हिन्दुस्तान जिंक में विनिवेश पर ‘सुप्रीम’ रोक
शीर्ष अदालत ने इस कंपनी के 29 फीसदी कीमती शेयर बेचने के बारे में सरकार से कुछ सवाल किए हैं। यह कंपनी सामरिक महत्व के खनिज पदार्थों का कारोबार करती है। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हिन्दुस्तान जिंक लि. में विनिवेश के मामले में पक्षकार आज की स्थिति के अनुसार यथास्थिति बनाए रखेंगे।’
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह स्टर्लाइट वेदांता, जिसने इस कंपनी का अधिग्रहण कर दिया है, को निवेश करने से नहीं रोक रही है बल्कि सरकार को कंपनी में अपने शेष शेयर बेचने से रोक रही है। पीठ ने याचिका विचारार्थ स्वीकार करते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई होने तक इसमें और अधिक विनिवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी।
वेदांता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुन्दरम ने कहा कि निजी कंपनी ने घाटे में चल रही हिन्दुस्तान जिंक लि. के बड़े हिस्से की दावेदारी 14 साल पहले अपने हाथ में ले ली थी और अब यह लाभ अर्जित करने वाली इकाई हो गई है।
हालांकि न्यायालय ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से जानना चाहा, बेशकीमती संपत्ति वेदांता को सौंपने की क्या आवश्यकता है। ऐसा मत कीजिए और विनिवेश मत कीजिए। हम इस मामले की सुनवाई करेंगे। हम उन्हें बेचने की अनुमति नहीं देंगे। पीठ यह भी जानना चाहती थी कि सरकार हिन्दुस्तान जिंक लिं में अपनी शीष दावेदारी क्यों बेचना चाहती है।
केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारियों के राष्ट्रीय महासंघ की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि जब पहली बार इस कंपनी में विनिवेश किया गया था तो कानून का उल्लंघन हुआ था जो उस समय स्पष्ट हो गया था जब शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने एक अन्य सार्वजनिक उपक्रम में विनिवेश के मामले की सुनवाई की थी। इस दलील का संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, पहले ही आप गलत कर चुके हैं और हम दुबारा उल्लंघन नहीं करने देंगे।
पीठ ने पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि संबंधित कानूनी प्रावधानों में संशोधन के बगैर और विनिवेश नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने अटार्नी जनरल से जानना चाहा, विनिवेश की क्या बाध्यता है। अटार्नी जनरल ने कहा कि यह नीतिगत निर्णय है और सरकार कंपनी के शेष शेयर रखकर क्या करेगी। रोहतगी ने कहा कि यह विचित्र स्थिति है।
इस पर पीठ ने कहा कि सरकार के पास संसद में जाने और संबंधित कानून में संशोधन कराने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं है अन्यथा उसे कंपनी में अपनी शेष दावेदारी रखनी होगी। याचिकाकर्ता ने प्रस्तावित विनिवेश को चुनौती देते हुए कहा है कि यह निर्णिय तर्कहीन, गैरकानूनी और अनुचित है।
इस मामले में नौ अक्तूबर, 2014 को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत को सूचित किया गया था कि सीबीआई ने हिन्दुस्तान जिंक लि की दावेदारी 2002-03 में वेदांता की स्टर्लाइट अपाच्र्युनिटी एंड वेंचर्स लि को बेचे जाने के मामले में प्रारंभिक जांच दर्ज की है।