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26 February 2016

उदासी का संगीत अलीगढ़

प्रोफेसर सिराज (मनोज वाजपेयी) अपने कमरे में बैठ कर शराब के घूंट के साथ ‘आप की नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे’ सुन रहे हैं। बिना इस बात की परवाह किए कि उन पर होमोसेक्सुलिटी का आरोप है! हंसल मेहता का फिल्म बनाने का अपना तरीका है। किरदारों को वास्तविक के करीब लाकर दर्शकों को मन में बिठा देने वाला। अलीगढ़, अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर पर आधारित है, जो अकेले में ‘सामाजिक नियमों’ के विरुद्ध प्रेम कर रहा है।

अखबारों ने इस मामले में को वैसा ही ‘उछाला’ जैसा होता है। पक्ष या विपक्ष में। लेकिन फिल्म का ने इसी पक्ष को पीछे रख कर उस प्रोफेसर शिराज को सामने रखा जो वह वास्तविक रूप में थे। यानी अकेलेपन से लड़ रहे ऐसे शख्स जिसके पास इंसान होना जरूरी था, बिना इसकी परवाह किए कि वह मर्द है या औरत। एक अखबार के रिपोर्टेर दीपू सेबेस्टियन (राजकुमार राव) प्रोफेसर शिराज से मिल कर उन्हें पन्ने दर पन्ने खोलता है।

मनोज वायपेयी ने कमाल का अभिनय किया है ऐसा नहीं लिखा जा सकता। क्योंकि उन्होंने अभिनय तो किया ही नहीं है। वह तो प्रोफेसर शिराज थे, जो भूल गए थे कि वह मनोज वाजपेयी हैं। राजकुमार राव सहजता से उनका साथ निभाते चले गए और लगा कि शहर छोटा हो या बड़ा सोच तो वही है हम सभी की। हो सकता है इस फिल्म के बाद धारा 377 लगाने या इसकी मुखालफत करने वाले उन लोगों का दर्द भी समझेंगे जो खुद को मर्द या औरत से ज्यादा खुद को इंसान मानते हैं। 

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TAGS: aligarh, manoj vajpayee, hansal mehta, rajkumar rao, अलीगढ़, मनोज वाजपेयी, हंसल मेहता, राजकुमार राव
OUTLOOK 26 February, 2016
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