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25 June 2017

कालजयी संगीतकार बना ‘पंचम’ सुर में रोने वाला यह बालक

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-विशाल शुक्ला

लगभग तीन दशक से ज्यादा का संगीत सफर, 331 फिल्मों के लिए संगीत रचना और महमूद से लेकर संजय दत्त तक की फिल्मों में संगीत से सजाने वाले इकलौते संगीतकार, जी हां जिनका आने वाले 27 जून को बर्थडे है.. वो हैं श्री राहुल देव बर्मन 'पंचम'।

यों तो राहुल देव बर्मन इंडस्ट्री में पंचम के नाम से ज्यादा जाने गए, उनका एक परिचय दिग्गज संगीतकार/गायक सचिन देव बर्मन और गीतकार मीरा के पुत्र के तौर पर भी है। लेकिन वह स्वयं कितने प्रतिभाशाली थे, इसका अंदाजा उनके छुटपन से जुड़े कुछ किस्सों के जरिये लगता है।

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उनका उपनाम पंचम पड़ने के पीछे कई कहानियां हैं मसलन, "बचपन में जब वह रोते थे तो संगीत के जी स्केल के पांचवें नोट में रोते थे, इस तरह उनका नाम पंचम हुआ।

"फिल्म पत्रकार वैदेही माने अपनी किताब 'द बर्मनस' में लिखती हैं कि बचपन मे राहुल के रोने का क्रम 5 अलग- अलग सुरों में होता था, सो उनका नाम पंचम पड़ा।"

"कहते हैं कि हिंदी फिल्मों कर पहले अभिनेता कहे जाने वाले अशोक कुमार ने जब बाल राहुलदेव को पहली मर्तबा देखा तो वह 'पा सिलेबी' का उच्चारण बार बार कर रहे थे और यहीं से उन्हें प्यार से पंचम पुकारा गया।

पहला चांस

पंचम को पहली फिल्म मिलने का किस्सा भी बड़ा रोचक और अलहदा है। कहते हैं महमूद अपनी फिल्म 'छोटे नवाब' के लिए बतौर संगीत निर्देशक साइन करने पंचम के पिता और उस वक्त के नामचीन संगीतकार सचिन देव बर्मन के पास पहुंचे, वह उस समय एक अन्य फिल्म में व्यस्त थे, सो महमूद के बहुत इसरार करने पर भी फिल्म के लिए हां न कह सके। इसी बातचीत के दरम्यान वहां बैठे नन्हें पंचम को महमूद ने मगन होकर तबले बजाते देखा। उन्होंने आव देखा न ताव तुरन्त अपनी फिल्म छोटे नवाब के लिए बतौर म्यूजिक कंपोजर साइन कर लिया। और इस तरह नन्हे पंचम को 9 बरस की उम्र मिल गई उनकी पहली पिक्चर।

 

"ध्यान दें कि 'सर जो तेरा चकराए' गीत की कम्पोजिशन भी पंचम ने 9 बरस की उम्र में ही बनाई थी, जिसे आगे चलकर उनके पिता ने गुरुदत्त स्टारर प्यासा (75) मे इस्तेमाल किया।

और शुरू हुआ संगीत का सफर

चलती का नाम गाड़ी,कागज़ के फ़ूल,तेरे घर कर सामने,बंदिनी, जिद्दी,गाइड उस दौर की चन्द यादगार फिल्में थीं, जिनमें पंचम ने बतौर सहायक संगीत निर्देशक काम किया। बतौर संगीत निर्देशक उनकी पहली फिल्म 'राज' थी, जिसे गुरुदत्त के सहायक रहे निरंजन धवन जी ने निर्देशित किया था।

गुरुदत्त औऱ वहीदा रहमान स्टारर  इस फिल्म के लिए पंचम ने दो गाने रिकॉर्ड किये। जिसमें से एक गाना आशा भोंसले और गीता दत्त ने और शमशाद बेगम ने स्वरबद्ध किया।

उसूलों वाला संगीतकार

अपने गीतों में यादों और वादों में खास तवज्जो देने वाले पंचम ने निजी जीवन मे भी इस परंपरा का निर्वाह किया। उन्होंने बतौर संगीत निर्देशक पहली हिट फिल्म मिलने का श्रेय हमेशा बतौर गीतकार जीवित किवदंती रहे मजरूह सुल्तानपुरी को दिया। जिन्होंने पंचम का नाम फिल्म के लिए, फ़िल्म के निर्दशक नासिर हुसैन को सुझाया था।

करियर का स्वर्णकाल

शताब्दी की सातवां दशक पंचम के करियर का स्वर्णकाल था। यही वो वक्त था जब पंचम दा रामपुर का लक्ष्मण, यादों की बारात,पड़ोसन जैसी हिट फिल्में दे रहे थे। इस दौर में उनकी शोहरत का आलम यह था कि म्यूजिकल हिट आराधना के सुपर हिट गीत 'मेरे सपनों की रानी', जिसकी कम्पोजिशन उनके पिता सचिन देव बर्मन ने बनाई थी,को लम्बे वक्त तक पंचम की ही रचना माना गया।

पंचम का क्लाइमेक्स

अब समय था, 80 का दशक,जिसे सिनेमाई आलोचकों या संगीत आलोचकों की जबान में पंचम के पतन का दौर कहा जाता है। अनुराधा भट्टाचार्य और बालाजी विठल अपनी किताब में लिखतें हैं कि इस अवसान के दो खास कारण थे, जिन्होंने 80 के दौर में पंचम की रचनाधर्मिता को खासा नुकसान पहुँचाया। एक-अमिताभ बच्चन के एंग्रीयंग अवतार का उभार और दूसरा दक्षिण की फिल्मों के रीमेक का चलन शुरू होना। दोनों ही तरह की फिल्मों में कर्णप्रिय संगीत की गुंजाइश कम हो रही थी और उनकी जगह डांस नंबर और कैबरे हावी हो रहा था। बप्पी लहरी-मिथुन और मनमोहन देसाई मार्का फिल्मों का जोर था। पंचम की संगीत यात्रा के साथी रहे नौशाद-सलिल चौधरी और खय्याम आदि या तो रिटायर हो गए थे या काम करना कम कर दिया था। वर्ष 1987 में किशोर कुमार के देहावसान के बाद पंचम और टूट गये। हालांकि इस बीच अपने मित्रों जैसे गुलज़ार के लिए (मासूम,लिबास और इज़ाज़त) आदि के लिये उनकी रचनाशीलता जारी रही। पंचम ने इस बीच तीन स्टार पुत्रों सनी देओल (बेताब), संजय दत्त (रॉकी) और कुमार गौरव (लव स्टोरी) की लांचिंग फिल्मों का संगीत तैयार कर दोस्ती भी निभाई।

4 जनवरी,1994 वह दिन था जब इस महान रचनाकार ने अपनी देह त्यागी।

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TAGS: stories, great musician, Pancham Da, RD BARMAN, INDIAN FILM
OUTLOOK 25 June, 2017
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