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27 September 2016

वित्तीय बाजार 2008 के बाद नीति नियामकों के काबू से बाहर निकल गए: सेबी प्रमुख

गूगल

सेबी प्रमुख सिन्हा ने आज मुंबई में ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) बॉंड बाजार सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि 2008 के वित्तीय संकट के बाद दुनिया भर में केंद्रीय बैंकों ने जो गैर परंपरागत नीतियां अपनानी शुरू की हैं उससे वैश्विक बॉंड बाजार में गंभीर चुनौतियां और अनिश्चितताएं पैदा हो गई हैं। उन्होंने कहा कि ये अनिश्चितताएं इतनी बड़ी हैं कि आज वित्तीय बाजार राष्ट्रीय नीति निर्माताओं के नियंत्रण से बाहर निकल गए हैं। सेबी प्रमुख ने कहा कि दुनिया के प्रमुख बैंकों मसलन अमेरिकी फेडरल रिजर्व, यूरोपीय केंद्रीय बैंक, बैंक आफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान के बही खाते (कारोबार) काफी बड़े हो गए हैं। ये बैंक या तो शून्य या नकारात्मक ब्याज दर नीतियां अपना रहे हैं। सिन्हा ने कहा कि इन केंद्रीय बैंकों का बही खाता 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद 7,200 अरब डॉलर बढ़ चुका है। गैर परंपरागत नीतियों की वजह से यह मौद्रिक नीतियों का प्रभाव नीचे तक पहुंचने में एक गंभीर खामियां उत्पन्न हो गई हैं। कहने को बाजार में व्यापक मुद्रा आपूर्ति 9,000 अरब डॉलर से अधिक बढ़ी है, लेकिन इसमें से कंपनियों को वास्तविक ऋण मुश्किल से 1,800 अरब डॉलर का ही हुआ है।

वैश्विक नियामकों के बीच बेहतर संयोजन की वकालत करते हुए सेबी प्रमुख सिन्हा ने कहा कि ब्रिक्स नियामकों तथा अन्य नीति निर्माताओं के बीच एक अच्छी शुरआत की जा सकती है। उन्होंने कहा, ब्रिक्स को एक साथ आकर बॉंड बाजार से संबंधित अपने अनुभवों को साझा करना चाहिए। उन्हें ब्रिक्स बॉंड बाजार भी विकसित करना चाहिए। सिन्हा ने कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा नकारात्मक ब्याज दरों पर भी चिंता जताते हुए कहा कि इनसे भी बाजार में अनिश्चितता पैदा हो रही है। चीन की अगुवाई में अघोषित मुद्रा युद्ध के बारे में सिन्हा ने कहा कि मुद्राओं के प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन से भी बाजार प्रभावित हो रहे हैं, विशेषरूप से वे बाजार जो निर्यात आधारित हैं।

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OUTLOOK 27 September, 2016
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