शुल्क से चीनी निर्यात का आकर्षण खत्म: इस्मा
चीनी मिलों के प्रमुख संगठन, भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने शुक्रवार को कहा कि चीनी पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाने से इसका चीनी का निर्यात वित्तीय दृष्टि से अव्यावहारिक हो गया है लेकिन इससे घरेलू मांग पूरा करने के लिए देश में इसका स्टॉक समुचित स्तर पर बनाये रखने में मदद मिलेगी। सरकार ने चीनी के दामों में तेजी के बीच इस पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाने का निर्णय गुरुवार को जारी किया। पिछले कुछ महीने में वैश्विक कीमतों में भारी तेजी से इसक निर्यात आकर्षक हो गया था। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने एक बयान में कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार अगले चीनी सत्र 2016-17 (अक्तूबर से सितंबर) में चीनी उत्पादन में कमी होने की संभावना के मद्देनजर घरेलू स्तर पर चीनी का स्टॉक बचाए रखना चाहती है।
उन्होंने कहा, वैश्विक कीमतों में हालिया तेजी से भारत से चीनी का निर्यात अब जा कर लाभप्रद होने जा रहा था लेकिन 20 प्रतिशत के निर्यात शुल्क के कारण, जो करीब 100 डॉलर प्रति टन बैठता है, निर्यात अव्यावहारिक हो जायेगा। वर्मा ने कहा कि निर्यात शुल्क लगाये जाने के बाद निर्यात से प्राप्त होने वाली आय, घरेलू बाजार में बिक्री से प्राप्त होने वाली आय से कम रह जायेगी।
वर्मा ने कहा कि पिछले साल के 70 लाख टन के बचे स्टॉक के कारण विपणन वर्ष 2016-17 में चीनी की पर्याप्त उपलब्धता होगी। उन्होंने कहा कि चीनी पर 20 प्रतिशत के निर्यात शुल्क के कारण चीनी सत्र 2017-18 के लिए पर्याप्त स्टॉक उपलब्धता सुनिश्चित होगी। दुनिया में ब्राजील के बाद भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। चीनी विपणन वर्ष 2015-16 में अभी तक करीब 16 लाख टन चीनी का निर्यात होने का अनुमान है। भारत का चीनी उत्पादन विपणन वर्ष 2015-16 में घटकर 2.5 करोड़ टन रहने का अनुमान है। पिछले वर्ष उत्पादन 2.83 करोड़ टन का हुआ था। चीनी की घरेलू मांग 2.6 करोड़ टन है। विपणन वर्ष 2016-17 के लिए सरकार ने उत्पादन में गिरावट आने और उत्पादन 2.3 से 2.4 करोड़ टन रहने की भविष्यवाणी की है। हालांकि सरकार ने कहा है कि पिछले साल के बचे हुए स्टॉक को देखते हुए बाजार में चीनी आपूर्ति तीन से 3.1 करोड़ टन की रहेगी और इसकी कोई कमी नहीं होगी।