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02 October 2022

मणि रत्नम की फिल्म पीएस 1 देखने जा रहे हैं तो ये 5 बातें जरूर पढ़ लें

मणि रत्नम की फिल्म पीएस 1 रिलीज हो चुकी है और बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन कर रही है। फिल्म ने दो दिन में 150 करोड़ के जादुई आंकड़े को पार कर लिया है। फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो फिल्म देखने के बाद सामने आ रही हैं। यदि आप फिल्म देखने जा रहे हैं तो इन बातों को आपको जरुर पढ़ लेना चाहिए। 

 

1. पीएस 1 निसंदेह एक अच्छी फिल्म है। फिल्म की कहानी, फिल्म का स्क्रीनप्ले, फिल्म के संवाद, फिल्म का संगीत, फिल्म के कलाकारों का अभिनय, सभी कुछ अच्छा है। यह "अच्छा" बेहतरीन भी हो सकता था मगर बेहतरीन नहीं हो सका। यूं तो अच्छा होना भी सुन्दर है।मगर राजवंश की बात करने वाली, युद्ध के दृश्य दिखाने वाली फिल्म का बेहतरीन होना आवश्यक लगता है। क्योंकि मास ऑडियंस के लिए बेहतरीन होना अनिवार्य सा है।बावजूद इसके यह फिल्म देखी जानी चाहिए। क्योंकि यह एक अच्छी कहानी कहती है और कलाकार संतुलित अभिनय करते दिखते हैं। 

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2. लोग पीएस 1 की रिलीज के पहले ही इसकी तुलना बाहुबली से कर रहे थे। मगर फिल्म देखने के बाद कहा जा सकता है कि यह पूरी तरह से मणि रत्नम की फिल्म है। मणि रत्नम, राजमौली नहीं हैं और इस बात का सम्मान होना चाहिए। मणि रत्नम इश्क दिखाते हैं तो वह केवल अपने रंग को प्रदर्शित करते हैं। मणि रत्नम के इश्क में आदित्य चोपड़ा, इम्तियाज अली, राज कपूर, गुरू दत्त, देव आनंद, महेश भट्ट की लेश मात्र भी परछाई नहीं नजर आती। यही मणि रत्नम की विशेषता है। बॉम्बे, रोजा, दिल से, गुरू मणि रत्नम का हमेशा से टेस्ट अलग रहता। वह प्यासा छोड़ देते हैं। वह कला से आपका पेट नहीं भरते। एक कसक, एक अतृप्त एहसास रह जाता है। इसी प्रकार पीएस 1 देखते हुए बाहुबली और आरआरआर से इसकी तुलना करना ठीक नहीं। मणि रत्नम का रंग और ढंग राजमौली से बिलकुल जुदा है। मणि रत्नम लाउड निर्देशक नहीं हैं। 

 

3. यदि फिल्म की शुरूआत में किरदारों का परिचय दे दिया जाता तो फिल्म और दिलचस्प और रोचक बन जाती। फिल्म एक पहेली की तरह आगे बढ़ती है। हिन्दी भाषी दर्शकों के लिहाज़ से किरदारों के नाम बहुत क्लिष्ट हैं। हिन्दी भाषी लोग अंत तक किरदारों के नाम, चेहरे, उनके आपसी संबंध ही समझते बूझते रह जाते हैं। फिल्म देखते हुए बहुत अधिक दिमाग लगाना पड़ता है।इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि दर्शक फिल्म में इन्वॉल्व रहता है। मगर यह दर्शक के दिमाग को थका भी देता है। फिल्म को तकनीकी और दृश्यात्मक रूप से मजबूत बनाने के कारण, भावनात्मक पक्ष दबा रह गया है। एक किरदार से परिचय होता नहीं है कि दूसरा, तीसरा किरदार सामने आ जाता है। अच्छी फिल्म की विशेषता होती है कि यह दर्शकों को कनेक्ट करे। यहां फिल्म चूकती सी दिखाई देती है। फिल्म देखकर दो बातें समझ में आती हैं। पहली बात यह कि फिल्म दक्षिण भारतीय दर्शकों को केंद्र में रखकर बनाई गई है। फिल्म के किरदार, उनके नाम, इस बात की तस्दीक करते हैं। दूसरी बात यह कि फिल्म का टेक्सचर मास ऑडियंस वाला होते हुए भी यह फिल्म मास ऑडियंस के लिए नहीं है। फिल्म में रहस्य, षड्यंत्र, साजिश के तत्व अधिक हैं। फिल्म में युद्ध, उत्सव, लार्जर दैन लाइफ सीन सीमित हैं। फिल्म में कोई भी एक किरदार बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करता। उदहारण के लिए पुष्पा, बाहुबली, रॉकी, विजय दीनानाथ चौहान, चुलबुल पाण्डेय की तरह पीएस 1 में कोई एक किरदार, ऐसा असर नहीं छोड़ता, जिसके खुमार कई दिनों तक रहे। सब क़िरदार, सबका अभिनय अच्छा लगता है। सभी प्रभावित करते हैं।मगर किसी का जादू छा जाए, किसी की दीवानगी होश उड़ा दे, ऐसा कोई चरित्र नहीं है फिल्म में। 

 

4.चूंकि फिल्म में कोई बड़ा हिंदी सिनेमा का स्टार नहीं है, फिल्म में कोई घनघोर लार्जर दैन लाइफ चरित्र नहीं है, कोई गजब का गाना नहीं है, कोई बहुत अद्भुत सीन नहीं है, इसलिए यह फिल्म मैच्योर ऑडियंस को ही पसन्द आएगी। आम आदमी फिल्म को देखकर कन्फ्यूज हो सकता है।यही कारण है कि जहां हिन्दी पट्टी में कई सिनेमाघरों में विक्रम वेधा के दिन में 8 से 10 शोज दिखाए जा रहे हैं, वहीं पीएस 1 के केवल 1 सिनेमाघर में दिन में 2 से 3 शोज दिखाए जा रहे हैं। इन सभी बातों के बावजूद फिल्म के अगले पार्ट का इंतजार है।ऐसी फिल्में हिंदी और दक्षिण में कम ही बनती हैं। हर तरफ भूख से ज्यादा परोसने और पेट ठूस ठूस कर भर देने का रिवाज है। ऐसे में कोई ऐसी फिल्म, जो अतृप्त छोड़ देती है, उसके प्रति आकर्षण होना लाजिमी है।

 

5. फिल्म के संवाद दिव्य प्रकाश दुबे ने लिखे हैं। दिव्य प्रकाश दुबे को संवाद लेखन के लिए 10 में से 11 नंबर मिलने चाहिए। इसकी तीन मुख्य वजहें हैं। दिव्य प्रकाश दुबे ने संवाद इस तरह लिखे हैं कि फिल्म में कोई भी संवाद अटपटा, ओछा और मिसफिट नहीं लगता। भाषा न तो संस्कृत लगती है और न हिंग्लिश। भाषा सच्ची लगती हैं।संवाद किरदारों के साथ एकाकार हो जाते हैं। दिव्य प्रकाश दुबे ने स्क्रीनप्ले नहीं लिखा है। यानी सीन लिखने का काम नहीं था उनके पास। उनको केवल दिए गए दृश्यों के लिए संवाद लिखने थे। इस परिस्थिति में दिव्य प्रकाश दुबे ने काबिले तारीफ काम किया है। जितने भी अवसर मिलते हैं, जहां दिव्य प्रकाश दुबे अपना हुनर दिखा सकते हैं, वहां दिव्य प्रकाश दुबे ने हुनर दिखाया है। चूंकि यह मणि रत्नम की फिल्म है इसलिए ऐसा नहीं हो सकता था कि दिव्य प्रकाश दुबे हर दस मिनट में सिक्का उछालने वाले, सीटी बजाने वाले संवाद लिख देते। मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा, डेविड धवन और मणि रत्नम की फिल्म में अंतर होता है। उस अंतर को बरकरार रखते हुए, सीमित संभावनाओं में दिव्य प्रकाश दुबे ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। दिव्य प्रकाश दुबे की तारीफ इसलिए भी होनी चाहिए क्योंकि यह उनकी पहली फिल्म है। आज जिस तरह को भाषा का चलन है और जिस तरह का लेखन हो रहा है, दिव्य प्रकाश दुबे ने आग पर चलने का काम किया है। थोड़ी सी ऊंच नीच में वह बुरी तरह ट्रोल हो जाते। यह उनका अध्ययन है, अनुभव है, जो वह इस तरह की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की फिल्म को निभा पाए हैं।

 

 

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TAGS: Mani Ratnam, Mani Ratnam PS 1, Bollywood, 5 things to know before you watch PS 1, Hindi cinema, Entertainment Hindi films news
OUTLOOK 02 October, 2022
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