समीक्षा - पीकू
रोहिंगटन मिस्त्री की किताब, ‘फीरोजशाह बाग के किस्से’ में बहुत ही खूबसूरत ढंग की किस्सागोई में एक लड़के सरोश की भी कहानी थी जिसमें वह विदेश में बसने का असफल प्रयास करता है। एक कारण की वजह से उसे भारत लौटना पड़ता है। और वह वजह थी सरोश पाश्चात्य शैली के कमोड पर शौच करना नहीं सीख पाता! अफसोस जिस दिन उसे कमोड पर तृप्ति भरा पाखाना आता है वह भारत लौटने वाले एयरोप्लेन में सफर कर रहा होता है।
क्या इस कहानी का फिल्म पीकू से कोई संबंध है या हो सकता है? हां बिलकुल है। पीकू की पूरी कहानी, पहले दृश्य से लेकर आखिरी तक ‘पीकू के पापा की पॉटी’ के इर्द-गिर्द ही घूमती है। पॉटी शब्द पढ़ कर न मुंह सिकोड़िए न नाक पर हाथ रखिए। यह सच है कि कब्ज के मरीज भास्कर बैनर्जी (अमिताभ बच्चन) और उनकी बेटी पीकू (दीपिका पादुकोण) पूरी फिल्म में इसी समस्या से जूझते हैं। फिर भी यकीन मानिए यह फिल्म देखने लायक है।
दरअसल पटकथा लेखिका जूही चतुर्वेदी ने इस कहानी के जरिए कई फ्रेम तोड़े हैं। सत्तर के मध्य से अस्सी के शुरुआती दौर तक कई ऐसी फिल्में बनीं जिसमें लड़कियां घर का आर्थिक बोझ उठाती थीं, शादी नहीं करती थीं और माता-पिता की सेवा के बदले कुंआरे रह जाने का त्याग रूपी मेडल उनके गले में मेडल की तरह पड़ा रहता था। रेखा अभिनीत फिल्म ‘जीवनधारा’ उसी कड़ी की फिल्म थी। पीकू भी ऐसी ही बेटी है जो कब्ज के मरीज, चिड़चिड़े से अजीब से पिता का ध्यान रख रही है। हां आर्थिक रूप से विपन्ना यहां जरूर नहीं है पर शादी के सपने जरूर हैं, जिसे पीकू के पिता यह कह कर खारिज कर देते हैं, कि शादी में कुछ नहीं रखा। स्वतंत्र रहना चाहिए क्योंकि शादी के बाद पत्नी का काम दिन में पति को खाना खिलाना और रात में सेक्स करना है। यह फिल्म अमिताभ की न हो कर दीपिका की फिल्म कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
फिल्म निर्देशक शुजीत सरकार ने बेटी के मनोभावों, बेटी के चले जाने के डर से हरदम होती दुश्चिंता जैसे बारीक मनोभावों के बहुत खूबसूरती से दिखाया है। और रही बात ‘नॉन बेंगॉली’ राना चौधरी (इरफान खान) की तो वह जब-जब परदे पर रहे सभी फीके रहे। कब्ज पीड़ित बूढ़े पिता की इच्छाओं के बीच ही राना की मदद से खुद को खोजती एक लड़की की यात्रा की सफलता जूही चतुर्वेदी के चुटीले संवाद, चुस्त पटकथा और शुजीत सरकार के समझदारी भरे निर्देशन की वजह से है। विकी डोनर और मद्रास कैफे के निर्देशक को यह बखूबी पता है कि दर्शकों को कुर्सी से कैसे बांध दिया जाता है।