बिल्डर के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करवा सकते हैं फ्लैट खरीदार, नियम में संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
सुप्रीम कोर्ट ने इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) में किए गए संशोधनों को वैध करार देते हुए फ्लैट खरीदारों को वित्तीय लेनदार का दर्जा बरकरार रखा है। इसके साथ ही बिल्डरों को बड़ा झटका दिया है। अदालत के इस फैसले से दिवालिया हो रही रियल्टी कंपनियों से अपने अधिकार पाने में फ्लैट खरीदारों को बड़ी सहूलियत होगी। इससे खरीदार बिल्डर के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन कर सकेंगे।
रेरा से ऊपर माने जाएंगे आइबीसी के संशोधन
जस्टिस आर. एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने तमाम बिल्डरों की 180 से ज्यादा याचिकाओं को निस्तारित करते हुए फैसला सुनाया कि रियल एस्टेट सेक्टर के नियमन के लिए बने रेरा एक्ट को आइबीसी के संशोधनों के साथ पढ़ा जाना चाहिए। अगर किसी केस में दोनों कानूनों के प्रावधानों में कोई विरोधाभास मिलता है तो आइबीसी के संशोधित प्रावधान लागू होंगे।
सरकार को आवश्यक कदम उठाने के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वास्तविक फ्लैट खरीदार बिल्डर के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की मांग कर सकते हैं। अदालत ने केंद्र को इसके संबंध में आवश्यक कदम उठाकर अदालत में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
बिल्डरों ने कहा था, रेरा और आइबीसी संशोधनों में दोहराव
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बिल्डरों की तमाम याचिकाओं की सुनवाई के बाद आया है। बिल्डरों ने अपनी याचिकाओं में तर्क दिया था कि फ्लैट खरीदारों के लिए रेरा कानून में राहत पाने के लिए अधिकार दिए गए हैं। आइबीसी में किए गए संशोधन महज दोहराव भर हैं।
बिल्डर नहीं चाहते कि खरीदारों को मिले आइबीसी में अधिकार
दरअसल बिल्डर नहीं चाहते थे कि समय पर पजेशन न मिलने और पैसा अटकने पर फ्लैट खरीदारों को उनके खिलाफ आइबीसी में अधिकार मिलें। आइबीसी में कानून ज्यादा सख्त हैं और दिवालिया प्रक्रिया ज्यादा तेजी से होती है। इस प्रक्रिया में बिल्डरों पर पैसा लौटाने और ऐसा करने में विफल रहने पर प्रोजेक्ट और कंपनी छिनने का खतरा रहता है। इस वजह से वह चाहते थे कि रेरा के तहत ही फ्लैट खरीदारों को कानून मदद लेने का अधिकार मिले।
खरीदारों के हजारों करोड़ रुपये फंसे बिल्डरों के पास
फ्लैट खरीदारों को वित्तीय लेनदार बनाने का मुद्दा आइबीसी लागू होने के समय से महत्वपूर्ण रहा है। शुरुआती प्रावधानों में कर्जदाताओं, सप्लायरों और दूसरे उन पक्षों को ही वित्तीय लेनदार माना गया था जिनकी लेनदारी दिवालिया हो रही कंपनी पर निकलती है। लेकिन बिल्डरों के मामले में लाखों फ्लैट खरीदार ऐसे अहम पक्ष हैं जिनके हजारों करोड़ रुपये बिल्डर ले चुके हैं जबकि समय पर फ्लैट का पजेशन नहीं दिया है।
वर्षों से किस्त भरने पर भी नहीं मिला फ्लैट
शुरुआती आइबीसी लागू होने के बाद यह मामला तब चर्चा में आया जब हजारों फ्लैट खरीदारों ने आइबीसी के तहत वित्तीय लेनदार मानने की मांग उठाई। हजारों फ्लैट खरीदारों के जीवन की गाढ़ी कमाई बिल्डरों के पास फंस गई। ज्यादातर फ्लैट खरीदार बैंक से कर्ज लेकर ही बिल्डरों को भुगतान करते हैं। समय पर फ्लैट न मिलने के बावजूद उन्हें किस्त चुकानी पड़ रही है। इन फ्लैट खरीदारों को राहत देने के लिए ही सरकार ने आइबीसी में संशोधन करके उन्हें वित्तीय लेनदार बनाने का प्रावधान जोड़ा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अब वैध मान लिया है।