पद न छोड़ने पर क्यों अड़े हैं माल्या
उनका कहना है कि सिर्फ शेयरधारक ही किसी निदेशक को बेदखल कर सकते हैं। माल्या पर वित्तीय अनियमितताओं में संलिप्त होने का आरोप है और कंपनी इस मामले की आंतरिक जांच करने में जुटी है।
माल्या ने ठेठ भारतीय शैली में कंपनी का पद छोड़ने से इनकार करते हुए कहा, ‘मैं बताना चाहता हूं कि मेरा इरादा सामान्य तरीके से यूएसएल का चेयरमैन पद संभालते रहना है। इसमें हर महीने समीक्षा बैठक और बोर्ड की बैठकों की अध्यक्षता करना भी शामिल है।’
दरअसल, माल्या में पद न छोड़ने का आत्मविश्वास उनके द्वारा यूनाइटेड स्पिरिट्स में 0.01 प्रतिशत की व्यक्तिगत हिस्सेदारी रखने से ही पैदा हुआ है। माल्या द्वारा नियंत्रित यूनाइटेड ब्रेवरीज होल्डिंग्स लिमिटेड की इसमें 2.90 प्रतिशत हिस्सेदारी है। माल्या द्वारा नियंत्रित अन्य कंपनियों की इसमें लगभग 1.18 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इस प्रकार यूनाइटेड ब्रेवरीज में माल्या की कुल हिस्सेदारी चार प्रतिशत से अधिक है। माल्या ने जिस ब्रिटिश कंपनी डियाजियो को यूनाइटेड स्पिरिट्स बेची है उसकी 54.8 प्रतिशत हिस्सेदारी है। माल्या का आत्मविश्वास इस बात से भी मजबूत हुआ है कि यूनाइटेड स्पिरिट्स बेचते वक्त माल्या और डियाजियो के बीच हुए समझौते के मुताबिक, डियाजियो को माल्या के चेयरमैन बने रहने का समर्थन करना होगा। यह समर्थन माल्या की यूनाइटेड स्पिरिट्स में हिस्सेदारी रहने तक करना होगा।
विजय माल्या ने कंपनी के बोर्ड के आरोपों को भी खारिज कर दिया है। शनिवार को ही डियाजियो ने विजय माल्या को यूनाइटेड स्पिरिट्स के नॉन-एक्जिक्यूटिव चेयरमैन के पद से इस्तीफा देने के लिए कहा था। पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के बाद यूएसएल के बोर्ड ने यह फैसला लिया। जांच में कई कानूनी गड़बड़ियां पाई गईं हैं और सीईओ आनंद कृपालु की टीम ने अंदरूनी जांच की है। डियाजियो के मुताबिक यूएसएल का पैस किंगफिशर एयरलाइंस और यूबी ग्रुप की दूसरी कंपनियों को दिया गया। यूएसएल ने यूबी ग्रुप कंपनियों को 1337 करोड़ रु पये के कर्ज दिए।
विजय माल्या यूनाइटेड स्पिरिट्स में नियंत्रक हिस्सेदारी डियाजियो को बेच चुके हैं। डियाजियो ने यूनाइटेड स्पिरिट्स से यूबी ग्रुप को मिले 1337 करोड़ रुपये के कर्ज के संबंध में जांच बैठाई थी जिसकी जांच फिलहाल सेबी और कई जांच एजेंसी कर रही हैं। माना जा रहा है कि विजय माल्या के हटने से इनकार करने पर बोर्ड हटाने की सिफारिश करेगी। साथ ही गड़बड़ी में शामिल कर्मचारियों पर भी कार्रवाई होगी।
इस मामले पर सेबी के पूर्व ईडी जे एन गुप्ता का कहना है कि यूएसएल के मसले पर सेबी की ओर से कार्रवाई का सही समय है। पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए। गर्वनेंस के हिसाब से विजय माल्या को इस्तीफा देना चाहिए और फिर जांच के बाद वापस आना चाहिए।
जे एन गुप्ता का मानना है कि विजय माल्या और यूएसएल बोर्ड का विवाद सेबी और आर्बिट्रेशन में जा सकता है। उनके मुताबिक सिर्फ माल्या ही नहीं बल्कि दूसरे डायक्टरों की भी जांच होनी चाहिए।
जानकारों का कहना है कि सेबी जनहित का ख्याल रखते हुए चाहे तो विजय माल्या को यूएसएल के बोर्ड से हटना पड़ेगा। देखना होगा कि कंपनी का शेयरहोल्डर करार आर्टिकल्स में शामिल है या नहीं। अधिकांश शेयरधारक डायरेक्टर को एक तय प्रक्रिया के तहत निकाल सकते हैं। ये मामला अब आर्बिट्रेशन, कोर्ट या फिर सेबी के पास जाएगा।