मुंबई स्थित रियल एस्टेट के एक्सपर्ट मुकेश मिश्रा बताते हैं कि नए विधेयक में ग्राहकों के फायदे के लिए ही सारी कवायद है लेकिन बिल्डरों पर जिस तरह से लगाम कसी जा रही है, उससे आखिरकार डाका ग्राहकों की जेब पर ही पड़ेगा। क्राफ्ट रियल्टी के सीईओ मुकेश मिश्रा कहते हैं, ‘किसी परियोजना की 70 प्रतिशत राशि जमा करने का मतलब है कि बिल्डरों को अन्य स्रोतों से रकम जुटाते हुए अपना पूंजी प्रवाह बनाना होगा। इसमें निजी कंपनियां, विदेशी संस्थागत निवेशक और अन्य निवेशकों की भी पैठ बढ़ेगी। बिल्डरों को मजबूरन 40 से 50 रुपये प्रति वर्गफुट दाम बढ़ाना पड़ेगा।’
नए विधेयक के दायरे में 500 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल तथा आठ से अधिक अपार्टमेंट वाली सभी परियोजनाओं को शामिल किया गया है। स्थानीय प्राधिकरण से अनुमति मिले बगैर और नियामक से पंजीकरण कराए बगैर कोई भी व्यावसायिक या आवासीय परियोजना शुरू नहीं की जा सकती, यानी प्री-लांच के नाम पर ऐसी परियोजनाओं के लिए ग्राहकों से पैसे नहीं लिए जा सकते हैं। इस बारे में मुकेश मिश्रा कहते हैं कि इस विधेयक का फायदा संगठित कंपनियों को ही होगा। पारदर्शिता के अभाव में छोटे बिल्डर अपने आप इस कारोबार से बाहर निकलने लगेंगे।
बिल्डर अब खरीदारों को रिझाने के लिए आकर्षक डिजाइन वाली परियोजनाओं की काल्पनिक तस्वीर पहले से नहीं दिखा सकते जिनके जरिये हरियाली सहित सभी आकर्षक सुविधाओं का दावा किया जा रहा हो लेकिन बाद में परियोजना की सच्चाई कुछ और ही निकलती हो। विधेयक में साफ प्रावधान है कि बिल्डर यदि अपनी सूचनाओं, विज्ञापन या प्रोस्पेक्टस या मॉडल अपार्टमेंट, प्लॉट या बिल्डिंग में गलत, बढ़ा-चढ़ाकर दावे पेश करता है और इनमें से उसका कोई दावा गलत साबित होता है कि खरीदारों को उनके निवेश पर ब्याज के साथ उसे भुगतान करना होगा। क्राफ्ट रियल्टी के सीईओ मुकश मिश्रा के मुताबिक, यह सही है कि विश्वसनीय बिल्डरों को पहले प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापन देने पड़ते थे लेकिन अब विज्ञापन के मद में उनका धन बचेगा और उनके प्रति निष्ठावान ग्राहकों की संख्या कम नहीं होगी। मिश्रा ने कहा, ‘नई परियोजना शुरू करने से पहले ऐसे बिल्डर बहुत से बहुत पुरानी परियोजनाओं का अनुभव और हवाला दे सकते हैं।’
रियल एस्टेट प्रमोटर और एजेंट में से कोई भी अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेश का उल्लंघन करता है तो प्रमोटर को तीन साल और एजेंट को एक साल की सजा का प्रावधान है। प्राधिकरण भ्रामक विज्ञापनों की स्थिति में ग्राहकों को मुआवजा देने का भी आदेश जारी कर सकता है। इसके अलावा डेवलपरों को पिछले पांच वर्षों के अंदर की निर्माणाधीन या पूर्ण परियोजनाओं का संक्षिप्त विवरण देना होगा और परियोजनाओं की वर्तमान स्थिति बतानी होगी। इस विवरण की जानकारी प्राधिकरण की वेबसाइट पर भी डालनी होगी ताकि ग्राहक सभी पहलुओं से वाकिफ रहे। मुकेश मिश्रा के मुताबिक, नए विधेयक में अब सिर्फ वही एजेंट या प्रमोटर कारोबार में बने रह सकते हैं जो प्राधिकरण से प्रमाणित होंगे या जिनके पास प्राधिकरण से लाइसेंस होगा।