कोविड-19 के बीच में रुपए की मार, विदेश में पढ़ाई और कंपनियों के लिए कर्ज हुआ महंगा
शेयर बाजार और डेट मार्केट से विदेशी निवेशकों के पैसे निकालने की वजह से हाल के दिनों में रुपया काफी कमजोर हुआ है। शुक्रवार को रुपया डॉलर की तुलना में भले ही 48 पैसे मजबूत होकर 76.39 पर बंद हुआ लेकिन एक दिन पहले गुरुवार को यह 76.87 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर था। गिरावट की एक और वजह ग्लोबल मार्केट में डॉलर का मजबूत होना है। कोविड-19 महामारी के चलते सभी अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति कमजोर हुई है, इसलिए डॉलर की निवेश मांग बढ़ गई है। रुपया कमजोर होने से कच्चा तेल और सोना समेत सभी वस्तुओं के आयात का खर्च बढ़ता है तो वहीं निर्यातकों को इसका फायदा भी मिलता है। लेकिन इस समय आयात-निर्यात की गतिविधियां लगभग बंद पड़ी हैं इसलिए निर्यातकों को तत्काल कमजोर रुपए का कोई फायदा नहीं मिलेगा। लेकिन जो बच्चे विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं उनके माता-पिता को फीस के रूप में 5 से 10 फ़ीसदी ज्यादा रकम भेजनी पड़ेगी।
विदेशी निवेशकों ने डेढ़ माह में 1.26 करोड़ रुपए निकाले
इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस का आकलन है कि जनवरी के मध्य से अभी तक विकासशील देशों से करीब 100 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बाहर गई है। 2008 के वित्तीय संकट के दौरान समान अवधि से तुलना करें तो यह राशि 4 गुना ज्यादा है। सीडीएसएल के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने मार्च में 1,18,203 करोड़ और अप्रैल में 16 तारीख तक 8,348 करोड़ रुपए निकाले। विदेशी निवेशकों ने इक्विटी मार्केट से जहां 49,248 करोड़ निकाले वहीं डेट मार्केट से 78,611 करोड़ की निकासी की है।
फरवरी के मध्य से रुपया अब तक 7 फ़ीसदी कमजोर
एक और बात गौर करने लायक है कि पिछले वर्षों के दौरान करेंसी में आई गिरावट की तुलना करें रुपए का प्रदर्शन अभी तक बेहतर रहा है। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद रुपया 15 फ़ीसदी कमजोर हुआ था। इस बार मध्य फरवरी से अब तक इसमें 7 फ़ीसदी से कुछ ज्यादा गिरावट आई है। इसका एक कारण यह है कि भारत के पास विदेशी मुद्रा का भंडार काफी है और रिजर्व बैंक समय-समय पर रुपए को संभालने के लिए डॉलर की बिक्री कर रहा है। 31 मार्च को रिजर्व बैंक के पास 475 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था।
कच्चे तेल के दाम दो दशक के निचले स्तर पर, इसलिए कमजोर रुपए का असर नहीं
भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फ़ीसदी कच्चा तेल आयात करता है लेकिन इस समय डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर होने का ज्यादा असर नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि कोविड-19 महामारी के चलते पूरी दुनिया में कच्चे तेल की मांग घट गई है और इसका असर इसकी कीमतों पर भी पड़ा है। विश्व बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत अभी 28 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बनी हुई है। तेल उत्पादक देश ने इसकी कीमत बढ़ाने के लिए उत्पादन रोजाना एक करोड़ बैरल घटाने का फैसला किया है लेकिन वैश्विक डिमांड में गिरावट इतनी अधिक है कि अभी तक कीमतों पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला है। वैसे भी उत्पादन में कटौती मई से लागू होगी। दुनिया के तेल भंडार करीब 70 फ़ीसदी भरे हुए हैं और डिमांड कम होने के चलते भंडार रोजाना बढ़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का अनुमान है कि कच्चे तेल के दाम में निकट भविष्य में वृद्धि नहीं होगी। अप्रैल में तेल की मांग 3 करोड़ बैरल प्रतिदिन कम रहने का अनुमान है। पूरे 2020 में तेल की मांग पिछले साल की तुलना में एक करोड़ बैरल रोजाना कम रहेगी। हालांकि सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के दाम घटने का भारतीय उपभोक्ताओं को अभी तक कोई खास फायदा नहीं मिला है।
कच्चा तेल सस्ता होने से रेमिटेंस में गिरावट की आशंका
कच्चे तेल के दाम में गिरावट का भले ही भारत को फायदा मिल रहा हो लेकिन इससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो पैसे भारत भेजते हैं (रेमिटेंस) उसके प्रभावित होने की काफी आशंका है। भारत दुनिया में सबसे अधिक रेमिटेंस प्राप्त करने वाला देश है। 2018 में विदेशों में रहने वाले 1.8 करोड़ भारतीयों ने 78.6 अरब डॉलर की रकम भारत भेजी थी। बड़ी संख्या में भारतीय खाड़ी देशों में रहते हैं। कच्चे तेल के दाम में गिरावट से उनकी आमदनी प्रभावित हो सकती है और वे कम राशि भारत भेजेंगे।
सोने की मांग सिर्फ निवेश में फिर भी दाम रिकॉर्ड ऊंचाई के करीब
यही स्थिति सोने की भी है। भारत चीन के बाद सबसे अधिक सोना आयात करता है लेकिन इस समय जरूरी वस्तुओं को छोड़कर बाकी आयात निर्यात लगभग बंद पड़ा हुआ है। इस समय घरेलू बाजार भी बंद हैं इसलिए यहां सोने की मांग नहीं है। सिर्फ फ्यूचर मार्केट में इसकी ट्रेडिंग चल रही है। सोने की मौजूदा डिमांड सिर्फ निवेश के लिए है और उसी से इसके दाम भी काफी बढ़े हुए हैं। शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 1720 डॉलर प्रति औंस पर था। हालांकि घरेलू बाजार में दाम में थोड़ी कमी आई और यह 3.1 फ़ीसदी घटकर 45,765 रुपए प्रति 10 ग्राम पर था।
विदेशी कर्ज लेने वाली कंपनियों पर बोझ बढ़ेगा
एक और सेक्टर जो रुपए की कमजोरी से प्रभावित हो रहा है वह है कॉरपोरेट सेक्टर। हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कर्ज पर ब्याज की दरें काफी कम रही हैं। इसलिए भारतीय कंपनियों ने विदेशों से काफी कर्ज लिया है जिसका ब्याज उन्हें डॉलर में ही चुकाना पड़ता है। अब डॉलर महंगा होने के कारण उनके लिए कर्ज भी महंगा हो गया है। रिजर्व बैंक द्वारा बाहरी वाणिज्यिक ऋण (ईसीबी) की सीमा बढ़ाए जाने के बाद हाल के वर्षों में इसमें काफी वृद्धि हुई है। 2016 में ईसीबी से 17.1 अरब डॉलर जुटाए गए थे जो पिछले साल बढ़कर 50 अरब डॉलर से अधिक हो गए।