार की गलत नीतियों के कारण प्रति व्यक्ति आय, रोजगार और नए निवेश की रफ्तार धीमी पड़ गई है। ऐसे में वह बेतहाशा कर्ज का भुगतान कैसे करेगी। सरकार को अगले बजट में इस पर ध्यान देना चाहिए। हर देश को आर्थिक विकास और लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए कर्ज लेना होता है लेकिन कर्ज का उत्पादक इस्तेमाल हो, यह ध्यान रखना सरकार का काम होता है।