Advertisement
30 July 2015

भ्रम का जाल दृश्यम

अगर इस फिल्म के टीवी पर दिखाए जाने वाले ट्रेलरों ने उत्सुकता जगा दी है, तो थोड़ी उत्सकुता कम कर लीजिए। अगर आप चाहें और थिएटरों में ऐसी कोई स्कीम हो तो इसे मध्यांतर के बाद देखें। यह चेतावनी नहीं सलाह है। खैर। निर्देशक निशिकांत कामत की कोशिश अच्छी है इसमें कोई शक नहीं। उन्होंने अपनी तरफ से रहस्य-रोमांच रचने की ईमानदार कोशिश की है।

 

फिल्मों का दीवाना, अनाथ, चौथी फेल विजय सालगांवकर (अजय देवगन) गोवा के छोटे से गांव पेंडोलिम में अपनी पत्नी नंदिता (श्रेया सरन) और दो बेटियों के साथ सुकून से रह रहा है। जब तक की आईजी मीरा देशमुख (तब्बू) का बेटा समीर देशमुख उर्फ सैम (ऋषभ चड्डा) विजय की बड़ी बेटी (इशिता चड्डा) के जीवन में तूफान नहीं ला देता। एक अच्छे पिता के कर्तव्य को निभाते हुए विजय अपने परिवार को बचाने की पूरी कोशिश करता है। इस कोशिश में विजय जो दृश्य रचता है, भ्रम की जो स्थिति पैदा कर देता है, वही है दृश्यम। यानी जो दिखेगा वह लंबे वक्त तक याद रहेगा।

Advertisement

 

पुलिस वाले के लड़के को नुकसान पहुंचाना वह भी आईजी रैंक के अपने आप में ही चुनौतीपूर्ण है। अजय देवगन ने यह किरदार बखूबी निभाया है। वह शातिर नहीं मगर बातें समझने और परिस्थितियों से बचने और बचाने के खेल को अंत तक निभा ले गए हैं। श्रेया सरन की जगह किसी और कलाकार को लिया जाता तो बेहतर हो सकता था।

 

मध्यांतर के पहले कहानी बहुत बोझिल तरीके से रेंगती है। कलाकारों और घटनाओं को स्थापित करने में निर्देशक ने बहुत वक्त जाया किया है। लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म दौड़ती है और फिर लगता है कि वाकई यह कोई रोमांचक फिल्म चल रही है।

 

तब्बू के हिस्से में जितना काम आया उन्होंने अच्छे से किया है। गायतोंडे नाम के पुलिसवाले ने भी रंग जमाया है। गाने भी अच्छे बन पड़े हैं। फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जाती तो बेहतर तरीके से कसावट आ सकती थी। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: film review, drishyam, ajay devgn, tabu, shriya saran, ishita dutta, nishikant kamat, keigo higashino, the devotion of suspect, फिल्म समीक्षा, दृश्यम, अजय देवगन, तब्बू, श्रेया सरन, इशिता दत्ता, निशिकांत कामत, कीगो हिगाशिमो, द डिवोशन अॉफ सस्पेक्ट
OUTLOOK 30 July, 2015
Advertisement