इंटरव्यू - विक्रांत मैसी : ‘लोग मसाला फिल्मों से ऊब गए हैं’
अभिनेता विक्रांत मैसी उन चुनिंदा कलाकारों में शामिल हैं, जिन्होंने टीवी, सिनेमा और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपनी प्रतिभा का लोहा बराबरी से मनवाया है। लुटेरा, हाफ गर्लफ्रेंड, छपाक जैसी फिल्मों से मजबूत शुरुआत करने वाले विक्रांत को ओटीटी के शो मिर्जापुर और क्रिमिनल जस्टिस से सशक्त पहचान मिली। निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 12th फेल में वह मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म, किरदार और अभिनय सफर के बारे में आउटलुक के गिरिधर झा ने उनसे बातचीत की।
12th फेल के किरदार से खुद को कैसे जुड़ा पाते हैं ?
हम सभी जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हैं और उसी में राह बनाते हैं। यह फिल्म लेखक अनुराग पाठक के उपन्यास पर आधारित है। जब मैंने उपन्यास पढ़ा, तो दो तीन दफे मेरे आंसू निकल गए। मैं अपने संघर्ष का महिमामंडन करना नहीं चाहता लेकिन मैंने खुद मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर जी तोड़ मेहनत की है, मायानगरी में काम हासिल करने के लिए। मैंने नकारे जाने की पीड़ा सही है। असफलता का स्वाद चखा है। इसलिए इस फिल्म का किरदार मेरे निजी जीवन के बेहद करीब रहा है। जिन्होंने भी अपनी मेहनत, जुझारूपन से तकदीर बदली है, उन्हें फिल्म में अपनी झलक दिखाई देगी। यह फिल्म लड़ना सिखाती है, शून्य से शुरुआत करना सिखाती है।
बड़ा तबका असफलता के बाद नई शुरुआत नहीं कर पाता। उन्हें फिल्म कैसे प्रेरित करती है?
यह फिल्म केवल यूपीएससी परीक्षा या अन्य प्रतियोगी परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के विषय में बात नहीं करती है। यह उन सभी लोगों के बारे में बात करती है, जो समाज में बदलाव लाने के लिए कोशिश करते हैं। चाहे फिर उनके पास सत्ता, पद हो या न हो। यह फिल्म समझाती है कि बदलाव की शुरुआत अपने घर से, परिवार से होती है। इस बदलाव के लिए आपको किसी कुर्सी, किसी मंत्रालय की जरूरत नहीं है। आप घर में छोटा सा कदम उठाकर, बड़े बदलाव की नींव रख सकते हैं। फिल्म बताती है कि असफल होना शर्म की बात नहीं है। असफल होना कुछ नहीं होता। इंसान हर प्रयास में जीतता है या अनुभव से सीखता है। इसलिए जो कोशिश करना छोड़ देता है, वही कमजोर है। अन्यथा जिसने भी प्रयास जारी रखा, वह कभी असफल नहीं हुआ।
फिल्म से जुड़ी किसी ऐसी घटना का जिक्र कीजिए, जिसने आपको बहुत प्रभावित किया?
यूं तो पूरी फिल्म अनुभवों का खजाना रही है। लेकिन एक घटना बहुत खास है। हमने फिल्म की शूटिंग उन विद्यार्थियों के साथ की, जो असल जिंदगी में यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। उनके साथ शूटिंग करते हुए, मैंने जाना कि केवल दस प्रतिशत विद्यार्थी ही पेंशन, आर्थिक सुरक्षा के लिए नौकरी की तैयारी करते हैं। अन्य नब्बे प्रतिशत विद्यार्थियों का उद्देश्य नौकरी पाकर व्यवस्था बदलना होता है। वे आम आदमी के जीवन में बदलाव लाएं, उनकी मुश्किलें कम करें। यह मेरे लिए बहुत खास था। बाहर से हम सब सोचते हैं कि लोग स्वार्थी हैं और सब पैसों के लिए दौड़ भाग कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। इस देश का युवा, आज भी जी तोड़ मेहनत कर रहा है, जिससे वह अपने और अपने समाज को सशक्त बना सके।
इस फिल्म में निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा के साथ काम करने का अनुभव साझा करें ?
उनके साथ काम करना मेरे लिए जीवन के सबसे सुंदर पलों में एक रहा। मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। मैं उनके काम का हमेशा से प्रशंसक रहा हूं। जिस ईमानदारी से वह अपने क्राफ्ट में लीन हो जाते हैं, वह अद्भुत है। विधु विनोद चोपड़ा की सोच में जो है, वही उनके जीवन में है। वह किसी तरह का समझौता नहीं करते हैं। यह उनकी फिल्मों के साथ भी है। चाहे कोई कुछ भी कहे, वह ठीक वैसी फिल्म बनाते हैं, जिस पर उनको विश्वास होता है। वह फिल्म बनाने में किसी किस्म का घालमेल नहीं करते। यही बात उन्हें महान फिल्मकारों की श्रेणी में रखती है। उनके साथ काम करना जीवन का अविस्मरणीय एहसास है। यह एहसास मुझे कलाकार और इंसान के रूप में और अधिक परिपक्व करेगा।
आपने फिल्म लुटेरा से अपनी शुरुआत की थी। आज आपको अभिनय करते हुए दस वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन वर्षों में जो प्यार मिला, प्रतिक्रिया मिली, उसके बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
कई बार समझ नहीं आता कि इन वर्षों में जो प्यार, मान मिला है, उसके लिए किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूं। अक्सर यकीन नहीं होता कि लोगों ने मुझे इतना स्नेह दिया है। जितना आभार करूं कम होगा। इन दस वर्षों में जिन कलाकारों के साथ काम करने का अवसर मिला, वह मेरा असल सौभाग्य है। मुंबई आने वाले करोड़ों लोगों में से कुछ चुनिंदा को ही इतने महान निर्देशकों, अभिनेताओं के साथ काम करने का मौका मिलता है। मुझे खुशी है कि मैं उन कलाकारों में शामिल हूं। इन दस वर्षों में विविधतापूर्ण काम करने को मिला है। मैंने विभिन्न तरह के किरदार निभाए। खुशी की बात रही कि लोगों ने मुझे हर तरह के किरदार में पसंद किया है। इन दस वर्षों में सिनेमा में बहुत बदलाव आया। लोगों ने मसाला फिल्मों से हटकर, अच्छी और नई कहानियों को पसंद करना शुरू किया है। इसका मुझ जैसे कलाकारों को बहुत फायदा मिला है। इससे हमारा सिनेमा भी बेहतरी की ओर बढ़ा है।
टीवी, ओटीटी प्लेटफॉर्म और सिनेमा तीनों माध्यमों में काम किया है। किरदार की तैयारी करते हुए माध्यम का ध्यान रखना पड़ता है ?
अभिनेता के रूप में रवैया सभी माध्यम में एक जैसा ही होता है। कैमरे के सामने हैं, तो फर्क नहीं पड़ता कि टीवी सीरियल की शूटिंग है या ओटीटी प्लेटफॉर्म की या वेब शो की। आप एक ही तरह से अपने किरदार की तरफ बढ़ते हैं। तीनों ही माध्यम में काम करते हुए अभिनेता की कोशिश होती है कि वह अपने काम से दर्शकों को प्रभावित कर सके। इतना जरूर है कि हर माध्यम की अपनी जरूरत है, सीमा है। टीवी सीरियल के लिए काम करते हुए अभिनेता के पास रिहर्सल का अधिक समय नहीं होता। वहां तेजी से काम करना पड़ता है। वहीं वेब शो में, दो से तीन फिल्मों जितना काम करना पड़ता है। इन बातों को छोड़कर, क्राफ्ट के स्तर पर अभिनेता के लिए तीनों माध्यम एक से ही होते हैं।