पंकज त्रिपाठी : गांव की मिट्टी से जुड़े सशक्त अभिनेता
आज हिन्दी सिनेमा के सफल अभिनेता पंकज त्रिपाठी का जन्मदिन है। उनका जन्म 5 सितम्बर सन 1976 को गोपालगंज, बिहार में हुआ।पंकज त्रिपाठी समकालीन हिन्दी सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता हैं, जिनका प्रभाव साल दर साल, लोगों के ज़ेहन पर बढ़ता ही चला गया है। दर्शक पंकज त्रिपाठी को बहुत प्यार करते हैं। पंकज त्रिपाठी की एक ख़ूबसूरत, खूबसीरत इंसान की छवि पूरे भारत के जनमानस के मन में स्थापित हो चुकी है। गांव में रामलीला से अपनी शुरूआत करने वाले पंकज त्रिपाठी का जीवन संघर्ष और जुनून की मिसाल रहा है।
पंकज त्रिपाठी ने गांव में रामलीला से शुरूआत की और अपनी मेहनत और लगन के बूते दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय पहुंचे। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के अनुभवों को लेकर पंकज त्रिपाठी कहते हैं "नाटक, अभिनय करने से पहले मैं हिन्दू, ब्राह्मण था। नाटक से जुड़ने के बाद मैं सिर्फ़ एक मानव हूं। आज के इस दौर में या किसी भी दौर में, समाज में रहते हुए सभी तरह के पूर्वाग्रह, श्रेष्ठता का भाव छोड़कर, सिर्फ़ मनुष्य बनकर जीना बहुत कठिन काम है। मगर एक कलाकार के लिए यह बहुत ज़रूरी है। जब तक वह अपना एक फिक्स चश्मा नहीं उतारेगा, तब तक वह जान ही नहीं सकेगा कि दुनिया में कितनी विविधता है और इसी से दुनिया में ख़ूबसूरती है। बिना जाति, धर्म, पंथ का गौरव छोड़े, व्यक्ति का विकास नहीं हो सकता। कलाकार का विकास भी इसके बिना मुमकिन नहीं है। कलाकार जब अपने पूर्वाग्रह छोड़कर जीवन को पढ़ता है, समझता है, जानता है तब वह एक व्यक्ति के स्तर पर बेहतर बनता है। यही व्यक्ति आने वाली पीढ़ी के लिए सोचता भी है और उसकी कोशिश रहती है कि आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहतर दुनिया छोड़ कर जाई जाए।" इस तरह का विचार पंकज त्रिपाठी की संवेदनशीलता को दर्शाता है। आज के मशीनी दौर में, इन आदर्शवादी विचारों की बात करना और न सिर्फ़ बात करना बल्कि अपने निजी जीवन में इन विचारों को जीना, अपने आप में पंकज त्रिपाठी को अनुकरणीय शख्सियत बनाता है।
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पढ़ाई पूरी करने के बाद पंकज त्रिपाठी मायानगरी मुंबई पहुंचे। उनकी शादी हो चुकी थी। नया शहर, घर गृहस्थी की जिम्मेदारी और चुनौतियों से भरी फिल्म इंडस्ट्री। पंकज त्रिपाठी का संघर्ष यहां भी जारी रहा। पंकज त्रिपाठी मुंबई के सफ़र के बारे में कहते हैं "मुंबई आने के बाद पहली कोशिश थी कि यहां किसी तरह टिक सकें। जब टिकने का बंदोबस्त होगा तभी आर्ट वगैरह का ख़याल धरातल पर उतर सकेगा। कुछ दिनों के बाद जब कास्टिंग के लिए जाते तो अलग तरह के अनुभव होते। तब कास्टिंग के लिए अलग ही मापदंड थे। कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आपने एक्टिंग का कोर्स बड़ी प्रतिष्ठित जगह से किया है या आप नौसिखिए हो। सब आपके लुक्स पर निर्भर करेगा। आप चाहे लाख काबिल, गुणी हों, अगर आप सुंदर नहीं, लंबे चौड़े नहीं, आकर्षक टिप टॉप नहीं तो, कई रोल्स, फ़िल्मों से आप यूं ही दरकिनार कर दिए जाएंगे। इसके साथ ही अगर आप स्टार नहीं हैं, नए कलाकार हैं, तो सभी आपको भयभीत करते हुए मिलेंगे। आपको महसूस कराया जाएगा कि आप उस स्टार की तुलना में हीन, कमज़ोर, कमतर हैं। मेरे साथ ऐसा हुआ करता था और लंबे समय तक ऐसा ही होता रहा। एक बार किसी ने फिल्म की शूटिंग पर मुझे गाली भी दी। मुझे बड़ा गुस्सा आया। मैंने सोचा कि मैं गाली सुनने तो बिहार से मुंबई नहीं आया था। तब मेरे मित्र ने मुझे शांत रहकर काम करने की सलाह दी। मैंने मित्र की बात सुनी और अपने काम के दम पर सभी आलोचकों को जवाब दिया।"
अपने अभिनय सफर के बारे में पंकज त्रिपाठी बताते हैं कि एक फ़िल्म के दौरान उनके अभिनय को देखकर उनके सह अभिनेता और ड्रामा स्कूल के शिक्षक ने कहा था कि उन्हें गर्व है कि वे पंकज त्रिपाठी को एक्टिंग सिखा सके। पंकज त्रिपाठी कहते हैं कि यह बात उन्हें इस कदर छू गई कि चाहे उन्हें अब फ़िल्म फेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिले या न मिले, वह अपने जीवन का श्रेष्ठतम सम्मान अपने एक्टिंग गुरु के इस बयान के ज़रिए पा चुके हैं। ऐसी बात एक सच्चे दिल का व्यक्ति ही कह सकता है, जिसने जीवन की समग्रता को महसूस कर लिया हो। जिसने संतुष्टि के महत्व को समझ लिया हो।
आज हर कोई पंकज त्रिपाठी को स्क्रीन पर देखना चाहता है। "मिर्जापुर", "सेक्रेड गेम्स", "बरेली की बर्फी", "अंग्रेजी में कहते हैं", "न्यूटन", "मसान", "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में अपने दमदार अभिनय से पंकज त्रिपाठी ने दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी है। उन्हें सहायक भूमिका निभाने के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया है। दर्शक पूरी फ़िल्म, पूरी वेब सीरीज़ पंकज त्रिपाठी के नाम पर देखते हैं। एक उम्मीद, एक विश्वास है दर्शकों में कि पंकज त्रिपाठी की मौजूदगी का मतलब है कि कुछ अद्भुत, अतुलनीय रचा गया होगा। पंकज त्रिपाठी स्क्रीन पर उन करोड़ों लोगों की आवाज़ हैं, जो कभी भी अपनी आवाज़ सिर्फ़ इसलिए बुलंद नहीं कर पाए, क्योंकि सदियों से उनके भीतर हीनता का भाव सुनियोजित तरीक़े से रोपा गया था। जिन्हें सिर्फ़ उनके रंग, रूप, भाषा, कद काठी के कारण किनारे रख दिया गया था। मगर पंकज त्रिपाठी का स्क्रीन पर दिखना और मजबूती के साथ धनक पैदा करना, लाखों को यह महसूस कराता है कि अब वक़्त बदल चुका है। पंकज त्रिपाठी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि यदि ख़ुद पर यक़ीन हो तो नसीब बदले जा सकते हैं।