समीक्षा - दिलवाले
रोहित शेट्टी की नई फिल्म दिलवाले तमाम विवादों, विरोध प्रदर्शनों, फिल्म न देखने की व्हॉट्स एप अपीलों के बीच आखिरकार आज रीलिज हो गई। वैसे और किसी बात की तारीफ की जाए न न की जाए लेकिन इस बात की तो की ही जानी चाहिए कि रोहित शेट्टी इतना ऊटपटांग सोच कैसे लेते हैं। यह वाक्य उनके और शाहरूख के प्रशंसकों से क्षमाप्रार्थना के बाद लिखा गया है।
दो डॉन के बीच गैंगवार में विदेश में पनपा प्रेम भारत में पूरा होता है। रोहित ने अपने स्तर पर दर्शकों को चौंकाने के लिए पूरी कोशिश की है। उनकी स्टाइल में बनी इस फिल्म में कारों के साथ स्टंट हैं, एक घूंसे में उड़ते बदमाश हैं, बेहिसाब चलती गोलियां हैं और हां अंत में एक-दो सवाल है, जैसे किंग को काली क्यों खोज रहा था, काली के लिए इतना भी कठिन नहीं था मीरा को खोजना फिर पंद्रह साल क्यों नहीं खोजा। रोहित ने हनी ट्रैप के जरिए इस कहानी को आगे बढ़ाया और रंग दे मुझे गेरुआ पर खूब पैसा खर्च कर इसे ऐतिहासिक बनाने की कोशिश में कोई कमी नहीं रखी। इस गाने के सिवाय कोई और गाना सुनने लायक है भी नहीं।
काजोल के पास दो-चार संवाद के आलावा कहने को कुछ नहीं था फिर भी वह बेहतर लगी हैं। शाहरूख-काजोल की जोड़ी में अभी भी कुछ ऐसा है जरूर कि जितनी देर परदे पर वह रहती हैं, फिल्म उतनी देर ही अच्छी लगती है। शाहरूख-काजोल की कहानी जब तक चलती है, तब तक सब ठीक है। उन दोनों के जाते ही वरुण-श्रुति कहानी को ढीला कर देते हैं। वैसे इस फिल्म का एक अलग दर्शक वर्ग है जो इसे सफल बनाने के लिए मल्टीप्लैक्सेस में जुट जाएगा।
रोहित ने कैमरा एंगल, सिनेमोटोग्राफी पर बहुत काम किया है। लोकशंस, लाइटिंग पर रोहित पहले से बेहतर हुए हैं। कुल मिलाकर एक बार तो आप इसे देख ही सकते हैं। कॉमेडी के नाम पर जॉनी लीवर अब चुक चुके हैं, बोमन इरानी ने निराश किया है, फिर भी दिलवाले दिल नहीं तोड़ती यही क्या कम है।