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21 March 2015

क्या आपको इस बैंक पर यकीन होगा?

पीटीआइ

किदवई ने सन 2006 में अप्रत्याशित रूप से एचएसबीसी इंडिया का शीर्ष पद संभाला था। कुछ ही वर्षों बाद एचएसबीसी पर संकट के बादल छाने लगे। इसे अमेरिका, फ्रांस, अर्जेंटीनी, मेक्सिकाे और पहली बार भारत में वैश्विक जांच, आरोपों और अभियोगों का सामना करना पड़ा। यहां एक बड़ा सवाल पूछा जा रहा हैः क्या एचएसबीसी ने अपनी निजी बैंकिंग शाखा एचएसबीसी सुइस में ग्राहकों का खाता खुलवाने में मदद की और क्या उन ग्राहकों ने कर की चोरी की थी? एचएसबीसी के एक प्रवक्ता ने इस रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि हम लगातार सरकार के साथ सहयोग करते रहे हैं और आगे भी सहयोग जारी रखेंगे।

अभी विदेश में कार्यरत एचएसबीसी के पूर्व निवेश बैंकर मायूस होकर बताते हैं, ‘एचएसबीसी को भारत और विदेश में गहरा झटका लगा है। इसका शेयर भाव गिर गया है, इसका 2014 का परिणाम (मुनाफा 17 प्रतिशत गिर गया जबकि बैंक को कानूनी खर्च के लिए 2.4 अरब डॉलर अलग से रखने पड़े) भी खराब रहा।’ हालांकि वह बताते हैं कि कार्यशैली के मामले में एचएसबीसी बैंक कई अन्य बैंकों से अलग नहीं हो सकता। वह बताते हैं, ‘भारत में अब इस पर ज्यादा निगरानी रखी जाने लगी है क्योंकि एचएसबीसी के किसी भी मामले को काले धन के साथ ही जोड़कर देखा जाने लगा है और मीडिया भी अतिसक्रिय हो गई है। यह दुर्भाग्य भी है।’

काला धन भारत में वाकई एक ज्वलंत मुद्ा बन गया है लेकिन ब्रिटिश शासनकाल के बैंकर के तौर पर सन 1850 से भारत में प्रतिष्ठित ब्रांड रहा एचएसबीसी किसी तरह सामाजिक कलंक से बच निकला। इतना ही नहीं, पिछले वर्ष इसके साथ तकरीबन 1,000 भारतीय जुड़े। इसके बावजूद ब्रांड की साख निश्चित रूप से थोड़ी कम गिरेगी। जानकार इसकी एक वजह काले धन पर भारत का रुख बताते हैं। स्विस बैंक में खाता रखने वाले लोगों काे आयकर अधिकारी ढूंढ निकालते हैं और फिर उनसे कर वसूलते हैं। यहीं कहानी खत्म हो जाती है। इसमें एचएसबीसी इंडिया की संभावित व्यवस्‍थागत खामियों की जांच के कोई लक्षण नहीं दिखते। गेटवे हाउस में वित्त विशेषज्ञ राजऋषि सिंघल बताते हैं, ‘आप यह नहीं बता सकते कि एचएसबीसी के जितने खातों का पता चला है, उनमें से कितने वैध हैं लेकिन यह सभी जानते हैं कि अवैध धन अक्सर वित्त के पहियों के लिए चिकनाई का काम करता है। भारत सरकार को मामले की तह तक जाना होगा, सिर्फ एचएसबीसी मामले में ही नहीं, बल्कि सामान्य बैंकिंग प्रणाली की जड़ तक।’

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) एचएसबीसी के 1,823 भारतीय और अप्रवासी भारतीय खाताधारकों की जांच कर रहा है कि कहीं उन्होंने एचएसबीसी सुइस खातों के जरिये भारत में कर की चोरी तो नहीं की है। हालांकि इन ज्ञात खाताधारकों की जांच करने के लिए एसआईटी का दायरा सीमित है। अब तक 3,150 करोड़ रुपये ही बकाया कर के रूप में सामने आया है, हालांकि जांच चल रही है लेकिन कर चोरी मामले की यह बहुत मामूली राशि है।

संभवतः यह भारत में एचएसबीसी की ब्रांड ताकत का प्रमाण है- और कॉर्पोरेट तथा सरकारी गलियारे में  किदवई की अपील का ही असर है कि इस मामले को ज्यादा तूल नहीं दिया गया। किसी समय किदवई की नियुक्ति पर सवाल उठा चुके रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी अब तक जांच नहीं शुरू की है। पिछले पखवाड़े ही संकेत मिला कि यह स्थिति अब शायद बदल चुकी है। आयकर विभाग ने एचएसबीसी के मुंबई स्थित कार्यालयों में पूर्ण छापेमारी से एक स्तर नीचे एक सर्वे कराया। संदेह लाजिमी हैः एचएसबीसी इंडिया की मदद के बगैर क्या एचएसबीसी जिनेवा स्विस बैंक खाते खुलवाने वाले अमीर भारतीयों की पहचान कर सकता है?

एचएसबीसी इंडिया के एक अधिकारी का कहना है कि आयकर अधिकारियों ने एचएसबीसी के भारतीय खाताधारकों की जानकारी मांगी थी, न कि इस बैंक के बारे में। यह निश्चित नहीं हो पाया है कि इस सर्वे के लिए पहले नोटिस जारी हुआ था या नहीं, जैसाकि होता आया है, या फिर एचएसबीसी इंडिया ने एचएसबीसी स्विस शाखा को संभावित या मौजूदा ग्राहकों की सिफारिश पहले ही कर दी थी (जैसाकि न्यू जर्सी के कारोबारी वैभव ढाके के मामले में हुआ)। भारतीय बैंकिंग कानून भारत स्थित बैंकों को विदेशी बैंकों में उपलब्‍ध सुविधाओं की पेशकश करने की इजाजत नहीं देता।

बैकिंग उद्योग के सूत्रों का कहना है कि मौजूदा जांच का तात्कालिक खमियाजा उन्हीं लोगों को ही भुगतना होगा जिनके नाम 1,823 लोगों की सूची में हैं। इन सूत्रों में से कई एचएसबीसी इंडिया के पूर्व अधिका‌री भी हैं। इनमें से कुछ अधिकारियों का यह भी मानना है कि लोग समझते हैं कि स्विस खातों का मसला बड़ा है लेकिन एचएसबीसी की समस्याएं उससे कहीं ज्यादा बड़ी है।

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TAGS: एचएसबीसी बैंक, स्विस बैंक, कालाधन, नैना लाल किदवई, एचएसबीसी जिनेवा
OUTLOOK 21 March, 2015
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