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08 June 2019

RBI ने एनपीए नियम किया आसान, बैंकों को मिलेगा फायदा

File Photo

 

भारतीय रिजर्व बैंक ने एनपीए की पहचान के लिए 12 फरवरी 2018 के सर्कुलर की जगह संशोधित दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी के सर्कुलर को रिजर्व बैंक के अधिकार के बाहर बताते हुए उसे खारिज कर दिया था। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि एनपीए समाधान के नए नियम सभी पुराने नियमों की जगह लेंगे। पुराने फ्रेमवर्क के तहत लोन के रीपेमेंट में एक दिन की भी देरी होने पर बैंकों को रिजॉल्यूशन प्रॉसेस या रिस्ट्रक्चिरिंग ऑफ लोन्स हर हाल में शुरू करने को कहा गया था। अब नए सर्कुलर के तहत इस प्रकार के लोन के रीपेमेंट में देरी होने पर 30 दिनों के भीतर अकाउंट की समीक्षा करनी होगी और लोन डिफॉल्ट होने से पहले रिजॉल्यूशन प्रक्रिया शुरू करनी होगी। आरबीआई का नया सर्कुलर तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।

स्ट्रेस खाते का एसएमए के तहत होगा वर्गीकरण

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आरबीआई के नए सर्कुलर के तहत बैड लोन्स की जल्द पहचान कर उसकी रिपोर्टिंग करनी होगी और एक समय के भीतर उसका रिजॉल्यूशन करना होगा। आरबीआई ने कहा है कि लेंडर्स को लोन खाते में किसी भी प्रकार का स्ट्रेस की आशंका लगे तो उसे तुरंत स्पेशल मेंशन अकाउंटस (SMA) के तहत वर्गीकृत करे।

नई व्यवस्था तत्काल प्रभाव से लागू

नए सर्कुलर को जारी करते हुए रिजर्व बैंक ने कहा है कि 2000 करोड़ रुपए या उससे ऊपर के ऋण खातों के संबंध में जारी नई व्यवस्था ऋण समाधान की पुरानी सभी व्यवस्थाओं- ऋण खातों के समाधान के लिए संकटग्रस्त सम्पत्तियों को पुनर्जीवित करने, कॉर्पोरेट कर्ज पुनर्गठन योजना, मौजूदा दीर्घकालिक परियोजना ऋणों का लचीला ढांचा, रणनीतिक कर्ज पुनर्गठन योजना (एसडीआर) और फंसी हुई संपत्ति का सतत पुनर्गठन (एस4ए)- का स्थान लेगी। नई व्यवस्था तत्काल प्रभाव लागू हो गई है।

12 फरवरी को जारी हुआ था पुराना सर्कुलर

आरबीआई ने इससे पहले बैड लोन्स की समस्या को सुलझाने के लिए 12 फरवरी को एक सर्कुलर जारी किया था। इसके तहत लोन के रीपेमेंट में एक दिन की भी देरी होने पर बैंकों को 180 दिनों के भीतर समाधान खोजने को कहा गया था। इसके अलावा बैंकों को बैंकरप्सी कोर्ट्स जाने का भी विकल्प दिया गया था। इसे सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल को रद्द कर दिया था।

बैंकों को होगा यह फायदा

नई व्यवस्था में ऋणदाता बैंकों और वित्तीय संस्थानों को एनपीए या वसूल नहीं हो रहे ऋणों के संबंध में नुकसान के लिए प्रोविजनिंग करने में थोड़ी मोहलत दी गई है। इससे कम पूंजी वाले बैंकों को सहूलियत होगी। नई व्यवस्था के तहत बैंकों को पहले 180 दिन के अंदर ऋण का समाधान न होने पर 20 प्रतिशत का प्रोविजनिंग करना होगा और 365 दिन के अंदर भी समाधान न होने पर 15 प्रतिशत का अतिरिक्त प्रोविजनिंग करना होगा। इस तरह उन्हें फंसे ऋणों के कुल 35 प्रतिशत पूंजी की व्यवस्था करनी होगी।

आरबीआई ने कहा कि इस नई व्यवस्था के लागू होने के बाद भी वह खुद ब खुद बैंकों को किसी ऋण नहीं चुकाने वाली कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता है। आरबीआई का नया परिपत्र फंसे कर्ज की जल्द पहचान, उनकी सूचना देने और समयबद्ध समाधान की रूपरेखा प्रदान करता है।

बैंकों को क्या करना होगा

केंद्रीय बैंक ने कहा है कि कर्ज देने वाले बैंकों/वित्तीय संस्थानों को ऋण वसूली में दिक्कत शुरू होते ही उसे विशेष उल्लेख वाले खाते (एसएमए) के रूप में वर्गीकृत करना होगा। यदि कोई बैंक, वित्तीय संस्थान, सूक्ष्म वित्त बैंक या एनबीएफसी किसी कर्जदार के कर्ज भुगतान में चूक करने की सूचना देता है तो सभी कर्जदाताओं को 30 दिन के भीतर उसकी समीक्षा करनी होगी। इस अवधि में कर्जदाता उस खाते के समाधान की रणनीति पर फैसला कर सकते हैं। इसमें समाधान योजना (आरपी) की प्रकृति और योजना के क्रियान्वयन के लिए दृष्टिकोण शामिल होंगे।

रिजर्व बैंक ने नए परिपत्र में कहा कि समीक्षा के दौरान, जिन मामलों में समाधान योजना लागू की जानी है, उनमें सभी कर्जदाताओं को आपस में एक समझौता (आईसीए) करना होगा। नई व्यवस्था में यदि ऋण के मूल्य के हिसाब से 75 प्रतिशत और संख्या के हिसाब से 60 प्रतिशत वित्तीय ऋणदाता किसी समाधान योजना पर सहमत होंगे तो वह योजना सब पर लागू होगी। केंद्रीय बैंक ने कहा कि बैंक/ वित्तीय कर्जदाता वसूली या दिवाला कानून के तहत ऋण समाधान के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू करने को स्वतंत्र होंगे।

आरबीआई ने नई व्यवस्था में कर्जदाताओं के संयुक्त मंच (जेएलएफ) की व्यवस्था समाप्त कर दी है। यह संकटग्रस्त खातों के समाधान के लिए अनिवार्य संस्थागत तंत्र के रूप में कार्य करता है।

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने दो अप्रैल को फंसे कर्ज के समाधान के संबंध में रिजर्व बैंक के 12 फरवरी 2018 के सर्कुलर को रद्द कर दिया था। इसके तहत एक दिन की कर्ज अदायगी में एक दिन की भी चूक होने पर कंपनी को एनपीए घोषित किया जा सकता है। बैंकों के लिए यह अनिवार्य किया गया था कि अगर किसी फंसे कर्ज का समाधान 180 दिन के भीतर नहीं होता है, तो वे उसे दिवाला संहिता के तहत ऋण समाधान की कार्यवाही के लिए भेजे।

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OUTLOOK 08 June, 2019
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